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राजनैतिकी पर्यवेक्षकों के मुताबिक टेपिंग की जांच और संजीवनी पर सीएम की आक्रामकता पहले सधी चाल सी दिख रही थी। लेकिन ज्यों ही जांच और मानहानि में मुकदमा दर्ज हुआ सीएम भी और आक्रामक अंदाज़ में आगे बढ़ गए हैं।
कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति कुछ इस तरह करवट लेने वाली है कि अच्छे -अच्छे जादूगर चकित भी होंगे और चित भी हो जाएंगे।
Jaipur | मुख्यमंत्री का ट्वीटर अकाउंट हो और एक ही मुद्दे पर तड़ातड़ कई ट्वीट हों, तो समझ लेना चाहिए कि मसला सामान्य नहीं है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ट्वीटर अकाउंट से एक ही दिन में संजीवनी घोटाले को लेकर इतने ट्वीट हुए कि हर कोई यह समझने में लगा हुआ है कि एकाएक संजीवनी के पीड़ितों के प्रति दया भाव जागने और मुख्यमंत्री के आक्रामक होने के पीछे वजह क्या है ?
पहली वजह इस मामले में लगातार सीएम गहलोत के निशाने पर आ रहे केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा गहलोत के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया जाना है। लेकिन सिर्फ इसी वजह से गहलोत जैसा राजनीति का मंझा हुआ खिलाड़ी आक्रामक हो जाये, ऐसा संभव नहीं।
फिर सवाल यह कि फिर वजह क्या है ? इसी वजह को तलाशने की कोशिश की तो सामने आया वह टेलीफोन टेपिंग प्रकरण जिसकी जांच की जद में हाल फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विशेषाधिकारी -मीडिया लोकेश शर्मा हैं।
लेकिन सूत्रों की माने तो टेपिंग के तार इस कदर आगे बढे हैं कि सरकार के कई अधिकारीयों ही नहीं, खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी मुश्किल बढ़ने के आसार हैं।
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा सीएम अशोक गहलोत पर संजीवनी घोटाले के बहाने आरोपों को लेकर मानहानि का मुकदमा दर्ज किये जाने और सीएम के एक-एक कर आक्रामक अंदाज़ वाले कई ट्वीट के बाद,सत्ता के गलियारों में एक बार फिर टेलीफोन टेपिंग का मामला चर्चा के केंद्र में है।
चर्चा इस बात पर हो रही है कि मानहानि के मामले में कोई कार्रवाई हो न हो, दो साल पहले राजस्थान में हुई कथित टेलीफोन टेपिंग के तार अशोक गहलोत को उलझा सकते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि प्रकरण की अब तक हुई जांच में ऐसे कई तथ्य सामने आ गए हैं, जो सही साबित हुए तो न सिर्फ राजस्थान पुलिस के कई अधिकारीयों बल्कि राज्य सरकार के मुखिया अशोक गहलोत के लिए भी बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है।
प्रकरण क्या है ?
