Highlights
- उन्हें पहले अख़्तरी बाई फैजाबादी के नाम से जाना जाता था बाद में बेगम अख्तर के नाम से जमाने मे मशहूर हुई
- बेगम अख्तर की गजलें बचपन की तकलीफें और कच्ची उम्र में हुए बलात्कार के दर्द को बयां करती है
- कैफे आजमी और जिगर मुरादाबादी से उनकी अच्छी दोस्ती थी और उन्हें परेशान करने के लिए अक्सर तंज कसा करती थी
- एक बार ट्रेन में यात्रा करते हुए हुआ जब उनका सिगरेट का डिब्बा खत्म हो गया और स्टेशन पर उन्हें सिगरेट नहीं मिली तो बेगम साहिबा ने गार्ड की झंडी छीनकर उससे सिगरेट मंगवाई तब जाकर ट्रेन चलने दी
"तूने बुत-ए-हरजाई कुछ ऐसी अदा पाई
तकता है तेरी ओर हर एक तमाशाई"
कांपते पैर और मींची आंखों से अख़्तरी बाई फैजाबादी के कंठ से जब यह गजल अनायास ही निकल गई तो सामने बैठे हजारों श्रोताओं के मुंह से वाह निकल पड़ा और संगीत की दुनिया ने बेगम अख्तर को पहचाना।
बेगम अख्तर की तकदीर उन्हें इस महफ़िल में ले आई थी। 1949 में एक शो बिहार में आये भूकम्प पीड़ितों के लिए चंदा जुटाने के लिए किया गया था। दर्शकों में निराशा तब हो गई जब एक मशहूर शास्त्रीय गायक ने ऐन वक्त पर आने से मना कर दिया। उस्ताद मोहम्मद अत्ता खान भी महफ़िल में तशरीफ़ लाये थे। नजाकत को भांपकर उस्ताद ने कहा कि इस मौके पर उनकी एक शागिर्द को मंच पर उतार दिया जाए तो जो होगा देखा जाएगा।
अपना कलाम गाकर किरदार मंच से ओझल हो गया।परदा गिर चुका था लेकिन तालियों का शोर बेगम अख्तर की आवाज की बागनी बयां कर रहा था।
तभी एक महिला बेगम अख्तर के पास आई और उसे उपहार देकर कहा कल मुझे सुनने आना। वो महिला कोई और नहीं उस जमाने की सरोजनी नायडू थी।
मशहूर गजल गायिका बेगम अख्तर का जन्म सात अक्टूबर को फैजाबाद में माँ तवायफ़ की कोख से हुआ। जब उनके पिता ने तवायफ़ को छोड़ दिया तो माँ के साथ अकेले रहने लगी।
माँ उन्हें पढ़ा लिखा कर उनकी शादी अच्छे घराने में करना चाहती थी लेकिन उनका मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता था।
उन्हें पहले अख़्तरी बाई फैजाबादी के नाम से जाना जाता था बाद में बेगम अख्तर के नाम से जमाने मे मशहूर हुई। बचपन में बेगम अख्तर को बिब्बी के नाम से जाना जाता था।
माँ चाहती थी कि अच्छे घराने में शादी हो जाए
बेगम अख्तर की गजलें बचपन की तकलीफें और कच्ची उम्र में हुए बलात्कार के दर्द को बयां करती है।
बिहार के एक राजा ने कद्रदान बनने के बहाने कच्ची उम्र में ही उनका बलात्कार किया। लेकिन बेगम अख्तर ने हार नहीं मानी और प्रमुख संगीत घरानों से संगीत की तालीम ली।
पटियाला घराने के उस्ताद मोहम्मद अत्ता खान उन्हें शास्त्रीय संगीत में गढ़ना चाहते थे लेकिन बिब्बी को गजले और ठुमरी रास आती थी। उन्होंने ग्वालियर घराने से लफ्जों की रुमानियत सीखी।
धीरे धीरे बेगम साहिबा का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा और उन्हें फिल्मों में अभिनय के ऑफर मिलने लगे।
