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राजधानी जयपुर में पहले ये सम्मलेन ,चुनावी सभाएं शहर के बीचों बीच श्री रामलीला मैदान में होती थी ,फिर रामनिवास बाग़ में।
श्री रामलीला मैदान में होने वाली भीड़ का पुलिस के स्तर पर आकलन बीस हजार लोगों का होता था तो रामनिवास बाग़ में यह संख्या उससे कई गुना ज्यादा होती।
जयपुर शहर किसी जमाने में इंदिरा गाँधी ,अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की त्रिपोलिया बाजार में जन सभाओं का भी गवाह रहा है।
अब आवागमन में दिक्कत ,पार्किंग की कमी और आम जन की सुविधाओं का ख्याल रखते हुए अब एक ही जगह सबको नसीब होती है ,वह जगह है विद्याधरनगर स्टेडियम।
Jaipur | चुनाव हो और अलग अलग जातीय पंचायतों की और से राजनितिक दलों पर ज्यादा से ज्यादा टिकिट देने और भागीदारी की मांग नहीं हो ,ऐसा कम से कम भारत में तो संभव नहीं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजस्थान में भी कई संगठन अपने जातीय हकों के बहाने शक्ति प्रदर्शन भी करेंगे और ज्यादा प्रतिनिधित्व की मांग भी करेंगे।
इन पंचायतों में हर जाति के नेताओं का दावा जातीय प्रतिशत के आधार पर होगा और हर संगठन का दावा प्रतिशत के लिहाज से पहले से भी ज्यादा होगा। हाल ही जयपुर में जाट समाज का महाकुम्भ हुआ था।
अब 19 मार्च को ब्राह्मण महा पंचायत के बाद राजपूतों के लिए सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना आगामी दो अप्रेल को केसरिया पंचायत का आयोजन करेगी।
भीड़ का गणित !
जातीय पंचायतों का यह सिलसिला चुनाव करीब आने के साथ बढ़ता चला जायेगा। इन्ही पंचायतों में भीड़ की मौजूदगी दर्शा टिकिटों के लिए ज्यादा से ज्यादा दावेदारी होगी और भीड़ को हर कोई हजारों से लाखों में गिनाने के जतन भी करेगा।
चुनावों से पहले राजनेतिक दलों से अपना हक़ मांगने के लिए ये सभाएं ,पंचायत ,सम्मलेन हर बार राजधानी में होती हैं।
जयपुर में भीड़ जुटाने से पहले प्रदेश भर में चेतना सम्मेलन होते हैं सो अलग। राजधानी जयपुर में पहले ये सम्मलेन ,चुनावी सभाएं शहर के बीचों बीच श्री रामलीला मैदान में होती थी, फिर रामनिवास बाग़ में।
श्री रामलीला मैदान में होने वाली भीड़ का पुलिस के स्तर पर आकलन बीस हजार लोगों का होता था तो रामनिवास बाग़ में यह संख्या उससे कई गुना ज्यादा होती। जयपुर शहर किसी जमाने में इंदिरा गाँधी ,अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की त्रिपोलिया बाजार में जन सभाओं का भी गवाह रहा है।
बड़ी भीड़ के लिए सबकी पसंदीदा जगह रही तो वह था अमरूदों का बाग़। साल दो साल इन सभा स्थलों की जगह मानसरोवर में वीटी रोड की खाली जगह भी रही। लेकिन आवागमन में दिक्कत ,पार्किंग की कमी और आम जन की सुविधाओं का ख्याल रखते हुए अब एक ही जगह सबको नसीब होती है ,वह जगह है विद्याधरनगर स्टेडियम।
विद्याधर नगर स्टेडियम में जन सभा होने की सूरत में शहर के बाहर से यातायात भी आराम से होता है और बाजार में जाम और पार्किंग जैसी दिक्कतें भी ज्यादा नहीं होती।
अपने -अपने अनुमान
