संघर्ष की कहानी: घर से बिना बताए एक्टर बनने मुम्बई आई अमन संधू, जो इण्डस्ट्री में मुखर आवाज का प्रतीक है

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अमन से बातचीत खासी लम्बी चली है जो आप वीडियो में देख सकते हैं, लेकिन दस साल से मायानगरी में बसी अमन में अभी भी पंजाब और पंजाबियत भरपूर हैं। इनके घर में प्रवेश करते ही मंदिर के दर्शन होते हैं और वह काफी धार्मिक भी हैं।

साथ ही अपनी बातों में खासी परिपक्वता और ईमानदारी से भरी नजर आती है। वह चिंता करती है मुम्बई आने वाली नई पौध की जिनकी आंखों में चमकीले सपने हैं, लेकिन जिनके लिए कोई मुकम्मल राह बनी हुई नहीं है।

मुम्बई की व्यस्त और चकाचौंध भरी भीड़! बारिश और ट्रैफिक की जद्दोजहद से निकलकर बताए गए पते पर पहुंचे तो एक अदाकारा से मुलाकात हुई! हमारे मित्र राज परमार जिन्होंने इनका परिचय दिया था उन्होंने एक वीडियो लिंक शेयर किया। जब लिफ्ट में खड़े—खड़े ही वीडियो देखा तो उसमें यह मोहतरमा एक बंदे को थप्पड़ें जड़े जा रही थीं।

हमने सोचा ​इनकी किसी फिल्म का पार्ट होगा। बाद में लिफ्ट से बाहर निकलकर दो—तीन और वीडियो सर्च किए तो पता चला कि हकीकत वाले वीडियोज हैं। सात साल पुराने, जिसमें ये डाय​रेक्टर बताए जा रहे युवक की डायरेक्ट ही धुनाई कर रही हैं।

खैर! ये अमन संधू हैं। मूलत: पंजाब के गुरदासपुर की रहने वाली हैं और फिलहाल मुम्बई में सिने जगत की एक हस्ताक्षर हैं। जब हम पांच बजकर दस मिनट पर पहुंचे तो थोड़े लेट थे, इन्होंने कहा मेरे पास छह बजे तक का ही समय है। मैं इनसे थोड़ा दूर बैठा तो बोलीं, यहां से कैमरा एंगल ठीक बनेगा?

हमने सोचा आप उस वीडियो वाले स्टाइल में एक—आध झापड़ इधर रसीद कर देंगी तो एंगल चेहरे का बिगड़ जाएगा। परन्तु बातचीत में बिंदास, अंदाज में मस्तमौला और अपने काम के प्रति समर्पित भाव वाली अमन से बातें करते करीब आधा घंटा कब बीता पता ही नहीं चला। बहुत सारी बातें निकलकर सामने आईं।

बात में तो छह बजे का वक्त भी निकला, इन्होंने चाय बनाकर पिलाई और बहुत सी ऐसी बातें साझा की जो बताती है कि इस मुम्बई के चेहरे और चाल में किस तरह के अंतर है और यहां किस तरह की चीजें होती है जिसकी कल्पना बाहरी दुनिया के लोग नहीं करतें।

अमन आपकी कहानी क्या है? आप मुम्बई क्यों आईं? एक सवाल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला खासा लम्बा चलता है।

अमन कहती हैं मुम्बई में आप एक सपना लेकर आते हैं और सपनों की राह पथरीली—कांटों से भरी होती है। पंजाब के माहौल और मुम्बई के माहौल में बहुतेरा अंतर है। शुरूआत में एक्टर या स्टार बनने का मन में नहीं था। आठवीं में पढ़ते वक्त थिएटर करते वक्त यह अहसास हुआ और अचानक ही आना हुआ।

मुम्बई का तो कोई प्लान नहीं था, घर में भी किसी को पता नहीं था। आप जब तक किसी चीज के लिए आवाज नहीं उठाते हैं तो... आपके साथ कुछ गलत हुआ है तो आपको आवाज उठानी चाहिए। 

अमन कहती हैं कि उनका कभी था नहीं स्टार बनने का मानस। थिएटर करना शुरू किया तो उसके बाद एक सीरियल मिला तो सीरियल के बाद यह लगा कि मुम्बई जाना चाहिए। एकदम आ गई। फिर यहां क्यूरियोसिटी बढ़नी शुरू हुई और फिर लगा कि कैपेबिलिटी भी है। मैं तो घर में बिना बताए आ गई थी।

