Highlights
- जिस दिन किसी लेखक को ज्ञात हो,कि उसके लेखन से किसी युवती को अटूट प्रेम है,तो क्या उस दिन लेखक के जीवन के मायने बदल जाएंगे
- "प्रेम इन्द्रियों द्वारा लिखी गई कविता है" ये पंक्तियां फ्रांस में जन्मे महान लेखक बाल्जाक की है जिनके लिए स्त्री प्रेम जीवन के शुरुआती दिनों में निरर्थक था
- बाल्जाक एक विकट लेखक थे वो भी इतने विकट की अक्सर बिना खाए पिए वो लगातार लिखते रहते. इसके कारण वो स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे.
- बाल्जाक हर हाल में हांस्का को प्राप्त करना चाहते थे और इस तरह ये प्रेम बीच बीच मे दो चार मुलाकातों के साथ अठारह वर्ष खतों में में दस्तक देता रहा
जिस दिन किसी लेखक को ज्ञात हो,कि उसके लेखन से किसी युवती को अटूट प्रेम है,तो क्या उस दिन लेखक के जीवन के मायने बदल जाएंगे ?
"प्रेम इन्द्रियों द्वारा लिखी गई कविता है"
ये पंक्तियां फ्रांस में जन्मे महान लेखक बाल्जाक की है जिनके लिए स्त्री प्रेम जीवन के शुरुआती दिनों में निरर्थक था.
बाल्जाक इक्यावन वर्ष तक अविवाहित रहे,और अपने विवाह के महज पांच महीने बाद ही दुनिया छोड़ गए.
अगर आप भारत में यह पढ़ रहे है तो बाल्जाक आप प्रेमचन्द के समकक्ष भी देख सकते है,या उससे ऊपर..
लेकिन मैडम हांस्का से उस दौर में जब कोई ऐसा प्रश्न पूंछता होगा तो निश्चित ही उनका जवाब होता होगा कि,
ओनेरो डी बाल्जाक का साहित्य ही उनका जीवन है.
मुंशी प्रेमचंद और बाल्जाक
प्रेमचन्द अगर गोदान ना लिखते तो भारतीय जनमानस में कहां होते यह शायद ही बताने की जरुरत हो लेकिन बाल्जाक "चाउन्स लेस" नही लिखते तो शायद ही मैं उनको प्रेमचंद के समकक्ष रख पाता.
चाउन्स लेस बाल्जाक का ब्रिटेन के किसानों पर लिखा ऐतिहासिक उपन्यास है. बस यही तो वो उपन्यास था,जिसको लिखने के बाद बाल्जाक को ठीक उसी तरह पहचाना गया जिस तरह भारत में प्रेमचंद को.
ये 1819-20 का समय था,जब बाल्जाक ने छद्म नाम से लिखना शुरू किया. लेकिन सबकुछ वैसा नही रहा जैसा बाल्जाक ने सोचा.
बाल्जाक एक विकट लेखक थे वो भी इतने विकट की अक्सर बिना खाए पिए वो लगातार लिखते रहते. इसके कारण वो स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे. शरीर छिजता गया. केवल लेखन से मिलने वाली एनर्जी औऱ मैडम हान्सका के प्रेम ने उन्हें जीवित रखा.
आइये अब मैडम हांस्का से भी पर्दा उठाते है
ये 1932 की बात है कि एक कुलीन महिला बाल्जाक का उपन्यास "द मैजिक स्कीन" पढ़कर पूरा करती है. वही मैजिक स्कीन जिसमे स्त्री चरित्र का बेहद नकारात्मक चित्रण होता है. लेकिन वो महिला बाल्जाक की घनघोर प्रशंसक है वो नही चाहती कि उसका प्रिय लेखक ये सब लिखे.
ये महिला कोई औऱ नही ऐवेलिना हांस्का होती है. हांस्का अपना गुस्सा एक पत्र द्वारा जाहिर करती है. लेकिन ये क्या बात हुई ?
खत में ना नाम
ना कोई पता
प्रेम को पनपने के लिए बस एक शुरुआत एक रास्ता चाहिए होता है. हांस्का को नही पता था कि ये नामालूम सा खत उनके प्रिय लेखक को इतना विचलित कर देगा औऱ दोनों तरफ से होने वाले प्रेम का एक जरिया बनेगा.
