Bihar Election: बिहार में गहलोत का जादू: महागठबंधन में सुलह की कहानी

बिहार में गहलोत का जादू: महागठबंधन में सुलह की कहानी
Ashok Gehlot and Tejasvi Yadav
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Highlights

  • गहलोत ने तेजस्वी यादव से मुलाकात कर सीट बंटवारे का विवाद सुलझाया।
  • महागठबंधन के एकजुट होने का संदेश दिया गया।
  • तेजस्वी यादव को मुख्य प्रचार नेता के रूप में पेश करने पर सहमति बनी।
  • कुछ सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट' जारी रहेगी, पर गठबंधन मजबूत।

पटना: राजस्थान (Rajasthan) के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने बिहार (Bihar) में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से मुलाकात कर महागठबंधन (Mahagathbandhan) के सीट बंटवारे का विवाद सुलझाया।

बिहार की सियासत में गहलोत का हस्तक्षेप: महागठबंधन में सुलह की कोशिश

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही राज्य का राजनीतिक तापमान तेजी से बढ़ गया है।

इस चुनावी गहमागहमी के बीच, विपक्षी दलों के महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान ने गंभीर रूप ले लिया था।

गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे और अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ रही थी।

इसी नाजुक मोड़ पर, कांग्रेस के एक अनुभवी और कद्दावर नेता, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, बिहार की राजधानी पटना पहुंचे।

उनकी इस अचानक यात्रा का मुख्य मकसद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के युवा और प्रभावशाली नेता तेजस्वी यादव तथा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से सीधी बातचीत करना था।

गहलोत का प्राथमिक लक्ष्य सीट बंटवारे से जुड़े सभी लंबित विवादों को सुलझाना और महागठबंधन को एक मजबूत तथा अटूट इकाई के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत करना था।

पिछले कुछ हफ्तों से कांग्रेस और राजद के बीच कई सीटों पर सहमति नहीं बन पा रही थी, जिससे गठबंधन में तनाव बढ़ रहा था।

कुछ सीटों पर तो दोनों प्रमुख दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार भी उतार दिए थे, जिससे 'फ्रेंडली फाइट' की स्थिति बन गई थी, जो गठबंधन की एकजुटता के लिए शुभ संकेत नहीं था।

गहलोत-तेजस्वी मुलाकात: अंदरूनी कहानी और समाधान

महागठबंधन में बढ़ती दरार को देखते हुए, कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत को विशेष रूप से पटना भेजा।

उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे तेजस्वी यादव से सीधे संवाद स्थापित करें और गठबंधन के भीतर पनप रहे तनाव को प्रभावी ढंग से कम करें।

गहलोत ने तेजस्वी यादव के साथ लगभग एक घंटे तक चली एक महत्वपूर्ण और गहन बैठक की।

इस उच्चस्तरीय मुलाकात में राजद प्रमुख लालू यादव भी कुछ समय के लिए शामिल हुए, जिससे बैठक का महत्व और बढ़ गया।

बैठक के समापन के बाद, अशोक गहलोत ने मीडिया से बात करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि महागठबंधन पूरी तरह से एकजुट है और सभी मतभेद सुलझा लिए गए हैं।

उन्होंने आश्वस्त किया कि बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से केवल 5-10 सीटों पर ही हल्की-फुल्की गड़बड़ी है, जबकि बाकी सभी सीटों पर सहमति बन चुकी है।

कांग्रेस का लचीला रुख और तेजस्वी का आश्वासन

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अशोक गहलोत ने कांग्रेस के स्थानीय नेताओं, विशेषकर बिहार प्रभारी कृष्ण अलवारू को महत्वपूर्ण सलाह दी।

उन्होंने समझाया कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की राजनीतिक स्थिति काफी मजबूत है और ऐसे में गठबंधन के व्यापक हित में थोड़ा लचीला रुख अपनाना ही समझदारी होगी।

गहलोत ने कांग्रेस नेताओं को गठबंधन की स्थिरता और जीत के लिए झुकने का महत्व समझाया।

दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस को पूरा सम्मान देने का भरोसा दिया।

उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि आगामी चुनाव प्रचार में दोनों दल कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे और एक साथ नजर आएंगे।

इस बैठक में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया: तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्य प्रचार नेता के रूप में पेश करने पर सहमति बनी।

कांग्रेस की ओर से यह तर्क दिया गया कि तेजस्वी को 'युवा और गतिशील चेहरा' बनाकर प्रस्तुत करने से गठबंधन को चुनाव में व्यापक जनसमर्थन प्राप्त होगा।

महागठबंधन की एकजुटता का संदेश और 'डैमेज कंट्रोल' रणनीति

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया में यह खबरें तेजी से फैल रही थीं कि महागठबंधन टूट की कगार पर है।