कास्टिंग काउच के खिलाफ अमन ने करीब सात साल पहले आवाज उठाई थी। पूछने पर आज वह उसे याद नहीं करना चाहती। सवाल के साथ चलते हुए वह कहती हैं कि भगत सिंह के संधू सरनेम वाला पंजाबी खून है तो हो गया।

वे कहती हैं कि ज्यादा बात नहीं करना चाहूंगी, परन्तु जब आप किसी गलत के खिलाफ आवाज नहीं उठाते तो फिर यह चलता रहेगा। यदि कुछ गलत हो रहा है तो उसके खिलाफ एक्शन लेना ही होगा। क्योंकि हम यहां करने क्या आए थे? फैमिली को छोड़ के...।

हमारा गोल क्या है, लक्ष्य  क्या है। जब कोई भी आपको कोई जब डिस्ट्रक्ट करता है और इस वे में करता है तो वो किसी भी लड़की को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। किसी को भी नहीं करना चाहिए।

शुरूआती प्रोजेक्ट के बारे में अमन बताते हैं कि शुरूआत में मैं किसी को नहीं जानती थी। परन्तु शुरूआती फेज में कुछ संघर्ष रहा। कई आडिशंस का रिजल्ट नहीं आया और  कइयों का जल्दी आया। वे अपने भाग्य को सराहती हैं और कहती हैं कि सब टीवी का गुपचुप, खिड़ी और जीटीवी का नीली छतरी जैसे शो मिले।

बाद में पंजाबी सॉंग्स तो लगातार मिलते चले गए। क्योंकि जिस बैकग्राउण्ड से होते हैं उसका फायदा मिला। गुरनाम भुल्लर के साथ फिल्म का जिक्र भी अमन संधू करती हैं और कहती है कि वह फिल्म अब रिलीज होने वाली है।

परिवार के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मेरे परिवार में किसी को यह पसंद नहीं था।  फादर ने तो करीब पांच—छह साल तक बात ही नहीं की। मां ने सपोर्ट किया। अब दस साल यहां आए हो गए हैं और काफी कुछ बदल गया है।

नपोटिज्म भी इण्डस्ट्री की सच्चाई है और यह सवाल हमने अमन संधू से भी किया तो वे कहती हैं कि बाहर वालों के लिए ज्यादा स्ट्रगल है। इवन ऐसा है कि जब लॉकडाउन हुआ था तो बहुत सारे लोग वापस भी चले गए। तो मुझे लगता है सपने सबके होते हैं और वो चाहे किसी स्टार के बच्चे के हो चाहे किसी नॉर्मल फैमिली के बच्चे हो। तो सपने सपने ही होते हैं तो इन चीजों को लेकर के आई थिंक मुझे लगता है कि जो डिफरेंस मैंने यहां आ कर के देखा। किसी के सपनों पर गुलाबी चश्मे हैं और कइयों के ब्लैक एण्ड व्हाइट है, जिन पर कलर खुद भरना है।

अमन मूलत: पंजाब के गुरदासपुर की रहने वाली हैं और उस लोकसभा सीट से पहले विनोद खन्ना फिर सन्नी देओल सांसद रहे। आजकल कंगना रनौत भी सांसद बन चुकी हैं। तो राजनीति में आने को लेकर कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं सोचा। वे कहती हैं कि मुझे लगता है कि ये बहुत बड़ी रिस्पांसिबिलिटी है।

अमन से बातचीत खासी लम्बी चली है जो आप वीडियो में देख सकते हैं, लेकिन दस साल से मायानगरी में बसी अमन में अभी भी पंजाब और पंजाबियत भरपूर हैं। इनके घर में प्रवेश करते ही मंदिर के दर्शन होते हैं और वह काफी धार्मिक भी हैं।

साथ ही अपनी बातों में खासी परिपक्वता और ईमानदारी से भरी नजर आती है। वह चिंता करती है मुम्बई आने वाली नई पौध की जिनकी आंखों में चमकीले सपने हैं, लेकिन जिनके लिए कोई मुकम्मल राह बनी हुई नहीं है।

अमन उन लोगों की प्रतीक हैं जो अपने संघर्ष की दास्तां खुद लिखते हैं। परिवार के विरोध के बावजूद जिनकी आंखें चमकदार सपने देखती और यह विश्वास रखती है कि चांद तक जाने वाले राह पर उनके कदम जरूर आगे बढ़ेंगे।

वह राह इन युवाओं को खुद बनानी है। वे उठतीं है चाय बनाती हैं और इस दौरान बहुत सी बातें अपने, अपने परिवार, इण्डस्ट्री और पंजाब के बारे में बताती हैं। समय इजाजत नहीं देता तो हम भी विदा लेकर चल पड़ते हैं।

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