Highlights
- 1980 में विदेश मंत्री एस जयशंकर के पिता सेक्रेटरी (डिफेंस प्रोडक्शन) थे। 1980 में इंदिरा गांधी जब एक बार फिर सत्ता में लौटीं तो उनके पिता पहले सचिव थे, जिन्हें हटाया गया था। हालाँकि,उस समय रक्षा मामलों में सबसे ज्यादा जानकारी रखने वाले शख्स वही थे।
- 1979 में जनता पार्टी की सरकार में जब डॉ के सुब्रमण्यम सचिव बने तो वह सम्भवतः सेक्रेटरी पद पर पहुंचे सबसे युवा नौकरशाह थे।
- इंदिरा गांधी के ज़माने में शुरू हुआ यह सिलसिला राजीव गाँधी के दौर में भी चला और राजीव गांधी के कार्यकाल में उनसे जूनियर को उनके बजाय वरीयता दी गई।उसी शख्स को बाद में कैबिनेट सचिव भी बनाया गया ।
विदेश मंत्री एस जयशंकर का दर्द छलक आया। विदेश से सेवा से राजनीति तक के अपनी कहानी सुनाते हुए एस जयशंकर तब भावुक हो उठे ,जब उनके पिता डॉ के सुब्रह्मण्यम के साथ तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी और उनके पुत्र पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के कार्यकाल में हुए सलूक का जिक्र आया। न्यूज एजेंसी -एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में एस जयशंकर ने अपनी अनकही यादों को साझा किया है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयशंकर के पिता डॉ के सुब्रमण्यम को सचिव (रक्षा उत्पाद ) के पद से हटा दिया था। जबकि राजीव गाँधी के कार्यकाल में उनके पिता से जूनियर नौकरशाह को कैबिनेट सेक्रेटरी के तौर पर वरीयता दी गयी।
सुरक्षा रणनीतिकार थे डॉ के सुब्रमण्यम
इंदिरा गांधी ने 1980 में सत्ता में आते ही जयशंकर के पिता को महत्वपूर्ण पद से हटा दिया था ,जबकि राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए यह फैसला किया। 1979 में जनता पार्टी की सरकार में जब डॉ के सुब्रमण्यम सचिव बने तो वह सम्भवतः सेक्रेटरी पद पर पहुंचे सबसे युवा नौकरशाह थे।
देश के जाने-माने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतिकार के बतौर पहचाने जाने वाले डॉ के सुब्रमण्यम के पुत्र एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाये जाने से पहले भारत के विदेश सचिव तक प्रमोशन मिले।
जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे जयशंकर ने एएनआई से अपनी जीवन यात्रा पर चर्चा करते हुए कहा कि बेस्ट फॉरेन सर्विस ऑफिसर बनना उनका लक्ष्य था और बेस्ट का मतलब था -फॉरेन सेक्रेटरी के पद तक पहुंचना।
जयशंकर ने साक्षात्कार में कहा - "मेरे पिता भी सचिव हो गए थे। लेकिन, उन्हें हटा दिया गया था। 1979 में जनता पार्टी की सरकार में जब वह सचिव बने तो वह शायद सबसे युवा सेक्रेटरी थे।'
सिद्धांत ही बने उनकी समस्या
2011 में अपने पिता को खो चुके विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि, " 1980 में उनके पिता सेक्रेटरी (डिफेंस प्रोडक्शन) थे। 1980 में इंदिरा गांधी जब एक बार फिर सत्ता में लौटीं तो उनके पिता पहले सचिव थे, जिन्हें हटाया गया था। हालाँकि,उस समय रक्षा मामलों में सबसे ज्यादा जानकारी रखने वाले शख्स वही थे। "
पिता को याद करते हुए भावुक हुए जयशंकर ने कहा कि उनके पिता सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति थे। और ,सिद्धांत पर चलने की उनकी शपथ ही शायद उनके लिए समस्या बनी।इंदिरा के जमाने में एक बार सचिव पद से हटाए गए तो फिर सचिव नहीं बने।
इंदिरा गांधी के ज़माने में शुरू हुआ यह सिलसिला राजीव गाँधी के दौर में भी चला और राजीव गांधी के कार्यकाल में उनसे जूनियर को उनके बजाय वरीयता दी गई।उसी शख्स को बाद में कैबिनेट सचिव भी बनाया गया ।
यह बात उनके पिता को बहुत महसूस हुई थी। हालांकि, उन्होंने अपनी वेदना किसी से साझा नहीं की । जयशंकर के बड़े भाई सेक्रेटरी बने तब उपेक्षा से गुजरे पिता की छाती गर्व से फूली नहीं समाई थी। जयशंकर भी इस पद पर पहुंचे ,लेकिन सेक्रेटरी बने तब तक उनके पिता डॉ के सुब्रह्मण्यम नहीं रहे।
पीएम मोदी के एक कॉल ने बदल दी राह
जयशंकर ग्रेड 1 में सेक्रेटरी जैसे ही थे। लेकिन, सेक्रेटरी नहीं थे। इस लक्ष्य को जयशंकर ने बाद में हासिल किया। विदेश सचिव के तौर पर उनके कार्यकाल को इतनी सराहना मिली कि उनकी राहें राजनीति की ओर चल पडी। हालांकि , वह राजनीतिक अवसर के लिए तैयार नहीं थे।
2019 में कैबिनेट का हिस्सा बनने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने द्वारा किये गए कॉल को याद करते हुए जयशंकर ने कहा कि यह पूरी तरह से चौंकाने वाला था। पूरी जिंदगी राजनेताओं को जयशंकर ने देखा था। लेकिन, खुद इस भूमिका में आएंगे, इसके बारे में कभी सोचा तक नहीं । प्रधानमंत्री द्वारा मंत्री पद की शपथ का फोन आया तब वह संसद सदस्य नहीं थे। बाद में उन्हें गुजरात से राज्यसभा भेजा गया।
।977 में भारतीय विदेश सेवा से जुड़े जयशंकर ने कहा कि उनकी पार्टी और दूसरी पार्टी के लोग क्या कर रहे हैं,इस पर वह हमेशा निगाह रखते हैं । ब्यूरोक्रेट्स के परिवार से ताल्लुक रखने वाले विदेश मंत्री ने कैबिनेट मंत्री के तौर पर अपने अब तक के कार्यकाल को दिलचस्प बताया और एएनआई से अपने जीवन ,करिअर और सियासत से जुडी कई बातें साझा की है।