विधान सभा सीट का इतिहास: दौसा विधान सभा सीट, जहां बर्फ फैक्ट्री वालों ने कांग्रेस को बर्फ में दबाए रखा

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दौसा विधानसभा की कर रहे हैं। जयपुर के ढूंढाड़ रियासत की पहली स्थली रहा यह इलाका यह राजनीतिक सरगर्मियों का एक प्रमुख केन्द्र हैं। कभी इस सीट पर महारानी गायत्री देवी की सदारत वाली स्वतंत्र पार्टी का जबरदस्त जोर रहा।

जयपुर | राजस्थान की विधानसभा में एक ऐसा क्षेत्र है जो कभी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रहा, कभी जन जाति के लिए। परन्तु अब वह सामान्य है, लेकिन वहां से ​अक्सर विधायक जनजाति का ही बनता है। एसटी वोटर्स की अधिक संख्या और गुर्जर मतदाताओं का माहौल यहां पर अब विधायक तय करता है।

कभी यहां पिता की सीट पर भाइयों की आपसी रार भी दिखी तो पिता की सम्प्रति पर एक ही परिवार से तीन भाई विधायक भी रह गए। इन सभी का पता बंशीवाल आइस फैक्ट्री था, जहां से एक पिता और तीन भाइयों ने कुल छह चुनाव जीते. 

थिंक के चुनाव बैटलग्राउण्ड में आज हम बात दौसा विधानसभा की कर रहे हैं। जयपुर के ढूंढाड़ रियासत की पहली स्थली रहा यह इलाका यह राजनीतिक सरगर्मियों का एक प्रमुख केन्द्र हैं। कभी इस सीट पर महारानी गायत्री देवी की सदारत वाली स्वतंत्र पार्टी का जबरदस्त जोर रहा।

ढूंढाड़ की एक महत्वपूर्ण सीट दौसा आजादी के बाद सिर्फ एक बार यानि कि 1957 में एसटी के लिए रिजर्व रही है। उसके बाद नौ चुनाव यह दलित सीट रही है। बीते तीन चुनावों से सीट सामान्य है, लेकिन सामान्य जितने ही एससी—एसटी के प्रत्याशी यहां चुनावी मैदान में आते हैं। दो बार विधायक भी एसटी के ही बने हैं।

ढूंढाड़ की यह महत्वपूर्ण सीट जयपुर से सटी है और सिकराय, बांदीकुई, थानागाजी, जमवारामगढ़, बस्सी और लालसोट सीटों से यहां की सीमा जुड़ती है। दौसा लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है और फिलहाल श्रीमती जसकौर मीणा यहां से सांसद हैं। मुरारीलाल ​मीणा इस विधानसभा सीट से विधायक है, जो गहलोत सरकार में मंत्री का दर्जा रखते हैं।

मुरारी मीणा की पत्नी सविता मीणा ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, जसकौर मीणा के सामने। लेकिन वे चुनाव नहीं जीत सकीं। हालांकि पति मुरारीलाल मीणा की दौसा सीट से वे जरूर कुछ वोटों की बढ़त में रहीं। लेकिन वे अपने पति जितने वोट इस सीट के मतदाताओं से लोकसभा में नहीं जुटा सकीं।

वैसे इस सीट पर 232 पोलिंग बूथ है, जिन पर 2 लाख 36 हजार 537 वोटर पंजीकृत हो चुके हैं। बीते चार साल में 18 हजार 709 वोटों का पंजीकरण बढ़ा है। आचार संहिता लागू होने तक यह बढ़त जारी रहेगी।

2018 के चुनाव में गुर्जर समाज के मतदाताओं ने तय कर लिया कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना है। मीणा और गुर्जर समाज के ​बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को खत्म करते हुए सचिन पायलट इसे एक मंच के नीचे लाए और गुर्जर बहुल इलाके में एसटी के मुरारीलाल मीणा को समर्थन जुटाने में सफलता हासिल की।

मुरारीलाल मीणा 2008 में बसपा के विधायक रह चुके थे, लेकिन वे बसपा से बगावत करके कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें कांग्रेस ने 2013 में टिकट दे दिया। परन्तु किरोड़ीलाल मीणा के प्रत्याशी के अलग चले जाने से यह सीट गंवा बैठे थे। मुरारीलाल को 99 हजार 4 वोट मिले, लेकिन चुनाव उन्होंने 50 हजार 948 वोटों के बड़े अंतर से जीता।

