Jodhpur: IIT जोधपुर ने समुद्री जल से हाइड्रोजन, सस्ती ऊर्जा भंडारण तकनीक विकसित की

आईआईटी जोधपुर (IIT Jodhpur) के डॉ. प्रशांत कुमार गुप्ता (Dr. Prashant Kumar Gupta) की टीम ने समुद्री जल से सीधा हाइड्रोजन उत्पादन और अगली पीढ़ी की जलीय जिंक-आयन बैटरियों के लिए नई तकनीक विकसित की है। यह नवाचार स्वच्छ ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण को सस्ता व सुलभ बनाएगा।

IIT जोधपुर की स्वच्छ हाइड्रोजन तकनीक

जोधपुर:आईआईटी जोधपुर (IIT Jodhpur) के डॉ. प्रशांत कुमार गुप्ता (Dr. Prashant Kumar Gupta) की टीम ने समुद्री जल से सीधा हाइड्रोजन उत्पादन और अगली पीढ़ी की जलीय जिंक-आयन बैटरियों के लिए नई तकनीक विकसित की है। यह नवाचार स्वच्छ ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण को सस्ता व सुलभ बनाएगा।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर (IIT Jodhpur) के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग की इलेक्ट्रोकेमिकल एनर्जी कन्वर्जन एंड स्टोरेज (E2CS) प्रयोगशाला में सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रशांत कुमार गुप्ता के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने सतत प्रौद्योगिकी के दो प्रमुख क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है।

इन क्षेत्रों में समुद्री जल से सीधे हाइड्रोजन उत्पादन और अगली पीढ़ी की जलीय जिंक-आयन बैटरियों का विकास शामिल है। ये नवाचार नवीकरणीय ऊर्जा, जल संकट और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में सहायक सिद्ध होंगे।

समुद्री जल से हाइड्रोजन: जलवायु-प्रतिरोधी ऊर्जा की ओर एक बड़ा कदम

वर्तमान में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 420 पीपीएम से अधिक हो गया है, जिसके कारण ऊर्जा और पर्यावरण से जुड़ी अभूतपूर्व चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। पारंपरिक रूप से हाइड्रोजन उत्पादन के लिए विद्युत अपघटन (इलेक्ट्रोलिसिस) प्रक्रिया में अत्यंत शुद्ध जल की आवश्यकता होती है। लगभग एक किलोग्राम हाइड्रोजन के उत्पादन में 30 लीटर शुद्ध पानी लगता है, जो तटीय और शुष्क क्षेत्रों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

डॉ. गुप्ता और उनकी टीम ऐसे उन्नत इलेक्ट्रोकैटलिस्ट विकसित कर रही है, जो सीधे समुद्री जल का उपयोग करके हाइड्रोजन उत्पादन को संभव बनाते हैं। इस प्रक्रिया से जल शुद्धिकरण की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, साथ ही औद्योगिक अपशिष्ट उपचार से जुड़ी चुनौतियाँ भी कम होती हैं। यह तकनीक ऊर्जा-सघन एनोडिक प्रतिक्रियाओं के स्थान पर मूल्यवर्धित प्रतिक्रियाओं को शामिल करके ग्रीन हाइड्रोजन की लागत को 90 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे लाने की क्षमता रखती है।

यह नई तकनीक क्लोरीन-ब्रोमीन रूपांतरण, इलेक्ट्रोड क्षरण और समुद्री जल में मौजूद तत्वों से होने वाली फाउलिंग एवं स्केलिंग जैसी दीर्घकालिक चुनौतियों का भी समाधान करती है। टीम संक्रमण धातु ऑक्साइड्स और लेयर्ड डबल हाइड्रॉक्साइड्स की पॉलीमॉर्फिक इंजीनियरिंग के माध्यम से किफायती, टिकाऊ और औद्योगिक स्तर तक विस्तार योग्य सामग्री विकसित कर रही है।

