चंद्र विजय के बाद सूर्य तिलक: सूर्य का रहस्य जानने के लिए आदित्य एल-1 का सफर शुरू, अनजाने रहस्यों से उठेगा पर्दा

सूर्य का रहस्य जानने के लिए आदित्य एल-1 का सफर शुरू, अनजाने रहस्यों से उठेगा पर्दा
Aditya L1 Mission
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भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अपना पहला सूर्य मिशन आदित्य एल-1 लॉन्च करके इतिहास रचा है। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा (Sriharikota) से आदित्य एल1 को लॉन्च किया गया। 

नई दिल्ली | Aditya-L1 Mission Launch: चंद्र विजय की सफलता के बाद भारत ने एक और बढ़ा कदम बढ़ाते हुए सूर्य का रहस्य जानने के लिए आदित्य एल-1 को मिशन (Aditya L1 Mission) पर रवाना कर दिया है। 

शुक्रवार सुबह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अपना पहला सूर्य मिशन आदित्य एल-1 लॉन्च करके इतिहास रचा है।

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा (Sriharikota) से आदित्य एल1 को लॉन्च किया गया। 

बता दें कि 127 दिन बाद आदित्य एल-1 अपने पॉइंट एल1 तक पहुंचेगा। इस मिशन के लिए आदित्य एल-1 धरती से 15 लाख किमी तक की दूरी तय कर सूर्य की यात्रा करेगा। 

आदित्य एल-1 अपनी दूरी तय करने के बाद सूर्य के आसपास होने वाली घटनाओं की जानकारी धरनी पर भेजेगा।

इसरो के इस मिशन की अनुमानित लागत 378 करोड़ रुपए बताई गई है।

मालूम हो कि एल-1 प्वाइंट से सूर्य की कुल दूरी 14 करोड़ 85 लाख किमी है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 100 गुना और सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से लगभग 10 गुना अधिक चौड़ा है। नासा के मुताबिक, सूर्य के भीतर लगभग 13 लाख पृथ्वी समा सकती है।

आदित्य एल-1 कैसे तय करेगा अपना सफर  ?

जानकारी के अनुसार, आदित्य एल-1 को पहले फेज में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी-सी57) से लॉन्च किया गया है।

धरती की निचली कक्षा में स्थापित आदित्य एल-1 के ऑर्बिट को बढ़ाकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की सीमा से बाहर किया जाएगा।

गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर होने के बाद इसका दूसरा फेज शुरू होगा। 

सूर्य की बाहरी परतों की जानकारी जुटाने के लिए आदित्य एल-1 पर 7 पैलोड लगाए गए हैं जिसमें से 4 पेलोड सूर्य के आसपास की जानकारी जुटाएंगे और बाकी 3 पेलोड एल-1 प्वाइंट के आसपास जानकारी देंगे।

दरअसल वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पॉइंट पर ग्रहण का असर नहीं होता है जिसके चलते यहां से सूरज की स्टडी की जा सकती है 

सूर्य मिशन के पेलोड्स को भारत के कई संस्थानों ने मिलकर तैयार किया है। आदित्य एल-1 को डीप स्पेस में यूरोपियन स्पेस एजेंसी भी ग्राउंड सपोर्ट देगी। 

दरअसल गहरे अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान की सिग्नल काफी कमजोर हो जाती है, इसके लिए कई एजेंसियों की मदद लेनी होती है। 

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