हालांकि जब कुछ माह बाद लोकसभा के चुनाव हुए तो मुरारी अपनी पत्नी सविता मीणा को मात्र 1891 वोट की बढ़त दिला सके। तो दौसा सीट पर मुरारी मीणा के सामने बीजेपी के शंकरलाल शर्मा को सिर्फ 27.9 फीसद वोट मिले। यहां विधायक रह चुके नंदलाल बंशीवाल को भी करीब 11 प्रतिशत लोगों ने वोट किए थे। 

इससे पहले 2013 के चुनाव में शंकरलाल शर्मा बीजेपी के टिकट पर विधायक बने थे। बसपा के टिकट पर 2008 में जीते मुरारीलाल मीणा को कांग्रेस ने टिकट दिया, लेकिन वह बुरी तरह हार गए। उन्हें शंकरलाल शर्मा ने 25 हजार 172 वोट से हराया। किरोड़ी मीणा के नेतृत्व में नेशनल पीपुल्स पार्टी की लक्ष्मी जायसवाल को यहां करीब पच्चीस हजार वोट मिले थे।

इससे पहले 2008 में बसपा के टिकट पर आए मुरारीलाल मीणा यहां 1102 वोटों के अंतर से चुनाव जीते। उन्हें 38.20 और कांग्रेस के राम अवतार चौधरी को 37.23 प्रतिशत वोट मिले। बाबूलाल शर्मा बीजेपी को यहां 24 हजार 266 वोट मिले। इससे पहले यह सीट एससी के लिए रिजर्व हुआ करती थी, दोनों ही प्रमुख ​पार्टियों ने सामान्य उम्मीदवार उतारे तो एसटी वोटों के सहारे मुरारीलाल मीणा ने अपना गेम सेट कर लिया। 

इससे पहले के इतिहास की बात करें तो 1951 के चुनाव में यह सीट लालसोट दौसा के नाम से हुआ करती थी। इस पर दो विधायक हुआ करते थे। कांग्रेस के रामकरण जोशी और आरक्षित सीट पर राम राज्य परिषद के माधो।

1957 में निर्दलीय रामधन और गज्जा विधायक चुने गए। 1962 के चुनाव में दो—दो विधायकों का सिस्टम खत्म हुआ और नए परिसीमन में सीट सामान्य हो गई। स्वतंत्र पार्टी का ढूंढाड़ में जोर था और मूलचंद रामकरण जोशी को करीब साढ़े सात हजार वोट से हराकर विधानसभा पहुंचे।

1967 से यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दी गई। स्वतंत्र पार्टी के डूंगाराम ने कांग्रेस के आर.लाल को हराया। डूंगाराम राजौरिया इससे पहले जमवारामगढ़ के विधायक हुआ करते थे और परिसीमन बदलने से दौसा सीट पर आए थे।

1972 में स्वतंत्र पार्टी के मूलचंद सामरिया ने कांग्रेस के रामलाल बंशीवाल को 119 वोटों के एक बारीक अंतर से हराया। इसके बाद आई जनता पार्टी की लहर, समय आपातकाल के बाद का था और 1977 में मूलचंद सामरिया को जनता पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया।

उन्होंने एक बार फिर रामलाल बंशीवाल कांग्रेस को शिकस्त दी, लेकिन इस बार अंतर 5470 यानि कि करीब 16 फीसदी वोटों का था। 1980 के चुनाव में पहली बार उतरी भाजपा को जो 34 सीट मिली थी, उनमें से एक दौसा भी थी। यहां दूदू के विधायक सोहनलाल बंशीवाल बीजेपी के प्रत्याशी थे और उन्हें 50.06 फीसदी वोट मिले।

कांग्रेस आई के किशनलाल बैरवा 3 हजार 501 वोट से हार गए। परन्तु 8 नवम्बर 1982 को पद पर रहते हुए सोहनलाल बंशीवाल का निधन हो गया। उप चुनाव में उनके पुत्र राधेश्याम को चुनाव मैदान में उतारा तो वे जीतकर विधानसभा पहुंचे।

