Rajasthan: सांभर झील में पेड़ काटने पर हाईकोर्ट की रोक: जंगल उजड़ने का आरोप

राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने सांभर झील (Sambhar Lake) के संवेदनशील क्षेत्र में सोलर प्लांट (Solar Plant) की आड़ में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई है। केंद्र, राज्य सरकार और कंपनियों को नोटिस जारी किए गए।

सांभर झील: पेड़ों की कटाई पर हाईकोर्ट की रोक

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने सांभर झील (Sambhar Lake) के संवेदनशील क्षेत्र में सोलर प्लांट (Solar Plant) की आड़ में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई है। केंद्र, राज्य सरकार और कंपनियों को नोटिस जारी किए गए।

विश्वभर में अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पारिस्थितिक महत्व के लिए प्रसिद्ध सांभर झील क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई पर राजस्थान हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।

हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी करते हुए फिलहाल इस क्षेत्र में किसी भी तरह की पेड़ कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।

सोलर प्लांट की आड़ में जंगल उजाड़ने का आरोप

यह मामला सांभर झील के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में प्रस्तावित सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट से जुड़ा है।

आरोप है कि इस परियोजना की आड़ में खजराली जंगल और हरे-भरे पेड़ों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस संजीत पुरोहित की खंडपीठ ने प्रकृति सारथी फाउंडेशन और पवन कुमार मोदी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचा कि विकास परियोजनाओं के नाम पर प्रकृति का विनाश किया जा रहा है, जो चिंताजनक है।

नावां और वेटलैंड क्षेत्रों में 'यथास्थिति' बनाए रखने का आदेश

कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि नावां (डीडवाना-कुचामन) और सांभर झील के आसपास के वेटलैंड क्षेत्रों में 'यथास्थिति' (Status Quo) बनाए रखी जाए।

इसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में किसी भी तरह की गतिविधि, विशेषकर पेड़ कटाई, पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है।

अदालत ने सख्त निर्देश दिए हैं कि इस दौरान एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा, ताकि पर्यावरण को और अधिक क्षति से बचाया जा सके और प्राकृतिक संतुलन बना रहे।

याचिकाकर्ता का तर्क: पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास

प्रकृति सारथी फाउंडेशन की ओर से कोर्ट में प्रस्तुत तर्कों में कहा गया कि सांभर झील से सटे नावा गांव और आसपास के वेटलैंड क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं।

इन क्षेत्रों को विशेष संरक्षण की आवश्यकता है, क्योंकि ये जैव विविधता के महत्वपूर्ण केंद्र हैं और कई प्रजातियों का घर हैं।

याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि 'खजराली जंगल' राजस्व रिकॉर्ड और मास्टर प्लान में स्पष्ट रूप से दर्ज है, लेकिन सोलर एनर्जी डेवलपमेंट के नाम पर इसे लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है।

उन्होंने यह भी बताया कि सरकारी अधिकारियों ने स्वयं इस क्षेत्र में पेड़ों को बचाने और 'वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017' का पालन सुनिश्चित करने के लिए कई बार पत्राचार किया है।

इसके बावजूद, जमीनी स्तर पर इन नियमों और निर्देशों की लगातार अनदेखी हो रही है, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है। यह विकास के नाम पर विनाश का एक स्पष्ट उदाहरण है।

खसरा नंबर 1174 पर विशेष ध्यान: कोई पेड़ नहीं कटेगा

मामले की गंभीरता को देखते हुए, खंडपीठ ने विशेष रूप से नावां गांव के खसरा नंबर 1174 का उल्लेख किया।

कोर्ट ने आदेश दिया कि इस खसरा नंबर और सांभर झील के अन्य वेटलैंड से सटे इलाकों में पेड़ों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए।

यह आदेश इस बात पर जोर देता है कि किसी भी कीमत पर इन संवेदनशील क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई नहीं होनी चाहिए, ताकि पर्यावरणीय क्षति को रोका जा सके।

केंद्र, राज्य सरकार और कंपनियों से मांगा जवाब

हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण मामले में राज्य सरकार और संबंधित कंपनियों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

यह कदम सुनिश्चित करेगा कि सभी हितधारक अपनी स्थिति स्पष्ट करें और भविष्य की कार्रवाई के लिए एक स्पष्ट रोडमैप तैयार हो, जो पर्यावरण के अनुकूल हो।

इन प्रमुख पक्षकारों को नोटिस जारी किए गए हैं:

  • ऊर्जा विभाग और वन विभाग सचिव (केंद्र व राज्य): ये विभाग ऊर्जा परियोजनाओं और वन संरक्षण के लिए जिम्मेदार हैं, और इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
  • राजस्थान रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन लिमिटेड: राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने वाली प्रमुख संस्था, जिस पर परियोजना के नियमों के पालन की जिम्मेदारी है।
  • मैसर्स एसजेवीएन ग्रीन एनर्जी लिमिटेड: वह कंपनी जो कथित तौर पर सांभर झील क्षेत्र में सोलर प्लांट विकसित कर रही है और जिस पर सीधे तौर पर आरोप हैं।
  • सांभर साल्ट्स लिमिटेड: सांभर झील क्षेत्र में नमक उत्पादन से जुड़ी कंपनी, जिसका इस क्षेत्र पर गहरा आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव हो सकता है।
  • जिला कलेक्टर (डीडवाना-कुचामन) और तहसीलदार नावां: स्थानीय प्रशासन के मुखिया, जो भूमि उपयोग और नियमों के पालन के लिए जिम्मेदार हैं और जिनकी निगरानी आवश्यक है।
  • नगरपालिका बोर्ड नावां और सीनियर टाउन प्लानर अजमेर: स्थानीय शहरी नियोजन और विकास से जुड़े प्राधिकरण, जो क्षेत्र के मास्टर प्लान के लिए जिम्मेदार हैं।
  • सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार: केंद्र सरकार का शीर्ष पर्यावरण नियामक निकाय, जो राष्ट्रीय पर्यावरण नीतियों का निर्धारण करता है।

इन सभी पक्षकारों से जवाब तलब कर कोर्ट मामले की तह तक जाना चाहता है और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पर्यावरण नियमों का उल्लंघन न हो, तथा सभी हितधारकों की जवाबदेही तय हो।

सांभर झील का पारिस्थितिक महत्व

सांभर झील भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय खारे पानी की झील है और इसका पारिस्थितिक महत्व अत्यंत विशाल है।

यह रामसर साइट (Ramsar Site) के रूप में भी नामित है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व का वेटलैंड बनाती है और इसके संरक्षण को अनिवार्य करती है।

यह झील प्रवासी पक्षियों, विशेषकर फ्लेमिंगो और पेलिकन, के लिए एक महत्वपूर्ण शीतकालीन प्रवास स्थल है, जो हर साल हजारों किलोमीटर का सफर तय कर यहां आते हैं।

इसके आसपास का क्षेत्र अद्वितीय जैव विविधता का घर है, जिसमें कई स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं।

वन और वेटलैंड इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न अंग हैं, जो झील के स्वास्थ्य और आसपास के पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस झील का पानी कई स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका का स्रोत भी है, जो नमक उत्पादन और मछली पकड़ने पर निर्भर करते हैं, जिससे यह क्षेत्र आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

पेड़ों की कटाई से न केवल स्थानीय वन्यजीवों का आवास नष्ट होता है, बल्कि मिट्टी का कटाव भी बढ़ता है, जिससे झील में गाद जमा होने और उसकी गहराई कम होने का खतरा बढ़ जाता है। यह जल गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है।

नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन

भारत सरकार नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर ऊर्जा, को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

यह जलवायु परिवर्तन से निपटने और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो देश के भविष्य के लिए आवश्यक है।

हालांकि, इन परियोजनाओं को लागू करते समय पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना और संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।

पर्यावरणविदों का तर्क है कि विकास परियोजनाओं को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए जिससे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को कम से कम नुकसान हो और जहां संभव हो, सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव भी उत्पन्न हों।

सांभर झील का मामला इस बात का एक ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना एक जटिल और महत्वपूर्ण चुनौती हो सकती है, जिसके लिए दूरदर्शिता और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।

हाईकोर्ट का यह आदेश एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए, बल्कि सतत विकास के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, जो दीर्घकालिक प्रगति के लिए अनिवार्य है।

वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 का महत्व

याचिकाकर्ताओं द्वारा उल्लिखित वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017, भारत में वेटलैंड्स के संरक्षण और बुद्धिमानी से उपयोग के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं।

ये नियम वेटलैंड्स के पारिस्थितिक चरित्र को बनाए रखने, उनके क्षरण को रोकने और उनके सतत प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं, जिसमें किसी भी हानिकारक गतिविधि पर प्रतिबंध शामिल है।

इन नियमों का उल्लंघन गंभीर पर्यावरणीय और कानूनी परिणाम पैदा कर सकता है, जिससे न केवल प्रकृति को नुकसान होता है, बल्कि कानूनी कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है।

हाईकोर्ट का यह आदेश इन नियमों के प्रवर्तन और संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा के प्रति न्यायिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

आगे क्या? पर्यावरणविदों की उम्मीदें

हाईकोर्ट के इस अंतरिम आदेश से पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय समुदायों में उम्मीद जगी है कि न्याय मिलेगा और प्रकृति का संरक्षण होगा।

यह मामला अब एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है कि कैसे विकास परियोजनाओं को पर्यावरण कानूनों का पालन करते हुए और पारिस्थितिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

चार सप्ताह के भीतर सभी पक्षकारों के जवाब दाखिल होने के बाद, कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई करेगा और एक ऐसा अंतिम निर्णय देगा जो पर्यावरण और विकास दोनों के हितों को संतुलित कर सके।

यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और संबंधित कंपनियां पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा विकास के बीच संतुलन बनाने के लिए क्या व्यवहार्य और टिकाऊ समाधान प्रस्तुत करती हैं, जिससे सांभर झील की अद्वितीय सुंदरता और पारिस्थितिकी तंत्र को बचाया जा सके।

सांभर झील का भविष्य और उसके आसपास के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा अब इस न्यायिक प्रक्रिया पर बहुत हद तक निर्भर करेगी, और यह निर्णय देश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।