तथाकथित टेलीफोन टेपिंग का यह प्रकरण तीन साल पहले तब सामने आया, जब सरकार बचाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को होटल में विधायकों की बाड़ेबंदी करनी पडी थी।
ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि खुली बगावत कर, तत्कालीन पीसीसी चीफ और डिप्टी सीएम सचिन पायलट का धड़ा मानेसर में डेरा जमाये बैठा था। इस धड़े की मांग थी कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन किया जाये।
उसी दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने तीन ऑडियो टैप मीडिया के जरिये सार्वजनिक कराये थे। जिसमें सरकार को अस्थिर करने की बात सामने आई। आरोप था कि एक आडियो में यह आवाज कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की है।
सीएम गहलोत के विशेषाधिकारी लोकेश शर्मा के सौजन्य से ऑडियो क्लिप सार्वजनिक होने अगले दिन राजस्थान में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और स्पेशल आपरेशन ग्रुप की ओर से जांच प्रारंभ करते हुए दो प्राथमिकी दर्ज की गई।
कांग्रेस नेता और पार्टी के मुख्य सचेतक महेश जोशी की शिकायत पर एसओजी ने राज्य सरकार को गिराने की कथित साजिश बताते हुए केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और कांग्रेस के तत्कालीन विधायक भंवर लाल शर्मा के खिलाफ यह रिपोर्ट दर्ज की थी।
1 प्राथमिकी राजद्रोह की धाराओं में दर्ज की गयी, लेकिन बाद में कानूनी राय के बहाने विधायकों की खरीद-फरोख्त प्रकरण में दर्ज किए गये मुकदमे से राजद्रोह की धारा (124-A) हटा दी गयी। दलील यह थी कि प्रकरण खरीद फरोख्त और भ्र्ष्टाचार से जुड़ा है, लिहाजा राजद्रोह की धारा नहीं बनती।
लेकिन सूत्र इसकी वजह कुछ और ही बताते हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी -एनआईए राजस्थान एसओजी की ओर से जांच किए जा रहे राजद्रोह के मामले की जांच करने की तैयारी में थी।
केंद्रीय एजेंसी के हाथों जांच जाने की सूरत में वायरल ऑडियो के पीछे के तार खुलने और टेलीफोन टेपिंग का सच सामने आने की सम्भावना ही वह बड़ी वजह थी, जिसकी वजह से एसओजी बैकफुट पर आयी. एंटी करप्शन ब्यूरो के हवाले प्रकरण जारी रहा।
एफआईआर संख्या 47,48/2020 में राजद्रोह की धारा 124-ए को हटा भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं में जांच का फैसला कर उस वक्त तो अधिकारीयों ने सरकार को मुश्किल से उबार लिया, लेकिन टेपिंग का यही जिन्न अब कुछ इस तरह बाहर आने वाला है कि कई पुलिस अधिकारियों समेत खुद सीएम अशोक गहलोत की मुश्किल बढ़ सकती है।
अब तक हुई जांच से कई तथ्य सामने आये हैं। शुरूआती तौर पर टेलीफोन टेपिंग से इंकार करते रहे अशोक गहलोत सरकार के लिए पहली मुश्किल तब शुरू हुई जब बीजेपी विधायक कालीचरण सर्राफ के प्रश्न के जवाब में टेलीफोन टेपिंग की बात स्वीकार की गयी।
बीजेपी विधायक सर्राफ के प्रश्न के जवाब में सरकार ने माना कि सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा पहुंचा सकने वाले अपराध की घटनाओं को रोकने के लिए "टेलीफोन टैपिंग को एक सक्षम अधिकारी द्वारा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) नियम, 2007 की धारा 419 (ए) के प्रावधानों के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत मंजूरी दी गई है।’
सर्राफ का सवाल था-'‘क्या यह सच है कि पिछले दिनों फोन टैपिंग के मामले सामने आए हैं? यदि हां, तो किस कानून के तहत और किसके आदेश पर? पूरी जानकारी सदन के पटल पर रखें।"
