नीलू की कलम से: फाग (फागणियो)

फाग (फागणियो)
फाग (फागणियो)
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Highlights

लालर नहीं मिलने तक कभी घड़ले पर गुस्सा उतारा जा रहा है तो कभी चंग बजाने वालों पर

किशोरियों का संसार अलग ही धुन में चल रहा है, उनके लिए होली का ब्याह हो रहा है कोयलकंठों से ब्याहले गाये जा रहे हैं

हमारे यहां रंगों का एक विस्तृत अध्ययन और शोध हुआ लगता है। हमें रंगों से बड़ा लगाव रहा है, विशेषतः स्त्रियों को

रोज रंग ओपाते रहे मगर बाई है कि कहती है-कोई और दिखाओ, ओ तो मीठो-मीठो ओप्यो है, सावळ नी ओप्यो

हमारे यहां रंगों का एक विस्तृत अध्ययन और शोध हुआ लगता है। हमें रंगों से बड़ा लगाव रहा है, विशेषतः स्त्रियों को।

आज जिस तरह दर्जी नामक जीव महिलाओं के सौंदर्य- संसार में अव्वल दर्जे पर है, (जिस नरम मिजाज से दर्जी को डीप, शेलो और बोट कट तथा ऑफ, कोल्ड स्लीव्स की डिजाइनें बताती हैं, उतनी नरम मिजाज़ी शायद वे उनके चरण कमल गोद में रखकर पेडिक्योर करने वाले पार्लर भैया को भी न दिखाए).

एक जमाने में रंगरेज उससे भी ज्यादा डिमांड में रहने वाला पेशा रहा होगा। रंग-विज्ञान में निष्णात रंगरेज भी बड़े गौर से उन स्त्रियों की डिमांड सुनता होगा और पीछे से होंठों में हंसता भी होगा.

कैसी डिमांड है-"अल्ला-पल्ला पर दादर मोर रंग दे"- तक तो बंदे को समझ आया होगा पर "घूंघटिए पर बाईसा रो बीरो" उसे शर्तिया उलझन में डाल देता होगा।

जैसे-तैसे बिचारे ने रंगकर भिजवाया होगा कि नई फरमाइश फिर से प्रकट हो गई- "म्हारा सायब जी ने दाय कोनी आई लीलगर और रंग दे। " (फिर से रंग दो।)

रंग को लेकर स्त्रियों के कॉन्सेप्ट काफी क्लियर होते है, लीलगर से भी ज्यादा।

उनकी आधी जिंदगी मैचिंग में ही निकल जाती है, कभी अपने जूते सैंडल इयरिंग्स और कपड़ों की, कभी घर की दीवारों की, कभी पर्दों की और अब तो पति और बच्चों का ड्रेसअप भी मैच्ड होना चाहिए।

उन्हें कांट्रास्ट में भी एक किस्म की मैचिंग चाहिए।

लीलगर ने आज़ीज़ आकर एक दिन यह काम बिसायती या छींपों को दे दिया होगा। लीलगर के यहां ललनाओं की भीड़ देखकर उसने भी खुशी- खुशी प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होगा पर अब तो - छ्याळी पकड़ी नाहर न जे छोड़े तो खाय।

रोज रंग ओपाते रहे मगर बाई है कि कहती है-कोई और दिखाओ, ओ तो मीठो-मीठो ओप्यो है, सावळ नी ओप्यो।

ये मीठा मीठा ओपना (मैच होना) हैरान करने वाला है। मैच न हुआ तो मिसमैच होगा, मीठा मीठा क्या होता है?

इसी के चलते इनके कपड़ों में इतनी वैराइटी आ गई और खासकर ओढ़नियों में। वे गर्दन हिलाती गईं और नए डिजाइन बनते गए। लहरिया में तो पूरे रंग ही उड़ेल दिये, चुनड़ी, पीला, पोमचा और

फिर उनमें भी शताधिक भांत, इन्हीं में से एक आता है फाग।  

मुख्य रूप से राजपूत एवं उनकी समीपस्थ चारण व राजपुरोहित  महिलाएं ही फाग ओढ़ती हैं। (हो सकता है अन्य जाति की स्त्रियां भी ओढ़ती हों पर मैंने अब तक नहीं देखा, साड़ी अलबत्ता देखी है।)

श्वेत रंग हमारे यहां सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अशुभ माना गया है, वे सफेद वस्त्र नहीं पहनती। यह बात परंपरा के परिपेक्ष्य में ही सही है बाकी वर्तमान में तो शादी के बरी- जोड़े तक काले और सफेद रंग के आने लगे हैं।

खैर! अशुभ को भी शुभ में बदलने के लिए श्वेत ओढ़नी के किनारों को लाल रंग से रंग दिया और  बीच में डाल दिए छोटे छोटे लाल लाडू। बन गया परम शुभ पहनावा, फाग खेलने के लिए कुंवरानियां तैयार हैं- "चालो देखण ने बाईसा थांको बीरो नाचे हो।"

चूंकि घर की परिधि से बाहर चंग और धमाल पुरुष के लिए ही हैं सो कुंवरानियां उन्हें झरोखों से निहार रही हैं। चांदनी रात में चंग की थाप और बांसुरी की सुर लहरी, थिरकने वाले बाईसा के बीर!

रावळों से बाहर की स्त्रियां थोड़ी मुखर हैं, पुरुष धमाल के लिए सज सकते हैं तो उन्हें भी लालर चाहिए। पति कितना भी समझा ले, टेवटे व बाजूबंद तक का प्रलोभन दे दें तब भी टस से मस नहीं। चाहिए तो बस लालर और वो भी हरे डाबों वाली वरना जींवती मर जाये।

लालर नहीं मिलने तक कभी घड़ले पर गुस्सा उतारा जा रहा है तो कभी चंग बजाने वालों पर।

मगर गुस्सा निकालने का शिष्ट तरीका भी कोई मुरधर की मरवणियों से सीखे। अश्लील तो दूर, अशुभ भी न बोलेगी पर झुंझलाहट तो हो रही है!यहां लालर नहीं मिल रही और ये चंग के धमीड़ उठा रहे हैं! थोड़ा धीरे ही बजा लो!काम छोड़- छोड़ कर मोखों में आना पड़ रहा है!मगर उलाहने में भी अमर होने का आशीष!!

चंग धीरो रे बजावन वाला अमर रहीज्यो रे

चंग धीरो रे..

किशोरियों का संसार अलग ही धुन में चल रहा है। उनके लिए होली का ब्याह हो रहा है। कोयलकंठों से ब्याहले गाये जा रहे हैं।

किशोरों के लिए 'होळी फूल्यां की झोळी' है। 'रंग की हुड़दंग' है;इस बार किसीको नहीं छोड़ेंगे। छोड़ती स्त्रियां भी नहीं किसीको, जिनसे गज- भर घूंघट करती हैं, उन जेठ और ससुरों को भी नहीं।

रंग की बाल्टी लेकर , घूंघट में भी नजरें झुकाए उनके समक्ष उपस्थित हो गई हैं। मानाकि आप सत्तासीन हैं पर आज तो धृष्टता बनती है!जेठ- ससुर अपूठे बैठ गए हैं और इन्होंने उनके रौबदार सफेद कमीज़ को रंगसार कर दिया। आखिर रंग ही तो जीवन है।

- नीलू शेखावत

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