1985 में कांग्रेस के भूदरमल वर्मा ने पार्टी की जीत का करीब 33 साल का सूखा यहां खत्म किया और करीब तीस फीसदी वोटों के अं​तर यानि कि 1424 वोट से जीत दर्ज कर बीजेपी के कैलाश को हराया। 1990 में भूदरमल वर्मा बीजेपी के जियालाल बंशीवाल से बुरी तरह हार गए। जियालाल सोहनलाल बंशीवाल के एक और पुत्र थे। 

जिया लाल को लोगों ने 35 हजार 292 वोट डाले तो भूदरमल सिर्फ 15 हजार 66 मत ही पा सके। अब यह बीजेपी की आसान सीट हो गई थी। जियालाल बंशीवाल एक बार फिर से 1993 में आसानी से जीत गए उन्हें 53.16 प्रतिशत जनता ने चुना तो कांग्रेस के रामनाथ राजौरिया को सिर्फ 36.87% वोट मिले।

1998 में स्व. सोहनलाल बंशीवाल के एक और पुत्र यानि कि जिया लाल के भाई नंदलाल बंशीवाल निर्दलीय खड़े हो गए और चालीस फीसदी से अधिक वोट पाकर कांग्रेस बीजेपी के विधायक जियालाल पुत्र सोहनलाल बंशीवाल को 16.76 प्रतिशत पर समेट दिया।

इनके भाई श्यामलाल जो पिता सोहनलाल बंशीवाल के निधन पर उप चुनाव जीतकर विधायक बने थे, वे उस वक्त यहां से लोकसभा के सांसद थे। बीजेपी के टिकट पर श्यामलाल बंशीवाल 1996 व 1999 में टोंक सीट से लोकसभा के सांसद भी चुने गए। हालांकि सांसद का चुनाव तो जिया लाल बंशीवाल ने भी 1984 में लड़ा था, लेकिन करीब एक लाख वोटों से हार गए थे।

1998 में नंदलाल बंशीवाल निर्दलीय कांग्रेस से करीब 1.05 फीसदी अधिक वोट लाकर विधानसभा पहुंचे। 2003 में बीजेपी ने नंदलाल बंशीवाल को टिकट दे दिया। नंदलाल बंशीवाल ने काग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ने आई ममता भूपेश को करीब दस हजार वोटों से हराया। यहां जियालाल बंशीवाल भी टिकट कटने पर अपने भाई की तर्ज पर बागी हुए, लेकिन 6 हजार 941 वोट पा सके। इसके बाद से यह सीट सामान्य हो गई।

दौसा से कौन कब ​जीता विधायक

Dausa Vidhan Sabha MLA List
चुनावी वर्ष विधायक पार्टी
1957 रामधन निर्दलीय
1962 मूलचंद स्वतंत्र पार्टी
1967 डूंगा राम स्वतंत्र पार्टी
1972 मूलचंद सामरिया स्वतंत्र पार्टी
1977 मूलचंद सामरिया जनता पार्टी
1980 सोहन लाल बंसीवाल
भारतीय जनता पार्टी
1985 भुदर मल
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1990 जिया लाल बंशीवाल
भारतीय जनता पार्टी
1993 जियालाल बंसीवाल
भारतीय जनता पार्टी
1998 नन्द लाल निर्दलीय
2003 नन्द लाल बंशीवाल
भारतीय जनता पार्टी
2008 मुरारी लाल मीना बहुजन समाज पार्टी
2013 शंकर लाल शर्मा
भारतीय जनता पार्टी
2018 मुरारी लाल मीना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

2018 में दौसा सीट का परिणाम

2018 Result Dausa Vidahnsabha Seat

Party उम्मीदवार Votes % ±%
कांग्रेस मुरारी लाल मीना 99,004 57.48 28.95
बी जे पी शंकर लाल शर्मा 48056 27.9 -18.26
IND नंद लाल बंसीवाल 18847 10.94
AAP वीरेंद्र कुमार शर्मा (छोटा) 1260 0.73
बसपा गोपाल लाल मीना 1192 0.69 -0.32
बीवीएचपी देवी सिंह 1087 0.63
IND दिनेश कुमार मीना 734 0.43
IND जगराम सैनी 326 0.19
IND गोपी रमन शर्मा 212 0.12
नोटा None of the Above 1529 0.89 -0.74
अंतर 50948 29.58 11.95

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