अमित शाह आज भरतपुर : पूर्वी राजस्थान में कमल खिलाने की तैयारी में अमित शाह, क्या दिगम्बर सिंह की कमी को महसूस कर रही है भाजपा

पूर्वी राजस्थान में कमल खिलाने की तैयारी में अमित शाह, क्या दिगम्बर सिंह की कमी को महसूस कर रही है भाजपा
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Highlights

  • भरतपुर संभाग में भाजपा की खराब परफॉर्मेंस के कारण पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई
  • भाजपा ने भरतपुर संभाग और उससे लगते जिलों में मतदाताओं को साधने की कोशिश तेज कर दी है
  • पूर्वी राजस्थान कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है
  • गुर्जर-मीणा बाहुल्य इस क्षेत्र से कांग्रेस के एक से बढ़कर एक दिग्गज हुए हैं
  • भाजपा की तरफ से ऐसा कोई बड़ा चेहरा अभी तक नहीं हुआ जो इस क्षेत्र में पार्टी के लिए कोई बड़ा जनाधार खड़ा कर पाया हो
  • राजेश पायलट का राजस्थान की राजनीति में पदार्पण पूर्वी राजस्थान के समीकरणों में एक बड़ा उलटफेर था

Jaipur | केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का आज भरतपुर दौरा बहुत मायने में खास माना जा रहा है. बीते विधानसभा चुनाव में भरतपुर संभाग में भाजपा की खराब परफॉर्मेंस के कारण पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई. 

ऐसे में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने भरतपुर संभाग और उससे लगते जिलों में मतदाताओं को साधने की कोशिश तेज कर दी है. 

आज अमित शाह बूथ अध्यक्ष महासम्मेलन को सम्बोधित करने के लिए भरतपुर आए हैं और इस दौरान वे भाजपा कार्यकर्ताओं से संवाद करने वाले हैं. राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अमित शाह के इस भरतपुर दौरे को सियासी लिहाज से बहुत खास माना जा रहा है.

बूथ अध्यक्ष से संवाद करके पूर्वी राजस्थान में कमजोर भाजपा ना केवल अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है बल्कि आने वाले चुनाव में वहां जोर-शोर से कमल खिलाने की कोशिश भी है. 

 लोहागढ़ नहीं जीत पाई थी भाजपा 

अगर बीते विधानसभा चुनावों के नतीजों की बात करें तो भाजपा की परफॉर्मेंस भरतपुर संभाग में सबसे ज्यादा ख़राब रही थी. इस संभाग की कुल 19 विधानसभा सीटों में से भाजपा को केवल एक सीट ही हासिल हुई और भरतपुर से लगते दौसा जिले की पांच सीटों में से भी भाजपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई 

जबकि कांग्रेस ने इस क्षेत्र में बड़ी बढ़त हासिल की थी. इसलिए बीते चुनाव में हुई गलती को भाजपा फिर से नहीं दोहराना चाहती और अभी से पूर्वी राजस्थान को साधने की कोशिशे तेज हो चुकी हैं. 

क्या कहते हैं पूर्वी राजस्थान के समीकरण 

अगर पूर्वी राजस्थान के समीकरणों की बात की जाए तो यह पूरा क्षेत्र ही कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. जब भी राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनती है तो पूर्वी राजस्थान से ही सबसे ज्यादा बढ़त मिलती है.

गुर्जर-मीणा बाहुल्य इस क्षेत्र से कांग्रेस के एक से बढ़कर एक दिग्गज हुए हैं जबकि भाजपा की तरफ से ऐसा कोई बड़ा चेहरा अभी तक नहीं हुआ जो इस क्षेत्र में पार्टी के लिए कोई बड़ा जनाधार खड़ा कर पाया हो.

अगर कांग्रेस के दिग्गज़ों की बात करें तो राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल पूर्वी राजस्थान में आने वाले जिले दौसा के महवा से विधायक बनकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. पालीवाल का ना केवल दौसा बल्कि करौली और भरतपुर जिलों तक प्रभाव था. वे बाद में हिंडौन लोकसभा सीट से सांसद भी रहे.

इसके अलावा भरतपुर प्रजामण्डल के नेता मास्टर आदित्येन्द्र ने आजादी के बाद से ही उस क्षेत्र में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया. मास्टर आदित्येन्द्र लम्बे समय तक राजस्थान की राजनीति में सक्रिय रहे और कांग्रेस के बड़े चेहरों में गिने जाते थे. 

दौसा के पंडित नवलकिशोर शास्त्री भी केन्द्र की राजनीति में बड़ा दखल रखते थे. इसके अलावा भरतपुर के ही कुंवर नटवर सिंह कांग्रेस में रहते हुए देश के विदेश मंत्री के पद तक पहुंचे. 

राजेश पायलट ने बदल दिए पूर्वी राजस्थान के समीकरण 

कांग्रेस के दिग्गज राजेश पायलट का राजस्थान की राजनीति में पदार्पण पूर्वी राजस्थान के समीकरणों में एक बड़ा उलटफेर था. राजेश पायलट ने ना केवल गुर्जर समुदाय को कांग्रेस का कोर वोटबैंक बना दिया बल्कि उस क्षेत्र को कांग्रेस के एक ऐसे किले में तब्दील कर दिया जिसे भेदना भाजपा के लिए अब तक मुश्किल हो रहा है. 

