’नाथूला टाइगर’ का अंतिम संस्कार: नाथूला दर्रा में कर्नल बिशन सिंह राठौड़ ने चीनी सेना को दिलाई थी नानी याद

नाथूला दर्रा में कर्नल बिशन सिंह राठौड़ ने चीनी सेना को दिलाई थी नानी याद
Colonel Bishan Singh Rathore
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1967 में हुए भारत-चीन युद्ध में नाथूला दर्रा में सेना के कमान संभालने वाले रिटायर्ड कर्नल बिशन सिंह राठौड़ का रविवार को निधन हो गया। राजस्थान के इस वीर को नाथूला टाइगर के नाम से भी जाना जाता था। 

जयपुर । राजस्थान की भूमि वीरों की भूमि है। यहां की धरती ने कई शूरवीरों के पैदा किया है जिन्होंने देश की सेवा में अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए। उन्हीं में से एक हैं ’नाथूला टाइगर’।

साल 1967 में हुए भारत-चीन युद्ध में नाथूला दर्रा में सेना के कमान संभालने वाले रिटायर्ड कर्नल बिशन सिंह राठौड़ का रविवार को निधन हो गया।

राजस्थान के इस वीर को नाथूला टाइगर के नाम से भी जाना जाता था। 

बिशन सिंह राठौड़ ने 84 साल उम्र में अंतिम सांस ली। उनका सोमवार यानि आज सैन्य सम्मान के साथ जयपुर के सीकर रोड स्थित मोक्षधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा।

राठौड़ पिछले कई दिनों से बीमार थे और उनका जयपुर के निजी अस्पताल में उपचार चल रहा था।

’नाथूला टाइगर’ के निधन से उनके पैतृक गांव नागौर जिले के नावां तहसील के भगवानपुरा में शोक की लहर छाई हुई है।

कर्नल राठौड़ वर्ष 1990 में सेना से रिटायर हुए थे। राठौड़ अपने पीछे परिवार में दो पुत्र, पुत्रवधू और दो पौत्र छोड़ गए हैं। 

उनकी पत्नी जतन कंवर का पिछले साल ही निधन हो गया था।

कर्नल पर बनी है फिल्म ’पलटन’

कर्नल बिशन सिंह राठौड़ का अपनी बहादुरी को लेकर इतने फेमस थे कि उन पर बॉलीवुड के निर्देशक जेपी दत्ता ने साल 2018 में उनके जीवन पर एक फिल्म भी बनाई। 

आर्मी को लेकर बनी इस फिल्म में बिशन सिंह राठौड़ के जीवन की कहानी को दिखाया गया। फिल्म का नाम पलटन है।

इस फिल्म में बिशन सिंह राठौड़ का किरदार एक्टर सोनू सूद ने निभाया था।

आर्मी से रिटायर्ड होने के बाद कर्नल राठौर पिछले कुछ वर्षों से लेखन कार्य से जुड़े रहे। उनकी लिखी पुस्तक ट्रांसलेट इन चोरों एंड सफरिंग प्रकाशित हो चुकी है और एक नई पुस्तक मोदी  प्रकाशित होने वाली है।

चीनी सेना को याद दिलाई थी नानी

बिशन सिंह का जन्म 10 नवम्बर 1938 को नागौर जिले की नावां तहसील के भगवानपुरा गांव में हुआ था। 

पिलानी के बिरला साइंस कॉलेज से स्नातक करने के बाद 1961 में वे सेना में भर्ती हुए। उन्होंने 1967 के भारत-चीन युद्ध में नाथुला में सेना की टुकड़ी की कमान संभाली।

युद्ध के दौरान हाथ में गोली लगने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उनकी टुकड़ी के अदम्य साहस से चीन की सेना को उलटे पांव भागना पड़ा।

युद्ध में वीरता के लिए उन्हें सेना मेडल से भी नवाजा गया। 

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