बजता है चांदी का नगाड़ा: राजस्थान में माता के इस मंदिर में दी जाती थी नरबलि, आज भी  राजपरिवार की ओर से आती है विशेष पोषाक

राजस्थान में माता के इस मंदिर में दी जाती थी नरबलि, आज भी  राजपरिवार की ओर से आती है विशेष पोषाक
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वर्षों पहले नवरात्रों में सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद यहां महाराजा व सामंत बकरों और भैंसों की बलि दिया करते थे। इसके अलावा ये भी किवदंती चली आ रह है कि आमेर के महाराजा मानसिंह ने यहां नरबलि भी दी थी। 

जयपुर | राजस्थान में मां दूर्गा के कई प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर हैं, लेकिन इन मंदिरों में एक मंदिर ऐसा भी है जहां हर साल माता का इंसानी रक्त से तिलक होता था और नरबलि दी जाती थी।

माता का ये मंदिर आज भी अपने पौराणिक इतिहास को लेकर चर्चा में रहता है।

जयपुर राजवंश का इस मंदिर से वर्षों पुराना इतिहास जुड़ा हुआ है। 

माता का ये मंदिर जयपुर के आमेर में ऊंची पहाड़ी पर स्थित हैं और यहां मां की पूजा शीलादेवी के रूप में होती है। 

जयपुर के ढूढाड़ राजवंश की देवी मां दूर्गा हैं। जयपुर की पूर्व राजधानी आमेर के राजा मानसिंह प्रथम शिलादेवी को बंगाल से लेकर आए थे। 

पुराने लोगों के अनुसार, वर्षों पहले नवरात्रों में सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद यहां महाराजा व सामंत बकरों और भैंसों की बलि दिया करते थे। 

इसके अलावा ये भी किवदंती चली आ रह है कि आमेर के महाराजा मानसिंह ने यहां नरबलि भी दी थी। 

इतिहासकारों के अनुसार, जब माता के दरबार में बली दी जाती थी तब नाहरगढ़ से माता को तोपों की सलामी दी जाती थी।

माता के मंदिर में महाराजा मानसिंह द्वितीय की महारानी ने अपनी कामना पूर्ण होने पर चांदी का दरवाजा बनवाया था। जिस पर दस महाविद्याओं, नवदुर्गा की आकृतियां बनी हुई हैं। 

इसके अलावा मंदिर के मुख्यद्वार के सामने झरोखे है जिसके अंदर चांदी का नगाड़ा रखा हुआ है। यह नगाड़ा प्रातः एवं सायंकाल आरती के समय बजाया जाता है। 

माता के इस मंदिर में नवरात्रि पर लक्खी मेला भरता है। मेले में भक्तों की भारी भीड़ माता के दर्शनों के लिए आती है। 

शिला देवी की मूर्ति के पास में भगवान गणेश और मीणाओं की कुलदेवी हिंगलाज की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। 

माता का ये मंदिर आमेर महल में बना हुआ है जो सम्पूर्ण रूप से संगमरमर से बना हुआ है।

शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में खड्ग, चक्र, त्रिशूल, तीर तथा बाईं भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुण्ड और धनुष हैं।

विशेष होती है माता की पोशाक
शिलादेवी को अष्टमी और चतुदर्शी को नवीन पोशाक धारण करवाई जाती है। आज भी पोशाक राजदरबार से ही आया करती है। माता रानी की ये पोशाक बेहद ही विशेष होती है। जिसमें चांदी की लैस और महरूम और लाल रंग का कपड़ा उपयोग होता है। इसके अलावा नवरात्रि में माता को राजपरिवार द्वारा बनवाई गई 500 साल पुरानी जरी की पोशाक धारण करवाई जाती है।

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