जब सचिन पायलट के हाथ में बीते विधानसभा चुनाव की कमान थी तो उन्हें अपने पिता की बनाई जमीन का बड़ा फायदा मिला और सचिन पायलट को राजस्थान की सियासत में जमीनी नेता बनाने में इसी क्षेत्र का सबसे बड़ा योगदान है. 

भैरो सिंह शेखावत ने खड़ा किया भाजपा जनाधार लेकिन पार्टी उसे भुना नहीं पाई 

जब भैरो सिंह शेखावत राजस्थान की राजनीति के बड़े क्षत्रप थे तो उन्होंने पूर्वी राजस्थान में भाजपा को मजबूत करने में बड़ी मेहनत और इस क्षेत्र के समीकरणों को साधने के लिए शेखावत ने वसुंधरा राजे का राजनीति में पदार्पण करवाकर 1985 के विधानसभा चुनावों में धौलपुर सीट से टिकिट दिया. 

राजे ने ना केवल भाजपा की सीट निकाली बल्कि अगले विधानसभा चुनाव के लिए भी उस सीट को भाजपा के लिए सुरक्षित कर दिया. 1990 के विधानसभा चुनावों में खुद भैरों सिंह शेखावत ने धौलपुर सीट से चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे. 

लेकिन उसके बाद यह सीट फिर से भाजपा के हाथ से निकल गई और कांग्रेस के खाते में चली गई. 

किरोड़ी फैक्टर भाजपा के लिए दुधारू गाय साबित हुआ 

पूर्वी राजस्थान गुर्जर-मीणा बाहुल्य इलाका है. यहां की हर सीट को ये दोनों समुदाय बड़े स्तर पर ना केवल प्रभावित करते हैं बल्कि चुनाव निकालने की कंडीशन में हैं. इन हालातों को साधने के लिए राजेश पायलट के पीछे गए गुर्जर समुदाय की भरपाई करने भैरो सिंह शेखावत ने किरोड़ीलाल मीणा को स्थापित किया. 

धीरे-धीरे किरोड़ीलाल मीणा ना केवल एक बड़े क्षत्रप बनकर उभरे बल्कि मीणा समुदाय के वोटबैंक को भी भाजपा की तरफ खींचकर ले गए. गुर्जर आरक्षण आंदोलन के कारण गुर्जर-मीणा समुदाय के बीच आई दूरियों का भाजपा ने जमकर फायदा उठाया. 

लेकिन फिर राजनीतिक हालात बदले और वसुंधरा राजे से अदावत के चलते पार्टी से अलग हुए किरोड़ीलाल मीणा ने अलग पार्टी बना ली. खुद के बूते किरोड़ी कोई खास कमाल तो नहीं कर पाए बल्कि जबतक उनकी भाजपा में  वापसी हुई तबतक धरातल पर किरोड़ी का वैसा प्रभाव भी नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था. 

उसी का परिणाम है कि बीते विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र के लिए भाजपा ने किरोड़ीलाल को ना केवल फ्री-हैण्ड किया बल्कि टिकिट वितरण भी उनसे रायशुमारी के बाद ही किया. उसके बाद भी किरोड़ी वैसा जादू बीते विधानसभा चुनाव में नहीं दिखा पाए जिसके लिए वे जाने जाते थे. 

दिगम्बर सिंह की कमी खल रही है भाजपा को लेकिन फिलहाल कोई विकल्प नहीं 

किरोड़ीलाल मीणा के घटते प्रभाव और पूर्व मंत्री दिगम्बर सिंह के निधन के बाद फिलहाल भाजपा के पास पूर्वी राजस्थान में कोई खास प्रभावी चेहरा नहीं है, जो एक बड़े वोटबैंक को साधने का जनाधार रखता है. 

ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा होती है कि अगर दिगम्बर सिंह आज मौजूद होते तो भाजपा के लिए पूर्वी राजस्थान में एक बड़ा चेहरा होते. 

गौरतलब है कि डीग-कुम्हेर से विधायक चुने जाने वाले दिगम्बर सिंह ना केवल वसुंधरा राजे के सबसे फेवरेट थे बल्कि जिस तरह से राजनीति में उनका कद बढ़ रहा था वह पूर्वी राजस्थान के समीकरणों को पलट सकता था. 

दिगम्बर सिंह कितने प्रभावी थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी ने उन्हें वसुंधरा सरकार में अघोषित उप-मुख्यमंत्री और सुपर कैबिनेट मंत्री कहा था.

2013 का चुनाव विश्वेन्द्र सिंह से हारने के बाद जब भाजपा की सरकार बनी तो उसमें दिगम्बर सिंह को शामिल करने की मांग उठी. पार्टी ने सिंह को उपचुनाव भी लड़वाया लेकिन वे सफल नहीं हो सके. 

आज जबकि अमित शाह बूथ अध्यक्ष महासम्मेलन को सम्बोधित कर पूर्वी राजस्थान में भाजपा को जीत का मंत्र देने वाले हैं तो ऐसे में चर्चा है कि भाजपा आज भी उस क्षेत्र में दिगम्बर सिंह की कमी को महसूस कर रही है बल्कि उनके विकल्प को तलाशने में भी नाकाम रही है.  

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