Jaipur Bomb Blast: जयपुर में सिलसिलेवार बम ब्लास्ट के सभी आरोपियों को हाईकोर्ट ने किया बरी, डेथ रेफरेंस को किया खारिज

जयपुर में सिलसिलेवार बम ब्लास्ट के सभी आरोपियों को हाईकोर्ट ने किया बरी, डेथ रेफरेंस को किया खारिज
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एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।

Jaipur Bomb Blast: 13 मई 2008 को जयपुर में सिलसिलेवार बम ब्लास्ट के 4 बड़े आरोपियों को बरी कर दिया है। जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की खंडपीठ ने 4 दोषियों को अपराधी न मानते हुए चारों दोषियों को बरी कर दिया है।

बता दें, चारों आरोपियों ने हाईकोर्ट में फांसी की सजा को खत्म करने की अपील की थी। जयपुर ब्लास्ट में 71 लोगों की जान चली गई थी, जबकि 185 घायल हुए थे। फिलहाल, इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की तैयारी में है। जयपुर बम ब्लास्ट में आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने कहा कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है, इसीलिए आरोपियों को बरी किया है।

दूसरी ओर, एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) राजेश महर्षि ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। इसकी तैयारी कर रहे हैं। इस मामले में हाईकोर्ट का कहना है कि जांच अधिकारी को कानून की जानकारी नहीं है। वहीं जिला कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था, जिन्हें अब हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है।

2008 में दिल्ली से लाए बम साइकिलों पर बैग में रखे थे।

आईएम के 12 आतंकी दिल्ली से बस में बम लेकर जयपुर आए थे। आतंकियों ने किशनपोल से 9 साइकिलें खरीदीं थी। साइकिलों के पीछे सीट पर बैग में टाइम बम लगाकर अलग-अलग
जगहों पर खड़ी कर दी। इसके बाद आतंकवादी रेलवे जंक्शन मिले और शताब्दी एक्सप्रेस से दिल्ली पहुँच गए। शहर में एक के बाद एक 8 ब्लास्ट हुए, नौवें बम को बीडीएस की टीम ने डिफ्यूज कर दिया। 

पुलिस जांच में सामने आया कि आतंकवादियों ने बम ब्लास्ट से फैली दहशत को न्यूज चैनल पर देखा। अगले दिन 14 मई को इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम से ईमेल जारी हुआ, जिसने धमाकों की जिम्मेदारी ली। तफ्तीश में सामने आया कि उत्तरप्रदेश के साहिबाबाद स्थित एक कम्प्यूटर जॉब वर्क की दुकान से यह ईमेल जारी हुआ था। 

इस तरह चला इस मामले का सफर

हाई कोर्ट ने बुधवार को 2008 के जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट मामले में चारों आरोपियों को बरी कर दिया, जिसमें 71 लोग मारे गए थे और 185 घायल हुए थे. अदालत ने साक्ष्य की कमी का हवाला दिया और जांच अधिकारियों की जांच में कानून का पालन नहीं करने के लिए आलोचना की।

राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की योजना बना रही है। 48 दिनों की सुनवाई के बाद बरी किया गया जिसमें बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) अपने किसी भी आरोप को साबित करने में विफल रहा है।

कोर्ट ने पाया कि सबूत के तौर पर एटीएस द्वारा पेश किए गए बिल बुक्स पर मौजूद साइकिल नंबर जब्त की गई साइकिलों के नंबर से मेल नहीं खाते। इसके अतिरिक्त, अदालत ने पाया कि एटीएस का यह सिद्धांत कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से हिंदू के नाम पर बस से आया था, सबूतों द्वारा समर्थित नहीं था।

साइकिल खरीदने वालों और टिकट लेने वालों के नाम अलग-अलग थे। इसके अलावा, अदालत ने पाया कि एटीएस अधिकारियों द्वारा साइकिलों के बिलों के साथ छेड़छाड़ की गई थी। अदालत ने यह भी सवाल किया कि आरोपियों के लिए रात का खाना खाना, साइकिल खरीदना, बम लगाना और उसी दिन दिल्ली लौटना कैसे संभव हो सकता है।

एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से बम में इस्तेमाल किए गए छर्रों को खरीदा था, लेकिन एफएसएल रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने जो छर्रों का उत्पादन किया था, वे बम में इस्तेमाल किए गए छर्रों से मेल नहीं खाते थे। अदालत ने पाया कि अभियुक्तों के खिलाफ लगाए गए आरोप किसी भी सबूत द्वारा समर्थित नहीं थे और एटीएस और सरकारी वकील अपने किसी भी आरोप को साबित करने में विफल रहे थे।

जिला अदालत ने 2019 में चारों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उन्होंने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। आरोपियों ने तर्क दिया था कि वे निर्दोष हैं और उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया है। उच्च न्यायालय ने सहमति व्यक्त की, और बचाव पक्ष के वकील सैयद सादात अली ने कहा कि अदालत ने मामले की जांच में ढिलाई के लिए एटीएस अधिकारियों को दोषी ठहराया था।

एक दशक से अधिक समय से न्याय का इंतजार कर रहे पीड़ित परिवारों के लिए हाईकोर्ट के फैसले से झटका लगा है। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का संकल्प लिया है और पीड़ितों के परिवारों ने उम्मीद जताई है कि उन्हें अंतत: न्याय मिलेगा।

यह मामला उचित जांच के महत्व और ऐसे मामलों में कानून का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता की याद दिलाता है। यह भी याद दिलाता है कि देर से मिला न्याय न्याय नहीं होता है।

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