अलवर महाराज की फरमाइश : क्या जमाने में ऐसा कोई उस्ताद है जो हमारी आँखों में आंसू ला सके लेकिन उस्ताद ने कहा कि हमारी मौसिक़ी किसी सुलतान की गुलाम नहीं उसके बाद जो हुआ

क्या जमाने में ऐसा कोई उस्ताद है जो हमारी आँखों में आंसू ला सके लेकिन उस्ताद ने कहा कि हमारी मौसिक़ी किसी सुलतान की गुलाम नहीं उसके बाद जो हुआ
ustad aladiya khan
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अलवर महाराज विनय सिंह संगीत के बड़े शौकीन और फनकारों के महीन पारखी थे. एक दिन महाराज के दरबार में संगीत पर जोरदार चर्चा छिड़ गई. हिंदुस्तानभर के फनकारों और उस्तादों के किस्से महाराज को सुनाए जाने लगे. लेकिन महाराज विनय सिंह ने एक अलग तरह की फरमाइश रख दी. 

सिंहासन पर बिराजे महाराज ने कहा कि क्या अभी जमाने में ऐसा कोई उस्ताद मौजूद है जो अपनी गायिकी से हमारी आँखों में आंसू ला सके ? 

मंतरी - सन्तरी, दरबान और दास सब इधर - उधर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे. क्या वाकई अभी जमाने में ऐसा कोई फनकार हो सकता है जो महाराज की आँखों में आंसू ला सके. 

तभी एक आवाज ने दरबार का सन्नाटा तोड़ा और महाराज को अरज किया कि अतरौली में एक उस्ताद है, नाम मंतोल खान है. वह अपनी गायिकी से आपकी आँखों में आंसू ला सकता है. लेकिन उनका दरबार में आकर गाना मुश्किल है. 

इतना सुनकर महाराज विनय सिंह ने सिपाहियों को फरमान सूना दिया कि अभी अतरौली कूच किया जाए और उस्ताद मंतोल खान को दरबार में आकर गाने के लिए कहा जाए. 

फरमान सुनकर सिपाही अतरौली पहुँच गए और उस्ताद को खोजते - खोजते उनकी दौड़ एक बंद कमरे के दरवाजे तक पूरी होती है जहां एक फ़कीर रियाज कर रहा था. सिपाहियों को मालूम हुआ कि इस बंद कमरे में रियाज करने वाला फ़कीर ही उस्ताद मंतोल खान है जिसकी मौसिकी सुनकर महाराज का कलेजा पसीज सकता है. 

लगे हाथ दरवाजा खटखटाया गया लेकिन उस फ़कीर के रियाज पर कोई असर नहीं पड़ा. जब रियाज पूरा हुआ तो दरवाजा खुलते ही सिपाहियों ने अरज किया कि उस्ताद हम अलवर के महाराज विनय सिंह के सिपाही है, हमें खबर हुई है कि आपका गाया सुनकर कोई पत्थर दिल भी रो जाता है. महाराज ने आपको फ़ौरन बुलाया है. 

सिपाहियों की बात सुनकर वह फ़कीर बिगड़ गया और कहा दिया कि ' खबरदार ! हमारी मौसिक़ी किसी सुलतान की गुलाम नहीं मैं नहीं आऊंगा " 

इतना कहकर मंतोल खान ने दरवाजा बंद कर लिया और फिर से रियाज शुरू हो गया. 

बेबस सिपाही अब अजीब सी उलझन में थे. एक तरफ उस्ताद की जिद कि वे किसी राजा के दरबार में नहीं जाएंगे दूसरी तरफ महाराज का फरमान की उस्ताद मंतोल खान को लेकर ही अलवर लौटना. 

सिपाहियों ने तय किया कि जब तक उस्ताद अलवर जाने को राजी नहीं हो जाते तब तक वे बाहर दरवाजे पर बैठकर ही इन्तजार करेंगे और इस इन्तजार में महीने नहीं बल्कि पूरे तीन साल बीत गए. 

सिपाहियों की हठ देखकर उस्ताद आखिरकार अलवर जाने को राजी हुए लेकिन उसमे भी शर्त ये थी कि वे दरबार में हाजिर हो सकते है लेकिन जाएंगे नहीं. अलवर जाने पर बात बन गई और अपने दोनों बेटों के साथ झोला उठाकर उस्ताद मंतोल खान अलवर की तरफ चल पड़े. 

उस्ताद के अलवर आने की खबर जान दरबार लगाया गया और महाराज विनय सिंह सिंहासन पर बिराजे. तभी मंतोल खान के बेटे ने महाराज को फ़रमाया कि " अब्बा हुजूर तो नहीं जाएंगे आप मुझे ही सुन लीजिए " 

दरअसल यह एक तरकीब थी. उनके बेटे ने दरबार में गलत राग गाना शुरू कर दिया तो मंतोल खान से रुका नहीं गया और भरे दरबार में ही वे अपने बेटे पर बरस पड़े.-

" तुमने क्या ख़ाक सीखा है ? मैंने कितनी बार कहा है कि सलीके से रियाज करो " 

इसके बाद मंतोल खाना ने गाना शुरू किया और अगले तीन घंटे तक ऐसी तान छेड़ी कि महाराज ही बल्कि बल्कि दरबार में मौजूद हर कोई रोने अपने आंसू नहीं रोक पाया. 

स्त्रोत : वाह ! उस्ताद {प्रवीण कुमार झा } 

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