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राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में चिकित्सकों और सरकार के बीच कई बार की वार्ता विफल होने के बाद मंगलवार को सुबह डाक्टरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव के निवास पर वार्ता की जो सफल रही।
जयपुर | राजस्थान से बड़ी खबर सामने आई है। यहां ’राइट टू हेल्थ बिल’ को लेकर करीब 15-16 दिन से चल रही निजी संस्थानों के चिकित्सकों की स्ट्राइक खत्म हो गई है।
बता दें कि, सरकारी रेजीडेंट डॉक्टर पहले ही अपने काम पर लौट चुके हैं।
राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में चिकित्सकों और सरकार के बीच कई बार की वार्ता विफल होने के बाद मंगलवार को सुबह डाक्टरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव के निवास पर वार्ता की जो सफल रही।
इसके बाद आखिरकार दोनों के बीच चला आ रहा गतिरोध टूट गया है।
दो चरणों की वार्ता के बाद आखिरकार दोनों के बीच समझौता हो गया है और सरकार व डॉक्टर्स दोनों वार्ता से संतुष्ट हैं जिसके बाद डॉक्टरों ने अपना धरना प्रदर्शन वापस लेने का ऐलान कर दिया है।
सरकार द्वारा डॉक्टरों की मांगे मानने के बाद प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी के सचिव डॉ विजय कपूर ने सहमति पत्र पर साइन कर हड़ताल खत्म करने का ऐलान किया।
डॉक्टर्स के आगे झुकना पड़ा सरकार को
जानकारी के अनुसार, राज्य की गहलोत सरकार ने डॉक्टर्स की सभी शर्तों को मान लिया है।
जानकारी में सामने आया है कि, दोनों के बीच 8 बिंदुओं पर सहमति बनी है. जहां एक ओर सरकार से डॉक्टर्स की वार्ता चल रही थी तो वहीं दूसरी ओर डॉक्टर्स महारैली करने जा रहे थे, इसी बीच सरकार से वार्ता के दौरान
इन मांगों पर बनी सहमती
- 50 बिस्तरों से कम वाले निजी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर रखा जाएगा।
- जिन निजी अस्पतालों का निर्माण सरकार से बिना किसी सुविधा के हुआ है और रियायती दर पर बिल्डिंग को भी आरटीएच अधिनियम से बाहर रखा जाएगा।
- इन अस्पतालों को आरटीएच के दायरे में माना गया है-
- निजी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल
- पीपीपी मोड पर बने अस्पताल
- सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेने के बाद स्थापित अस्पताल
- जो अस्पताल ट्रस्टों द्वारा चलाए जाते हैं
- राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर बने अस्पतालों को कोटा में नियमित करने पर विचार किया जायेगा।
- आंदोलन के दौरान दर्ज हुए पुलिस केस और अन्य सभी मामले वापस लिए जाएंगे।
- अस्पतालों के लिए लाइसेंस और अन्य स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम होगा।
- फायर एनओसी नवीनीकरण हर 5 साल में माना जाएगा।
- यदि नियमों में कोई और परिवर्तन, अगर कोई हो, आईएमए के दो प्रतिनिधियों के परामर्श के बाद किया जाएगा