सर्राफ के सवाल के जवाब में राजस्थान पुलिस द्वारा सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही उपरोक्त प्रावधान के तहत टेलीफोन इंटरसेप्ट किये जाने की बात कही गयी। इस जवाब के सामने आने के बाद केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने दिल्ली पुलिस में एक मुकदमा दर्ज कर गहलोत सरकार के लिए मुश्किलों की यह शुरुआत कर दी।
जांच के साथ यूँ बढ़ी मुश्किलें
इस एफआईआर के दर्ज होने के बाद दिल्ली पुलिस ने सीएम गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा को तलब कर लिया। अदालत से लम्बी राहत के बाद पुलिस पूछताछ में शर्मा ने दिल्ली पुलिस को जवाब दिया है कि उन्हें सोशल मीडिया के मार्फत यह वायरल ऑडियो मिला था।
सूत्रों के अनुसार लोकेश शर्मा ने जांच के दौरान टेपिंग के मुद्दे पर "कभी हाँ, कभी ना" के अंदाज में सच को कुछ इस तरह घुमाने की कोशिश की है कि दिल्ली पुलिस ने उन्ही तथ्यों और तर्कों के जरिये केस को मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है।
दिल्ली पुलिस द्वारा उस वक्त इस्तेमाल किये गए मोबाईल के बारे में जानकारी मांगी गयी तो बताया गया कि वह बहुत पहले गुम हो चुका है। यह दीगर बात है कि मोबाईल के IMEI नंबर की जांच कर पुलिस ने यह तथ्य पहले ही जुटा लिए कि मोबाईल कब से कब तक, किस नंबर पर काम करता रहा।
जांच के जरिये अब तक सामने आयी जानकारी सही साबित हुई तो चतुर सुजान अशोक गहलोत भी टेलीफोन टेपिंग के आरोप में अमेरिकी राष्ट्र्पति निक्सन या कर्नाटक के सीएम रामकृष्ण हेगड़े की तरह मुश्किल में फंस सकते हैं।
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को विपक्षी नेताओं का फोन टैप करवाने के आरोप में कुर्सी गंवानी पडी थी वहीँ 1988 में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
जांच में दिल्ली पुलिस के सामने अब तक आये तथ्य और केंद्रीय एजेंसियों को मिली जानकारियां गंभीर बताई जा रही है। इन जानकारियों के मुताबिक सचिन पायलट समर्थकों की बगावत के वक्त और उससे पहले निजी स्तर पर टेलीफोन टेपिंग की गयी थी । यह तथ्य सही साबित हुआ तो गहलोत की सार्वजानिक जीवन में कमाई गयी प्रतिष्ठा तो दावं पर लगेगी ही, कई आला अधिकारी भी इसमें नप सकते हैं।
सीएम के विशेषाधिकारी द्वारा ऑडियो सार्वजनिक किये जाने के बाद एसओजी ने राजद्रोह में मुक़दमा दर्ज किया गया। राजद्रोह की धारा में एफआईआर होने के बाद एनआईए सक्रिय होती दिखाई पडी तो राजद्रोह की धारा हटाई गयी।
ख़ुफ़िया इनपुट्स के मुताबिक इसी दौरान कॉल इंटरसेप्शन को सही साबित करने की खानापूर्ति भी की गयी। लेकिन इसी प्रक्रिया में कुछ ऐसे झोल हुए कि आने वाला वक्त कई अधिकारियों और सरकार को मुश्किल में फंसा सकता है।
जांच में जुटी दिल्ली पुलिस ओएसडी से पूछताछ के साथ -साथ इन तथ्यों को सलीके से जांचने में जुटी है। हालांकि, सरकार से जुड़े सूत्र ऐसी किसी भी हेराफेरी से लगातार इंकार करते रहे हैं। इंकार इस बात पर भी करते रहे हैं कि सरकार ने टेलीफोन टेपिंग की।
टेलीफोन टेपिंग से जुड़ा सबसे बड़ा वाटरगेट कांड
जब भी दुनिया के किसी भी हिस्से में कॉल इंटरसेप्शन यानि टेलीफोन टेपिंग की बात आती है,अमेरिका का वाटरगेट काण्ड जेहन में आ जाता है। इस प्रकरण की वजह से ही सन 1969 में अमेरिकी राष्ट्रपति बने रिचर्ड निक्सन को अपनी कुर्सी गंवानी पडी थी।