गहलोत-तेजस्वी की इस महत्वपूर्ण बैठक का एक बड़ा उद्देश्य जनता को यह स्पष्ट और सशक्त संदेश देना था कि गठबंधन पूरी तरह से एकजुट है।

यह मुलाकात यह भी प्रदर्शित करती है कि सभी घटक दल एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे और भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ एक मजबूत चुनौती पेश करेंगे।

वास्तव में, नामांकन प्रक्रिया और टिकट वितरण के आखिरी दौर में कांग्रेस और राजद के बीच कई सीटों पर विवाद अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया था।

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से शिकायत की थी कि उन्हें 'कमजोर या कम जीतने वाली सीटें' दी गई हैं।

इसके विपरीत, राजद के नेताओं का मानना था कि कांग्रेस जरूरत से ज्यादा सीटों की मांग कर रही है, जो उनकी जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती।

यह अंदरूनी खींचतान मीडिया में खुलकर आने लगी थी, जिससे महागठबंधन की समग्र छवि पर नकारात्मक असर पड़ रहा था।

ऐसे में, अशोक गहलोत का पटना आना और एक संयमित तथा सुलह कराने वाले चेहरे के रूप में आगे आना, कांग्रेस पार्टी हाईकमान की एक सोची-समझी 'डैमेज कंट्रोल' रणनीति का हिस्सा था।

मुलाकात के बड़े संदेश और राजनीतिक निहितार्थ

इस उच्चस्तरीय मुलाकात से बिहार की राजनीति में कई बड़े और दूरगामी राजनीतिक संदेश गए हैं।

पहला महत्वपूर्ण संदेश यह है कि कांग्रेस अब भी महागठबंधन में 'सीनियर पार्टनर' की भूमिका निभाना चाहती है, अपनी वरिष्ठता और अनुभव का प्रदर्शन करते हुए।

हालांकि, इसके साथ ही वह तेजस्वी यादव जैसे युवा और लोकप्रिय नेता को नेतृत्व का मौका देने में भी पीछे नहीं है, जो भविष्य की राजनीति के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

दूसरा संदेश यह कि बिहार की राजनीति में अशोक गहलोत जैसे अनुभवी और सुलझे हुए नेता की मौजूदगी से कांग्रेस को 'स्थिर और जिम्मेदार' पार्टी के रूप में खुद को प्रस्तुत करने का अवसर मिला है।

तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश यह है कि इस मुलाकात ने गठबंधन के अंदर चल रहे टूटन और बिखराव के माहौल को काफी हद तक थाम दिया है।

इस बैठक का सीधा और तात्कालिक असर यह हुआ कि कांग्रेस और राजद ने कई विवादित सीटों पर अंततः समझौता कर लिया।

हालांकि, अभी भी 5-6 सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट' की स्थिति बनी रहेगी, लेकिन अब कम से कम यह स्पष्ट संदेश चला गया है कि महागठबंधन बिखर नहीं रहा है, बल्कि एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा।

राजनीतिक तौर पर यह मुलाकात तेजस्वी यादव को और अधिक मजबूत बनाती है।

अब वे न सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल के निर्विवाद नेता हैं, बल्कि पूरे महागठबंधन के प्रचार की केंद्रीय और प्रमुख भूमिका में भी हैं।

आगे की रणनीति और आगामी चुनौतियाँ

अशोक गहलोत की इस सफल बैठक के बाद, अब कांग्रेस और राजद मिलकर संयुक्त रैलियां आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

इसके साथ ही, वे एक साझा घोषणापत्र भी जारी करने की तैयारी में हैं, जिसमें गठबंधन के साझा एजेंडे को प्रस्तुत किया जाएगा।

हालांकि, यह स्वीकार करना होगा कि अंदरूनी असहमति अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है और कुछ छोटी-मोटी चुनौतियाँ अभी भी बाकी हैं।

लेकिन गहलोत-तेजस्वी की इस महत्वपूर्ण मुलाकात ने महागठबंधन को फिलहाल एक बड़ी राजनीतिक राहत प्रदान की है।

अब देखना यह होगा कि यह 'एकजुटता की तस्वीर' आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में वोटों में बदल पाती है या नहीं।

बिहार की सियासत में हर कदम एक गहरा राजनीतिक संकेत होता है और अशोक गहलोत-तेजस्वी यादव की यह मुलाकात, निश्चित रूप से, कई महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेतों से भरी हुई है।

इस मुलाकात ने महागठबंधन के भविष्य के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगाई है, लेकिन गठबंधन की असली परीक्षा चुनाव के अंतिम नतीजों में ही होगी।

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