रोटेटिंग रिंग-डिस्क इलेक्ट्रोड (RRDE) विश्लेषण और गैस क्रोमैटोग्राफी जैसी उन्नत तकनीकों की मदद से प्रतिक्रियाओं, सह-उत्पादों और कैटलिस्ट दक्षता का गहन परीक्षण किया जा रहा है। डॉ. प्रशांत कुमार गुप्ता ने बताया कि समुद्री जल से सीधे हाइड्रोजन उत्पादन, सस्ते ग्रीन हाइड्रोजन की दिशा में सबसे बड़ा कदम है।

उन्होंने आगे कहा, “हमारा उद्देश्य ऐसे पदार्थ और इंटरफेस विकसित करना है जो वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत हों और वास्तविक उपयोग के लिए व्यावहारिक भी हों। हमारी टीम ऐसे स्केलेबल इलेक्ट्रोड और मजबूत कैटलिस्ट विकसित कर रही है, जो तटीय एवं जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों के लिए स्वच्छ ऊर्जा समाधान उपलब्ध कराएंगे।”

जिंक-आयन और जिंक-एयर बैटरियों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ

भारत नवीकरणीय ऊर्जा पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, ऐसे में सुरक्षित, किफायती और टिकाऊ ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में प्रचलित लिथियम-आयन बैटरियाँ महंगी हैं और उनसे संसाधन उपलब्धता एवं सुरक्षा संबंधी समस्याएँ जुड़ी हैं। वहीं, लेड-एसिड बैटरियाँ पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक और सीमित क्षमता वाली हैं।

E2CS लैब जलीय जिंक-आयन बैटरियों पर व्यापक शोध कर रही है। जिंक उच्च ऊर्जा घनत्व, प्रचुर उपलब्धता, सुरक्षा और कम लागत का विकल्प प्रदान करता है। टीम बेहतर दक्ष कैथोड सामग्री और इलेक्ट्रोलाइट एडिटिव विकसित कर रही है, जिनसे एनोड पर जंग एवं परत बनने की समस्या दूर हो सके। इस तकनीक से बैटरी की क्षमता लंबे चक्र तक बनाए रखना संभव होगा।

इसके साथ ही, शोधकर्ता पर्यावरणीय ऑक्सीजन का उपयोग करने वाली हाइब्रिड जिंक-एयर बैटरियों पर भी काम कर रहे हैं। ये बैटरियाँ अत्यधिक ऊर्जा घनत्व प्रदान करती हैं, जिससे वे हल्के और पोर्टेबल उपकरणों में उपयोगी हो सकती हैं। ये नवाचार भविष्य में बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण के लिए एक व्यवहार्य समाधान प्रस्तुत करते हैं।

डॉ. गुप्ता ने बताया, “जिंक आधारित बैटरियाँ भविष्य में बड़े पैमाने पर किफायती ऊर्जा भंडारण का आधार बन सकती हैं। एनोड से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों को हल कर तथा टिकाऊ इलेक्ट्रोलाइट प्रणाली विकसित कर हम प्रयोगशाला से व्यावहारिक उपयोग की दिशा में महत्वपूर्ण दूरी तय कर रहे हैं।”

सतत और ऊर्जा-सुरक्षित भविष्य की दिशा में योगदान

हाइड्रोजन उत्पादन और ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में यह समानांतर प्रगति आईआईटी जोधपुर को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्थान के रूप में स्थापित करती है। यह शोध भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, SDG-7 (सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा) और SDG-13 (क्लाइमेट एक्शन) के उद्देश्यों के अनुरूप है।

डॉ. गुप्ता ने अपने वक्तव्य में कहा, “हमारी प्रयोगशाला में तकनीक के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के समाधान विकसित किए जा रहे हैं। समुद्री जल से हाइड्रोजन उत्पादन हो या अगली पीढ़ी की बैटरियों का निर्माण – हमारा प्रयास वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को स्वच्छ और अधिक लचीला बनाने की दिशा में है।” यह शोध न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।