नीलू की कलम से: पुस्तक समीक्षा : क्या कहती हो

पुस्तक समीक्षा : क्या कहती हो
book review by neelu shekhawat
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Highlights

माज़ी का दर्द और इश्क़ के अफ़साने शायर की कलम ,उसके गज़ल कहने के अन्दाज़ को बिल्कुल अलग, उम्दा और खास बना देते है

यह शेर उन्होंने कितनी सादगी के साथ कह दिया है वो खुद भी नहीं जानते होंगे

प्रसिद्ध साहित्यकार टी.एस. इलियट ने एक जगह लिखा है कि साहित्यकार जो भी लिखता है, वह अपने समय को ही लिख रहा होता है

समय को जाने-समझे बगैर कोई गीत-कविता अथवा ग़ज़ल नहीं लिखी जा सकती

"फिर ये न कहना ख़बर नहीं थी
मैं तुमको पहले बता रहा हूं..." जैसी सैंकड़ों नज्मों का गुलदस्ता आज मेरे हाथ में है जिन्हें जितनी मर्तबा पढ़ो,लफ्जों से इश्क़ होता जाए।

खैर!
ख़बर मिल गई थी प्रकाशन की,विमोचन की भी और भव्य आयोजन की भी किंतु परिस्थितिवश मैं अब तक इसके  रसास्वादन से वंचित थी 
किंतु आज प्रथमावलोकन का प्राप्त हुआ।

"बीज हूं मैं" को काव्य प्रेमियों से अपार स्नेह मिलने के पश्चात श्रद्धेय डॉ दिलीप कुमार पारीक सर का नया काव्य संग्रह "क्या कहती हो"
भी सहृदय जन को समर्पित किया जा चुका है जो आपका दूसरा संग्रह है।

कवि ने जब अपनी प्रथम रचना में कहा कि_" नया कहां से लाऊं मैं?" तो लगा कि अभी थोड़ा इंतजार और करना पड़ेगा किंतु "मैं फिर से लौट के आऊंगा" कविता ने आश्वस्त किया कि अब यह काव्य सरणी अनवरत प्रवाहित होती रहने वाली है।

असल में आपका संग्रह "क्या कहती हो" अपनी आत्मजा विदुषी पारीक को समर्पित एक आजाद नज्मों का  संग्रह है जिसमें भाषा की कारीगरी की अपेक्षा भावों की भंगिमाएं अधिक आकर्षक बन पड़ी है।

माज़ी का दर्द और इश्क़ के अफ़साने शायर की कलम ,उसके गज़ल कहने के अन्दाज़ को बिल्कुल अलग, उम्दा और खास बना देते है। यह शेर उन्होंने कितनी सादगी के साथ कह दिया है वो खुद भी नहीं जानते होंगे-

दिक्कतों सुनो बस दो कदम तो चलो
बाकी तुम्हारी तरफ हम दौड़ लेंगे
अपने टूटे दिल को सलीके से रखो
जहां मोहब्बत होगी वहां जोड़ लेंगे

गजलकार का यह दूसरा संग्रह विषय वैविध्य से भरा है। खास बात यह कि इसमें पृष्ठ-दर-पृष्ठ नूतनता भी झलकती है। इनमें जीवन और जगत के दृश्यों, व्यवहारों और अनुभवों की छवियां व्याप्त हैं।अपने समय और आस-पास के अनेक खुरदरे सत्य बोलते लक्षित होते हैं।

प्रसिद्ध साहित्यकार टी.एस. इलियट ने एक जगह लिखा है कि साहित्यकार जो भी लिखता है, वह अपने समय को ही लिख रहा होता है। समय को जाने-समझे बगैर कोई गीत-कविता अथवा ग़ज़ल नहीं लिखी जा सकती।

शायर ने अपनी शायरी की वसीयत अपने प्यार और बेवफाइयों के नाम की है पर ऐसा नहीं कि शायर  अपनी मॉं और उस पिता को भूले हो,अपने हंसने में मां के हंसने और रोने में मां के रोने की यादें.....

गर्म आंसुओं से तरबतर होता था जब सीना
मेरी मां का पल्लू भीग जाना याद आता है
पिता है मेरे लोहे से कुछ कुछ नारियल से भी
मां का नर्म बिस्तर हो ही जाना याद आता है

जिन्दगी की हकीकत, बेशर्म और बेदर्द जमाने में आज बेटियों को महफूज़ रख‌ पाना कितना मुश्किल होता चला जा रहा है शायद ये तमीज़ शायर को उनके पेशे ने बहुत ही खूबसूरती से सीखा दी है तभी तो वो कहते हैं_

मेरे शहर में बेटियां महफूज़ होने लग जायेगी
गली के कुत्तों को दो चार पत्थर मारा करो

मौजूदा वक्त में महामारी के खौफ़नाक मंज़र और अपने महबूब की फ़िक्र खयाली की चंद नज़ीर देखें_
मेरे हुजूर जरा हमारी नज़र में रहो
किधर जा रहे हो बस घर में रहो
कल ना हो  इससे कहीं अच्छा है दोस्त
कल के लिए आज अगर डर में रहो

दुनिया और माशूक की बेवफाई को भी शायर खूब समझता है पर कहना कुछ नहीं। हालातों से मुंतशिर यही बस कह पाया-
अब किसको कहें कि वो बेहया है
हम जानते हैं या रब जानते हैं

शायर ने हर इक लफ्ज़ को अनुभव की गहराइयों में इस कदर डुबोकर लिखा है मानो वे हर पाठक के अहसासात हों।सच आदमी को किरदार की आईनासाजी का हुनर सिखाता है।

संग्रह की नज्मों के रंग इन्द्रधनुषी हैं लेकिन सारी नज़्मों का मूल स्वर जीवन है और जीवन में घटनेवाली घटनाओं का चित्रण है। इससे प्रतीत होता है कि शायर ने अपनी नज़्मों में जिया ही नहीं है बल्कि उसे भोगा भी है।

इन दो क्रियाओं जीना और भोगना, ऐसी काई में पगडंडी है, जिस पर फिसलने का डर बना रहता है। मगर उसने स्वयं को फिसलने नहीं दिया है, जो भी लिखा है, मजबूती के साथ और साफ-साफ लिखा है
संग्रह ‘क्या कहती हो’ की ऐसी न जाने कितनी नज्में हैं जिन्हें बार- बार पढने को मन करता है।

कुछ गीत ऐसे है जिन्हें पढ कर इन्सान अपने अतीत में खो जाता है। कितनी ऐसी नज़्में है जो नज़र के रास्ते दिल में उतर जाने का हुनर रखती है। शायर  यकीनन उर्दू अदब में  अपनी नज़्में लोगों के दिलों में पहुंचाने में कामयाब हुए हैं।

अभी तो यह  संग्रह ‘क्या कहती हो’ एक फूल की शक्ल में खिला है। इस की खुश्बू से कौन कौन मदहोश होता है ये देखना बाकी है। एक बार फिर  आपको को ‘क्या कहती हो’ के लिये मेरी जानिब से बहुत बहुत मुबारकबाद ...

-नीलू शेखावत

Must Read: जिस दिन किसी लेखक को ज्ञात हो,कि उसके लेखन से किसी युवती को अटूट प्रेम है,तो क्या उस दिन लेखक के जीवन के मायने बदल जाएंगे ?

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