अब बाल्जाक उस खत का जवाब देना तो चाहते थे पर बिना पते के कुछ भी सम्भव नही था तो बाल्जाक एक अखबार के विज्ञापन में मैडम हांस्का को जवाब तो लिखते है पर हांस्का उस अखबार को ताउम्र नही पढ़ पाती.
बाल्जाक इस सब पर कितने विचलित थे इस सब का पता मैडम हांस्का को लिखे खतो से मालूम होता है पर खत लिखने के लिए बाल्जाक को अभी और इंतजार करना था.
अचानक हांस्का को अपने लिखे पर अफसोस होता है,और अगला खत वो बाल्जाक को माफी के साथ लिखती है. फिर हांस्का शुरू कर देती है खतो का सिलसिला तारीफ भरे खत,लेकिन नाम और पते के बिना.
साथ मे गुजारिश यही की खत का जवाब जरूर दे.
एक बार हांस्का बाल्जाक को खुद ही सलाह देती है कि तुम मुझे अखबार में विज्ञापन छपवाकर जवाब क्यो नही देते ? पर बाल्जाक तो ये सब पहले कर चुके है लेकिन गलत अखबार औऱ शहर में.
फिर हांस्का उन्हें यूक्रेन के ओडेसा शहर में विज्ञापन छपवाने की सलाह देती है. बाल्जाक ठीक वैसा ही करते है.
ये पहला खत है बाल्जाक का जो हांस्का पढ़ रही है. आखिर क्या कुछ नही लिखा होगा उस लेखक ने अपने पहले खत में.
हाँ वो सब जरूर लिख दिया होगा जो उनके विचलित होने का कारण था.
नीत्से ने कहा है कि औरत तब ही औरत होती है जब वो प्रेम करती है.
शायद हांस्का भी अब औरत हो जाना चाहती थी. वो बाल्जाक का जवाब पढ़कर पिघल जाती है. अपना परिचय और पता सब बाल्जाक को लिख भेजती है और प्रेम अब खतो के जरिए प्रौढ़ता की और बढ़ता जाता है.
खतो से प्रेम की गर्माहट बढ़ती जाती है पर अभी तक दोनों ने एक दूसरे को नही देखा पर ये बाल्जाक थे जो लिखते है कि "प्रेम इंद्रियों द्वारा लिखी गई कविता है " सो बिना मिले वो अपनी कविता लिखते गए और हांस्का केवल बाल्जाक को पढ़ती गई. इस तरह चार वर्ष तक ये कहानी खतो के सफर से पहली मुलाकात का एक मौका तलाश लेती है.
बाल्जाक हांस्का से मिलने स्वीटजरलैंड पहुंच जाते है,और एक होटल में छद्म नाम से ठहरते है. बाल्जाक देखते है कि होटल के बगीचे में एक महिला उनकी किताब पढ़ रही है. दोनों में हल्की फुल्की बातचीत होती है, इससे ज्यादा कुछ नही.
सप्ताहभर बाद हांस्का के पति का देहांत हो जाता है.
लेकिन ये इश्क़ मुकम्मल होना था
बाल्जाक शादी का प्रस्ताव रखते है लेकिन हांस्का अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नही है. बीच मे एक दौर ऐसा भी आया जब लगा कि ये सम्बन्ध टूट जाएगा लेकिन प्रेम कोई सीधी साधी गाय नही खूंखार शेर है, जो अपने शिकार पर किसी की आंख नही पड़ने देता.
बाल्जाक हर हाल में हांस्का को प्राप्त करना चाहते थे और इस तरह ये प्रेम बीच बीच मे दो चार मुलाकातों के साथ अठारह वर्ष खतों में में दस्तक देता रहा.
लेकिन ये इश्क़ मुकम्मल होना था आखिर 1850 में दोनों ने शादी कर ली और शादी के पांच महीने बाद दोनों का प्रेम तो वही रहा पर कोई नही रहा तो ओनेरो डी बाल्जाक.
वही बाल्जाक जो कहते थे कि "प्रेम इंद्रियों द्वारा लिखी गई कविता है"