Highlights
- पराक्रमी योद्धा: राव उदाजी ने जैतारण पर अधिकार और जालोर के युद्ध में शत्रुओं का नाश कर अपनी वीरता स्थापित की।
- न्यायप्रिय शासक: उनके शासन में सुख-चैन और न्याय की मिसालें मारवाड़ में प्रसिद्ध थीं।
- विकासशील नेता: जैतारण किले की नींव, गोपालद्वारा मंदिर, और सूजा सागर तालाब उनके विकास कार्यों के प्रमाण हैं।
- परिवार और वंश के रक्षक: अपने भाइयों और वंशजों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार से उन्होंने अपनी जागीर और परंपराओं को संरक्षित किया।
राव उदाजी राठौड़ राजस्थान के इतिहास में पराक्रमी और न्यायप्रिय शासक के रूप में याद किए जाते हैं। वे मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहाजी की 16वीं पीढ़ी से थे और जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी के पौत्र तथा राव सूजा के तृतीय पुत्र थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1519, मार्गशीर्ष वदी 10 को हुआ। उनकी माता मांगलयाणीसरवंगदै राणा पातु की पुत्री थीं। उदाजी के सहोदर भाई प्रागजी और सांगोजी थे।
जैतारण का राज्य और शौर्य की गाथा
राव उदाजी को उनके पिता ने बंटवारे में जैतारण का क्षेत्र दिया। उस समय बंटवारे में मिली भूमि को बलपूर्वक कब्जे में लेना पड़ता था, और राव उदाजी ने अपनी वीरता से जैतारण पर अधिकार कर एक सशक्त राज्य की नींव रखी। विक्रम संवत 1539, वैशाख सुदी 3 को उन्होंने जैतारण की गद्दी संभाली, और उनका राजतिलक पुरोहित भोजराज ने किया। इसके सम्मान स्वरूप उन्हें तालकिया गांव सांसण (सीख) में दिया गया।
जैतारण पर पुनः हुए आक्रमण में भी उन्होंने विजय प्राप्त की। इस युद्ध में बारहठ खेतसी वीरगति को प्राप्त हुए, जिनकी संतानों को उदाजी ने ग्राम गियासणी और बासणी प्रदान किए।
युद्ध और पराक्रम के किस्से
जालोर का भवराणी युद्ध: राव उदाजी ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर अपनी वीरता का परिचय दिया।
मेड़ता विवाद: राव वीरमजी द्वारा जैतारण से घोड़ों की चोरी के बाद लीलिया गांव के तालाब पर उन्होंने वीरमजी को दंडित कर उनका अनुचित कृत्य रोका।
वे अपने पिता राव सूजा के साथ कई युद्धों में सहभागी रहे और उनकी साहसिक कहानियां पूरे मारवाड़ में प्रसिद्ध हुईं।
प्रशासन और न्यायप्रियता
राव उदाजी का शासन न्याय और सुख-चैन के लिए जाना जाता था। जैतारण में उन्होंने विकास कार्यों को प्राथमिकता दी।
किले की नींव: विक्रम संवत 1541 माघ सुदी में जैतारण के किले का निर्माण शुरू किया।
गोपालद्वारा मंदिर: उन्होंने श्री गोपाल जी का मंदिर बनवाकर पूजा व्यवस्था के लिए 200 बीघा भूमि और कुआं अर्पित किया।
सूजा सागर तालाब: लौटोटी गांव में उन्होंने एक विशाल तालाब का निर्माण करवाया, जो उनकी प्रजा के लिए जलस्रोत बना।
भाईचारे और वंश की स्थापना
राव उदाजी अपने भाई प्रागजी से अत्यधिक स्नेह रखते थे। प्रागजी उन्हें पिता समान मानते थे। उदाजी ने अपने जीवनकाल में जागीर का बंटवारा अपने पुत्रों के लिए पहले ही सुनिश्चित कर दिया था।
परगना जैतारण का गांव देवली उदावतान (13,000 रु)
परगना मेड़ता का गांव लिलिया (7,000 रु)
इनके वंशज प्रागदासोत उदावत कहलाए, जो वर्तमान में लीलिया गांव में रहते हैं।
स्वर्गवास
राव उदाजी का स्वर्गवास विक्रम संवत 1567, वैशाख सुदी 15 को जैतारण में हुआ। उनकी चार रानियां थीं। उनके जीवन की गाथा न्याय, पराक्रम और निष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया गया है।
राव उदाजी राठौड़ न केवल एक योद्धा थे, बल्कि एक कुशल शासक और न्यायप्रिय व्यक्ति भी थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि पराक्रम और न्याय का मेल ही सच्चे नेतृत्व की परिभाषा है।