Jaipur | एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ना केवल राजनीति के मंझे हुए शातिर खिलाडी माने जाते है बल्कि अपने विरोधियों को पस्त करने में उनका कोई मुकाबला नहीं. पवार की लम्बी राजनीतिक पारी में ऐसे अनेक मौके आए है जब पवार ने ना केवल अपने आप को सियासत का मंझा हुआ खिलाड़ी साबित किया है बल्कि अनेक मौको पर उन्होंने बहुत से क्षत्रपों को मैदान में पटखनी दी है.
ऐसा ही एक वाकया 1990 में हुआ जब शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. उस समय महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे सुशील कुमार शिंदे और महाराष्ट्र सहित देश की राजनीति में बढ़ता पंवार का कद ना तो राजीव गाँधी को रास आ रहा था और ना ही महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील कुमार शिंदे को. मौके का फायदा उठाकर राजीव गाँधी ने शरद पवार को ठिकाने लगाने की स्क्रिप्ट कुछ नाराज विधायकों के कंधे पर बन्दुक रखकर लिख दी.
शरद पवार को ठिकाने लगाने के इस प्लान को दिल्ली से समर्थन कर रहे थे राजीव गाँधी और ऊपर से इशारा पाकर महाराष्ट्र के कुछ विधायकों ने मुंबई में शरद पवार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर ली जिसका नेतृत्व कांग्रेस अध्यक्ष सुशील कुमार शिंदे कर रहे थे.
तय कहानी के मुताबिक एक दिन ये विधायक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर शरद पवार पर मोर्चा खोल देते है जिनमे पवार मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री भी शामिल थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले इन विधायकों ने ऐलान कर दिया कि वे शरद पवार के साथ काम नहीं कर सकते और पवार के महाराष्ट्र में बने रहने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.
शरद पवार को यह समझते देर नहीं लगी कि इस खेल की पूरी स्क्रिप्ट दिल्ली से लिखी जा रही है और राजीव गाँधी के इशारे पर यह सब खेल हो रहा है. तुरंत शरद पवार ने भी अपनी खेमेबंदी शुरु कर दी. मौके की तलाश में शीर्ष नेतृत्व ने भी मुंबई का रुख किया और अब शरद पवार को निपटाने के वास्तविक प्लान पर काम होना शुरू होता है.
यह हुआ कि महाराष्ट्र में चल रहे घमासान का समाधान महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटी की बैठक में होना चाहिए. दिल्ली से जी के मूपनार और गुलाम नबी आजाद को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया. सबकुछ तय स्क्रिप्ट के मुताबिक़ हो रहा था और कांग्रेस विधायकों को पहले ही मेसेज दिया गया कि कांग्रेस हाई कमांड खुद नेतृत्व परिवर्तन चाहता है.
दिल्ली से भेजे गए दोनों दुतो ने एक- एक कर विधायकों से उनके विचार जान लिए लेकिन तय हुआ कि इस मामले का सही फैसला तो वोटिंग करवाकर ही हो सकता है. क्योकि विधायकों ने पर्यवेक्षकों के सामने यह बात मुखरता से रख दी कि बिना वोटिंग के सही फैसले तक पहुँचना मुश्किल है और वे किसी थोपे गए फैसले को मानने वाले नहीं है.
जब वोटिंग हुई तो ऐसा कुछ हुआ कि कांग्रेस आलाकमान को मुंह की खानी पड़ी और शरद पवार ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि उनके पास सियासत की बिसात पर चली गई हर चाल का माकूल जवाब है. वोटिंग में 190 विधायकों ने शरद पवार के पक्ष में वोट डाला जबकि मात्र 20 विधायक ऐसे थे जो नेतृत्व परिवर्तन चाहते थे.
उस मीटिंग में वोटिंग की खबर जब बाहर लीक हुई तो महाराष्ट्र कांग्रेस मुख्यालय के बाहर का माहौल भी काफी गर्म हो गया. शरद पवार के समर्थक और कार्यकर्ता कांग्रेस ऑफिस के बाहर भारी संख्या में जमा हो गए. जब वोटिंग का रिजल्ट आया तो शरद पवार के खिलाफ वोट डालने वाले विधायकों के सार्थ कोई अप्रिय घटना न हो जाए इसके लिए उन बीस विधायकों को पुलिस सुरक्षा में घर पहुंचाया गया.
दिल्ली से भेजे दोनों पर्यवेक्षकों ने जब राजीव गाँधी को शरद पवार के पीछे विधायकों सहित कार्यकर्ताओं और समर्थको का व्यापक समर्थन होने की सूचना दी तो शरद पवार के पास एम एल पोतेदार का फोन आया कि राजीव गाँधी उनसे मिलना चाहते है.
जब शरद पवार राजीव गाँधी से मिलने के लिए गए तो राजीव ने उनसे व्यंगात्मक अंदाज में पूछा कि "तो क्या हो रहा है"
'आप हमसे अच्छा जानते है" आपके निर्देशानुसार मुंबई में सबने कुशलतापूर्वक काम किया परन्तु दुर्भाग्यवश वह समुचित समर्थन नहीं जुटा सके.
शरद पवार के तल्ख़ जवाब के बाद राजीव गाँधी के पास इस घटना में शामिल होने को स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था लेकिन अपनी बात संभालते हुए राजीव गाँधी ने कहा कि नहीं ! नहीं ! मैंने उनसे वृक्ष को मात्रा हिलाने के लिए कहा था जड़ से उखाड़ने के लिए नहीं !