राष्ट्रपति के अगले चुनाव से पहले अपनी प्रतिद्वंद्वियों पर निगाह रखने की गरज से रिपब्लिकन पार्टी के नेता और तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने प्रतिदंद्वी डेमोक्रेटिक पार्टी के दफ्तर - वॉटरगेट हॉटेल कॉम्प्लेक्स में अपने लोगों द्वारा रिकॉर्डिंग डिवाइस लगवाकर जासूसी की थी।
मामला अमेरिकी अखबार -'वॉशिंगटन पोस्ट' के हवाले से सामने आया तो रिचर्ड निक्सन को राष्ट्रपति की कुर्सी गंवानी पडी थी।
भारत में ऐसा ही चर्चित प्रकरण कर्नाटक से जुड़ा है।
अमेरिकी वाटरगेट काण्ड की ही तरह फोन टेपिंग का सच सामने आने के बाद 1988 में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को अपना पद गंवाना पड़ा था।
तत्कालीन टेलिकॉम मिनिस्टर वीर बहादुर सिंह ने कर्नाटक पुलिस के डीआईजी द्वारा करीब 50 प्रमुख व्यक्तियों के फोन टेपिंग की जानकारी संसद में दी थी।
जनता पार्टी के सांसद मधु दंडवते और तेलगुदेशम पार्टी के सांसद सी. माधव रेड्डी द्वारा संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में टेलिकॉम मिनिस्टर वीर बहादुर सिंह ने यह सनसनीखेज खुलासा किया।
टेलीफोन सर्विलांस के शिकार बने लोगों में बड़े राजनेताओं के अलावा कई उद्योगपतियों के नाम शामिल थे। इस खुलासे के बीच ही कर्नाटक के प्रमुख नेता एचडी देवगौड़ा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के नेता अजित सिंह के बीच बातचीत की पूरी ट्रांसक्रिप्ट समाचार पत्रों में प्रकाशित हो गयी।
अपने तीखे तैवर के लिए पहचाने जाने वाले जनतापार्टी के तत्कालीन नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने इंटेलिजेंस के एक अधिकारी द्वारा कर्नाटक के कुछ नेताओं, कारोबारियों और पत्रकारों के फोन टैप करने की पुष्टि वाला एक पत्र जारी कर ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि रामकृष्ण हेगड़े को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
टेपिंग का सिलसिला पुराना है
जनता पार्टी के तत्कालीन नेता और पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर के आरोपों के बाद ऐसे ही मसले में सीबीआई ने जांच तक की थी। सीबीआई जांच में बड़े पैमाने पर विरोधी नेताओं के फोन सर्विलांस पर लेने का मामला सामने आया था।
जांच से स्पष्ट हुआ था कि प्रधान मंत्री राजीव गाँधी के कार्यकाल में 1984 से 1987 तक मंत्रीमंडल सहयोगियों, राजनेताओं,ट्रेड यूनियन के नेताओं और मजहबी नेताओं के फोन बग किये गए थे।
इन नेताओं में तत्कालीन मंत्री और केरल के मौजूदा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान,केसीपंत( तत्कालीन इस्पात एवं खान मंत्री ), तमिलनाडु के प्रमुख नेता करुणानिधि और जयललिता, गुजरात के प्रमुख नेता चिमनभाई पटेल और महाराष्ट्र के नेता एआर अंतुले समेत कई नेताओं के नाम शामिल थे।
फोन टेपिंग के दुरूपयोग पर 3 साल की सजा
ख़ास हालात में केंद्र और राज्य की जांच एजेंसियां टेलीफोन (मोबाइल और लैंडलाइन) को सर्विलांस पर ले, दो व्यक्तियों के बीच के संवाद को इंटरसेप्ट कर सकती है।
इतना ही नहीं जरुरत पड़ने पर वह ऐसे लोगों के पत्र और इंटरनेट (ईमेल्स, चैट आदि) कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट कर सकती है। इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट 1898 के सेक्शन 26 के तहत पत्र व्यवहार और इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 के सेक्शन 5(2) के तहत टेलीफोन को ये एजेंसीज सर्विलांस पर ले सकती है।