इन सभाओं ,सम्मेलनों में भीड़ को लेकर सबके अपने अनुमान होते हैं। कोई उसी संख्या को पांच लाख भी गिना सकता है तो कोई लाख -दो लाख गिनाकर भी संतुष्ट हो लेता है। लेकिन भीड़ गिनाने वालों की भी दिलचस्पी इस सच को जानने में होती है कि वास्तव में भीड़ हुई कितनी।
पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत के स्मृति स्थल के लिए इसी स्टेडियम का एक हिस्सा अलॉट कर दिए जाने और स्मृति स्थल बन जाने के बाद पुलिस इस जगह पर होने वाली भीड़ को सामान्यतः बीस हजार लोगों के जमावड़े के रूप में सरकार को रिपोर्ट करती है।
खुद सत्तारूढ़ दल की सभा हो तो यह संख्या इंटेलिजेंस इनपुट में बीस की जगह तीस हजार तक भी पहुँच जाती है। लेकिन मैदान के नाप ,मंच और कुर्सियों की स्थिति के हिसाब से आकंड़ा बीस हजार के आसपास ही माना जाता है।
इन सभाओं की रिपोर्ट तैयार करने वाले पुलिस कर्मियों के मुताबिक विद्याधर नगर स्टेडियम में अब कुल जमा 2 लाख 47 हजार 956 फ़ीट जगह उपलब्ध है। यह क्षेत्रफल बिलकुल किनारे से नाप लेने की सूरत में है।
जगह का सच
इसमें 60 फ़ीट का मंच और सुरक्षा घेरा निकाल दें और कुर्सियों के बीच 8 फ़ीट का रास्ता छोड़ दें तो उपलब्ध जगह का क्षेत्रफल होता है -2 लाख 1 हजार 500 फ़ीट। यहाँ लगाने वाली कुर्सियों की लाइन में आने जाने की जगह छोड़ दिए जाने के बाद नजदीक से नजदीक कुर्सी लगाये जाने की स्थिति में एक व्यक्ति के बैठने के लिए 3 गुणा 3 यानि लगभग 9 फ़ीट जगह चाहिए।
इस हिसाब से पुलिस का आकलन 2 ,01 ,500 फीट में 9 फीट भाग दिए जाने पर जो जगह बचती है ,उसमें 22,388 कुर्सियां ही आ सकती हैं। मतलब 22,388 लोग इस सभा स्थल पर बैठ सकते हैं। ऐसा तभी होता है जब किनारे से किनारे लोग बैठेंऔर बिलकुल भी जगह नहीं छोड़ी जाये।
इस लिहाज से पुलिस प्रशासन कुर्सियों पर लोगों के बैठने की सूरत में 15 हजार की भीड़ का आकलन करता है तो नीचे जाजम पर बैठने की सूरत में कुल 20 हजार लोगों के मौजूद होने का आकलन कर सरकार को भेजता है।
जिसे जिस समुदाय ,जाति के नेताओं में बढ़ा चढ़कर बोलने की क्षमता हो ,वह उस हिसाब से गिनाता भी है तो प्रचारित भी करता है। लेकिन पुलिस टेंट और कुर्सियों की जानकारी जुटाकर भी अपने आकलन को पुख्ता करती है।
राजधानी में सभाओं के लिए घटती जगह को देखते हुए आने वाले समय में किसी बड़े स्थल की भी डिमांड हो जाए तो अचरज की बात नहीं।
क्योंकि ,दिल्ली के पास ऐसी सभाओं के लिए वोट क्लब है तो लखनऊ में डिफेंस एक्सपो मैदान और रमाबाई आंबेडकर मैदान है तो तो पटना के पास वही गाँधी मैदान जहाँ से जेपी -जयप्रकाश नारायण ने 1975 में रैली कर सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था।
वैसे जयपुर के समीप सरकार क्रिकेट मैदान की जगह तो दे रही है। यह मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलोत की सदारत वाली आरसीए के हिस्से है कि कैसे बनेगा। इस प्रस्तावित स्टेडियम को लेकर आसपास की जमीनों और वहां बनने बिगड़ने वाले मार्केट पर भी खेल चल रहा है।
परन्तु शायद सरकार लोकतांत्रिक प्रदर्शन के लिए बड़ी जगह देने के मूड में नहीं है। क्योंकि प्रदर्शन सरकार को आजकल रास नहीं आते।