Rajasthan Politics: एक बार फिर से बीजेपी में आए देवी सिंह आए भाटी कब तक पार्टी के होकर रहेंगे

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देवी सिंह भाटी ने बीजेपी का दामन थाम लिया है, क्या देवी सिंह भाटी बीजेपी के ही होकर रहेंगे। सवाल बड़ा है? जवाब इतिहास में छिपा है और परन्तु राजस्थान की जनता छिपा हुआ नहीं है।

बगावत के लिए जाने जाते रहे हैं देवी सिंह भाटी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष सीपी सीपी जोशी पर साध चुके हैं निशाना, कभी वसुन्धरा के विरोधी रहे भाटी फिर खास हो गए और बाद में हनुमान बेनिवाल की आरएलपी का समर्थन कर दिया। केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल से खुली अदावत सबको पता है। 

कोलायत से लगातार सात बार विधायक रह चुके और पूर्व पीएम चन्द्रशेखर के चेले देवी सिंह भाटी एक बार फिर से बीजेपी में आए तो हैं, लेकिन अनुशासित पार्टी का तमगा लेकर चलने वाली भाजपा में वे कितनेक टिकेंगे।

सामाजिक न्याय मंच बनाकर पहले सड़कों पर उतर चुके भाटी ने सिरोही के माडाणी गांव में एक बार फिर से भाजपा नेतृत्व पर निशाना साध दिया था। उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश नेतृत्व को कमजोर बताते हुए जेपी नड्डा के लिए कहा था कि उनसे हिमाचल ही नहीं संभल सकता और उनको सौंप दिया केंद्रीय नेतृत्व। वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी के लिए कहा कि जिस व्यक्ति की जिले तक पहचान नहीं है उसे बना दिया प्रदेश अध्यक्ष।

कभी चन्द्रशेखर के गुस्से भरे एक फोन कॉल से मंत्री का पद पाने वाले देवी सिंह भाटी!

कभी एक आईएएस को थप्पड़ मारकर मंत्री पद गंवाने वाले देवी सिंह भाटी!

तहसीलदार को धूप में मुर्गा बनने का आदेश देने वाले देवी सिंह भाटी!

तो कभी एक दलित बच्ची के रेप पर विधानसभा में तीन दिन तक गतिरोध पैदा करने वाले देवी सिंह भाटी!

कभी वसुन्धरा राजे के खिलाफ बगावत करने वाले देवी सिंह भाटी!

तो कभी वसुन्धरा राजे के लिए आलाकमान से लड़ जाने वाले देवी सिंह भाटी!

कभी जाट आरक्षण दिए जाने पर उपेक्षित को आरक्षण और आरक्षित को संरक्षण का नारा देते हुए सामाजिक न्याय मंच का बिगुल बजाने वाले देवी सिंह भाटी!

तो कभी जाट नेता हनुमान बेनिवाल का समर्थन करने वाले देवी सिंह भाटी!

अब इन्हीं देवी सिंह भाटी ने बीजेपी का दामन थाम लिया है, क्या देवी सिंह भाटी बीजेपी के ही होकर रहेंगे। सवाल बड़ा है? जवाब इतिहास में छिपा है और परन्तु राजस्थान की जनता छिपा हुआ नहीं है।

भैरोंसिंह शेखावत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे फरवरी 1990 में। मई जून का महीना था। मंत्रिपरिषद तय होनी थी। भैरोंसिंह शेखावत को  स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 200 में से 85 सीटें बीजेपी ने जीती थी और 55 जनता दल ने।

जनता दल के नेता जगदीप धनखड़ हुआ करते थे, वही धनखड़ जिनके दौरों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नींद उड़ी हुई है। वे MP  थे और चन्द्रशेखर जनता दल के मुखिया।

कांग्रेस को पचास सीटें मिली थी। भैरोंसिंह मुख्यमंत्री बन गए जनता दल की मदद से। चन्द्रशेखर चाहते थे कि देवी सिंह भाटी को भैरोंसिंह अपने मंत्रिमंडल में जगह दें।

4 मार्च 1990 को भंवरलाल शर्मा, नत्थी सिंह और ललित किशोर चतुर्वेदी के साथ भैरोंसिंह ने शपथ ले ली। चन्द्रशेखर चाहते थे कि देवी सिंह भाटी को मंत्रिमंडल में लिया जाए। परन्तु बगावती तेवर वाले देवी सिंह शेखावत की पसंद थे नहीं।

इसके कुछ दिन बाद 15 मार्च को 13 कैबिनेट और 8 राज्यमंत्री और बनाए गए, लेकिन देवी सिंह भाटी को मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया। चन्द्रशेखर ने नाराजगी जताई तो भैरोंसिंह ने अगले मंत्रिमंडल में देवी सिंह भाटी का नाम  होने का भरोसा दिलाया।