इसी तरह इंफर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के सेक्शन 69 के तहत और ई-मेल्स/चैट्स को रिकॉर्ड किया जा सकता है। लेकिन ऐसा तब ही संभव है, जब टेपिंग के पीछे जनहित और राष्ट्रहित जुड़े हों।
कोई व्यक्ति या संस्था देश की शांति, सुरक्षा, एकता और अन्य देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए फोन टेपिंग से पहले सम्बंधित एजेंसी या अधिकारी को केंद्र अथवा राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है।
टेपिंग की वजह सही नहीं हो तो ऐसा करने से सरकार मना कर सकती है। अवैध टेपिंग की सूरत में अधिकारीयों और सरकार के खिलाफ न सिर्फ कार्रवाई का अधिकार है, दोषी पाये जाने पर तीन साल की सजा का भी प्रावधान हैं।
पीयूसीएल द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनाए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि प्रत्येक व्यक्ति को फोन पर बात करने का अधिकार है और यह उस व्यक्ति को संविधान से मिले जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
बहरहाल, राजस्थान में की गयी टेलीफोन टेपिंग वैध थी या नहीं, जांच एजेंसियों ने इसी से जुड़े तार खंगाल आगे जांच की रणनीति बना ली है। जांच में सबसे पहला निशाना सीएम गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा पर है।
जांच इस बात पर आगे बढ़ेगी कि उन्होंने जो ऑडियो वायरल कर राजस्थान में सरकार गिराने की साजिश का कथित पर्दाफाश किया था वह रिकॉर्डिंग उन्हें कहाँ से मिली ?
यदि जांच एजेंसियों ने टेपिंग की थी तो यह अदालत में दिए जाने से पहले ही सीएम के एक कारिंदे तक कैसे और किसने पहुंचाई ? यदि रिकॉर्डिंग अवैध थी तो वह किसने की ?
मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी जैसे अहम पद पर बैठे लोकेश शर्मा ने इसका जवाब भी दिया है। जवाब था कि रिकॉर्डिंग सोशल मीडिया से मिली। लेकिन इस जवाब से आगे कि जांच कुछ इस तरह आगे बढ़ती नजर आ रही है कि जांच के तार कई अधिकारीयों और खुद मुख्यमंत्री तक आगे बढ़ने के आसार बन गए हैं।
राजनैतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक टेपिंग की जांच और संजीवनी पर सीएम की आक्रामकता पहले सधी चाल सी दिख रही थी। लेकिन ज्यों ही जांच और मानहानि में मुकदमा दर्ज हुआ सीएम भी और आक्रामक अंदाज़ में आगे बढ़ गए हैं।
ऐसे में सवाल यही है कि गहलोत पहले गजेंद्र सिंह शेखावत को संजीवनी घोटाले के बहाने चित्त करेंगे कि शेखावत टेपिंग के बहाने गहलोत को घेर ऐसा चक्रव्यूह बनाएंगे कि कथित टेपिंग में शामिल अफसर भी तौबा माँगते नजर आने लगें ?
कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति कुछ इस तरह करवट लेने वाली है कि अच्छे -अच्छे जादूगर चकित भी होंगे और चित भी हो जाएंगे।
किसने और किस हैसियत से पहुंचाई रिकॉर्डिंग
इस बीच सोशल मीडिया के जरिये सामने आये एक पत्र ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि गहलोत सरकार के काबिना मंत्री विश्वेन्द्र सिंह ,संजय अग्रवाल और प्रदीप सिंह के मोबाइल सर्विलांस पर थे । यानी,गजेंद्र सिंह शेखावत,भंवर लाल शर्मा के साथ विवादों में आये इन तीनों के नम्बर्स की रिकॉर्डिंग की गई थी । ऐसे में सवाल यह कि लोकेश शर्मा तक रिकॉर्डिंग किसने और किस हैसियत से पहुंचाई ?