Highlights
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महज 19 साल की उम्र में तमिलनाडु और अरुणाचल प्रदेश जैसे दूरदराज़ क्षेत्रों में समाज सेवा की शुरुआत, जहां उन्होंने बच्चों के लिए भोजन और शिक्षा जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने का बीड़ा उठाया।
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एक छोटे से बच्चे की भूख की कहानी से प्रेरित होकर उन्होंने एक मुट्ठी चावल के दान की योजना शुरू की, जिसके तहत आज 78 हजार किलो चावल सालाना एकत्रित कर बच्चों को खिलाया जाता है।
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स्वामी विवेकानंद और अजीत सिंह खेतड़ी के बीच के संबंधों पर चर्चा, जिसमें अजीत सिंह का विवेकानंद के जीवन में योगदान और उनकी संतान के लिए विवेकानंद की प्रार्थना की कहानी शामिल है।
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डॉ. भिड़े पद्मश्री को व्यक्तिगत नहीं मानतीं, बल्कि इसे अपने संस्थान के कार्यों का सम्मान मानती हैं। उनका मानना है कि समाज सेवा सभी का प्रयास होना चाहिए।
Jaisalmer | डॉ. निवेदिता रघुनाथ भिड़े, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष और एक जीवनवृति कार्यकर्ता हैं। महज 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़कर तमिलनाडु और अरुणाचल प्रदेश जैसे दूरदराज़ इलाकों में सेवा कार्य शुरू किया। वहां के बच्चों के लिए भोजन व्यवस्था शुरू करने के साथ उन्होंने भूख की भयावहता को करीब से देखा। इस अनुभव ने उन्हें सामाजिक सेवा की दिशा में और गहराई से प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद और महाराजा अजीत सिंह खेतड़ी के संबंधों की चर्चा करते हुए डॉ. भिड़े ने उनके जीवन में आए प्रभाव पर भी प्रकाश डाला।
सेवा कार्य का प्रारंभ और संघर्ष की कहानी
जैसलमेर के होटल सूर्यागढ़ में प्रदीप बीदावत के साथ इस विशेष साक्षात्कार में, डॉ. भिड़े ने बताया कि कैसे उन्होंने सेवा कार्य को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उनका पद्मश्री सम्मान, जो उन्हें उनके कार्यों के लिए मिला, उसे वह व्यक्तिगत नहीं मानतीं बल्कि पूरे संस्थान का सम्मान मानती हैं।
बचपन में शारदा मिशन के बारे में जानने के बाद और ग्यारहवीं कक्षा में विवेकानंद केंद्र के बारे में पढ़ने के बाद उन्होंने समाज सेवा को ही अपने जीवन का मार्ग चुना। उन्होंने अपने माता-पिता को यह बताया। उनके पिता, जो कि एक पोस्टमास्टर थे, ने इस निर्णय का समर्थन किया, जबकि उनकी मां थोड़ी भावुक हो गईं।
उन्होंने अपनी पढ़ाई के बाद कन्याकुमारी जाकर एकनाथ रानाडे से मिलने का निश्चय किया। रानाडे जी ने शुरुआत में उन्हें छोटी उम्र के कारण मना किया, लेकिन उनके अटल निश्चय और बाबा आमटे की तरह समाज सेवा के प्रति लगाव ने उन्हें अपने लक्ष्य से भटकने नहीं दिया।
तमिलनाडु में बालवाड़ी का सफर और अमुध सुरभि योजना
डॉ. भिड़े ने तमिलनाडु में अपने सामाजिक कार्यों की शुरुआत की। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया जिसमें एक बच्चा स्कूल में जल्दी वापस आया क्योंकि उसके घर में खाना नहीं था। इस घटना ने डॉ. भिड़े को गहरे से झकझोर दिया और उन्होंने अमुध सुरभि योजना की नींव रखी, जिसमें एक मुट्ठी चावल के दान का विचार सामने आया।
इस पहल ने धीरे-धीरे एक बड़े अभियान का रूप ले लिया और आज करीब 78 हजार किलो चावल प्रतिवर्ष इस योजना के तहत एकत्र किया जाता है, जिससे बच्चों को पोषण युक्त भोजन प्रदान किया जाता है। वर्तमान में उनके प्रयासों से 76 बालवाड़ी सफलतापूर्वक चल रही हैं और बच्चों के लिए बेहतर जीवन की दिशा में कार्यरत हैं।
विवेकानंद और अजीत सिंह खेतड़ी का संबंध: प्रेरणा का स्रोत
साक्षात्कार के दौरान, डॉ. भिड़े ने स्वामी विवेकानंद और खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह के बीच घनिष्ठ संबंध पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे अजीत सिंह ने विवेकानंद के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी प्रेरणा बने। स्वामी विवेकानंद ने महाराजा की संतानहीनता के लिए प्रार्थना का वचन दिया था, जो उनके आपसी विश्वास और प्रेम को दर्शाता है।
डॉ. निवेदिता भिड़े का यह सफर, समाज सेवा की दिशा में अद्वितीय और प्रेरणादायक है। उनकी कहानियाँ समाज को न सिर्फ सोचने पर मजबूर करती हैं बल्कि अच्छाई और सेवा की भावना को भी जागृत करती हैं।