उन्होंने नल और दमयंती, एक दिन की बादशाहत, मुमताज़ बेगम, अमीना, जवानी का नशा और कई फ़िल्मों में काम किया।
जल्द ही बेगम साहिबा का अभिनय की दुनिया से मन उचट गया और वे ये सब छोड़कर तहजीब के शहर लखनऊ चली आयी।
लेकिन महान फ़िल्म निर्माता महबूब उनके पीछे पीछे वहां तक आ गए और अपनी एक फ़िल्म में गाने के लिए बड़ी मिन्नते करने के बाद उनसे हाँ करवा पाये।
बेगम अख्तर की एक ग़ज़ल है "दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे" इतना मशहूर हुआ कि एचएमवी के रिकार्ड्स कम पड़ गए। जब बाजार में मांग के हिसाब से सप्लाई करना मुश्किल हो गया तो कंपनी ने इंग्लैंड से नया रिकॉर्ड प्लांट ही मंगा डाला।
शरारती ऐसी कि कैफे आजमी को भी नहीं बख्शा
बेगम साहिबा खुश मिजाज और बेतरतीब ढंग से जीने वाली शख्सियत थी। कैफे आजमी और जिगर मुरादाबादी से उनकी अच्छी दोस्ती थी और उन्हें परेशान करने के लिए अक्सर तंज कसा करती थी। एक बार कैफे आजमी को उन्होंने झूठ बोलकर होटल में बुलवा लिया और होटल के कमरे में बंद कर दिया।
1945 में उन्होंने परिवार के खिलाफ जाकर बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से शादी की थी। पति के कहने पर उन्होंने शादी के बाद गाना छोड़ दिया। गाना छोड़ने के बाद वे बीमार रहने लगी। यहां तक आते आते उन्हें सिगरेट और शराब पीने की लत लग गई थी।
फ़िक्र नहीं जिंदगी को धुंए में उदा दिया
उन्हें शराब और सिगरेट की इस कदर लत लग गई की वे चैन स्मोकर बन गई। इसी कारण उन्होंने पाकीजा फ़िल्म छः बार देखी। वो सिगरेट पीने सिनेमा हॉल से बाहर आ जाती और जब तक वापस आती तब तक फ़िल्म निकल जाती।
ऐसा ही किस्सा एक बार ट्रेन में यात्रा करते हुए हुआ जब उनका सिगरेट का डिब्बा खत्म हो गया और स्टेशन पर उन्हें सिगरेट नहीं मिली तो बेगम साहिबा ने गार्ड की झंडी छीनकर उससे सिगरेट मंगवाई तब जाकर ट्रेन चलने दी।
जब बेगम साहिबा कश्मीर गई तो कुछ फौजी अफसरों ने उन्हें व्हिस्की की महंगी बोतले गिफ्ट की। जिस शाम को होटल में शराब पीने के लिए उन्होंने अपनी शार्गिद से ग्लास मंगवाया तो गिलास देखकर बेगम साहिबा ने कहा कि नीचे देखो कोई ढंग का गिलास हो तो लेकर आओ क्योंकि महंगी शराब हमेशा अच्छे गिलास में पीनी चाहिए।
डॉक्टरों की सलाह पर उनके पति ने उन्हें दोबारा गाने की इजाजत दी। उन्होंने रेडियो के साथ स्टेज परफॉर्मेंस में देनी शुरू की।
बात 70 के दशक की है जब बेगम अख्तर अहमदाबाद में प्रस्तुति दे रही थीं। इस दौरान उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और वे अच्छा नहीं गा पा रही थी। उन्होंने बेहतरीन गाने की चाह में ज्यादा जोर से सुर लगा दिए और उनकी तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। 30 अक्टूबर, 1974 को हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हो गया।