अगला मंत्रिमंडल विस्तार 1 जून 1990 को होना था एक दिन पहले भाटी के समर्थकों को पता चला कि उनका नाम नहीं है। इस पर वे चन्द्रशेखर के पास पहुंचे। युवा तुर्क और अध्यक्षजी के नाम से फेमस चन्द्रशेखर किसी वजह से गुस्से में थे।

देवी सिंह के समर्थकों में से एक बंधु बताते हैं कि  जब हम पहुंचे तो अध्यक्षजी ने अपने पीए को कहा आप भैरोंसिंह को फोन लगाइए। थोड़ी देर बाद सीएम लाइन पर थे। शेखावत से बिना दुआ सलाम किए चन्द्रशेखर उबल पड़े और बोले भैरोंसिंह! हमने एक नाम दिया था और उसे भी जगह नहीं दी जा रही है। याद  रखिए हम समर्थन देकर सरकार बना सकते हैं तो सरकार गिरा भी सकते हैं।

यह कहकर उन्होंने रिसीवर रख  दिया। अगले दिन देवी सिंह भाटी की शपथ हुई।

देवी सिंह भाटी मूलत: बीजेपी नेचर के नेता है नहीं वे एक समाजवादी नेता है। जिसने युवा तुर्क चन्द्रशेखर की सदारत में राजनीति सीखी। माणिकचंद सुराणा इनको पॉलिटिक्स में लाए। सुराणा खुद बगावती तेवर वाले थे।

देवीसिंह भाटी के राजनीतिक गुरू चन्द्रशेखर और सुराणा दोनों ही पार्टियों को ज्यादा महत्व नहीं देते रहे। सुराणा तीसरी विधानसभा यानि कि 1962 में कोलायत से विधायक बने। प्रसोपा से। उसी पार्टी से जिसमें चन्द्रशेखर राज्यसभा के सांसद थे।

चौथी में वे कांता खतूरिया से यहां से हार गए। सुराणा चन्द्रशेखर के साथी हुआ करते थे, कुल पांच बार विधायक बने। परन्तु चार अलग—अलग सिंबल पर। पहली बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से, जिसमें  चन्द्रशेखर खुद हुआ करते थे।

1977 में वे जनता पार्टी से लूणकरणसर के विधायक बने थे बाद में मंत्री बनाए गए। जनता पार्टी से वे 1985 में भी विधायक बने। बाद में बीजेपी के पहली बार उप चुनाव में सिंबल पर 2000 में एक ही बार विधायक बने। फिर बीजेपी ने नहीं बतळाया तो 2013 में निर्दलीय खड़े हो गए और बीजेपी की लहर के बावजूद चुनाव जीते।

90 साल के मानिक चंद सुराना का जन्म 31 मार्च 1931 को हुआ था। छात्र जीवन से ही राजनीति करने वाले सुराना ने डूंगर कालेज के अध्यक्ष पद पर चुनाव जीतकर अपनी राजनीति शुरू की थी।

वे राजस्थान के वित्त मंत्री और वित्त आयोग के अध्यक्ष भी रहे। 1977 से 1980 तक भैरोंसिंह शेखावत के मुख्यमंत्री काल में सुराना वित्त मंत्री रहे थे। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उन्हें वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया था।

देवी सिंह भाटी 1977 में पहली  बार विधानसभा पहुंचे। एक दलित बेटी के साथ बलात्कार की घटना के मामले में सदन में मुख्यमंत्री की बेटी के साथ बलात्कार की तख्ती लटकाकर आ गए। 

विधानसभा में बहुत हंगामा हुआ और देवी सिंह भाटी का निलंबन हो गया। दो—तीन दिन तो इसी मुद्दे पर बहस चली। यही नहीं एक ठेका कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने के मामले में भाटी ने आईएएस पीके देब को थप्पड़ तक जड़ दिया था। मामला करीब पच्चीस साल पुराना है और इस प्रकरण में बाईस साल बाद चालान हुआ।

खैर! देवी सिंह भाटी कभी आयुर्वेद चिकित्सक की भूमिका में गांव—गांव घूमते हैं तो गोचर बचाने के लिए एक बड़ा आंदोलन भी करते हैं। यही नहीं वे समाज नामक व्य वस्था पर इंस्पेक्टर राज के सदा खिलाफ रहे हैं और इसको लेकर विधानसभा में लगातार बोलते भी रहे हैं। ऐसे में बागी तेवर वाले देवीसिंह भाटी क्या बीजेपी के अनुशासन में बंधे  रह पाएंगे।

वे पहले भी कई बार बीजेपी से गए हैं और वापस आए हैं। जनता के सवालों पर अनुशासित पार्टी होने का दावा करते नेता जहां खामोशी को हथियार मानते हैं उस खेमे में अब एक बागी फिर से परिंदा घुस आया है। देखना है बीजेपी को भाटी के आने का क्या फायदा होता है और उस फायदे में से देवी सिंह भाटी को क्या कुछ मिलेगा?

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