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परन्तु कानून और व्यवस्था को आसन्न एक संकट मुंह बाए खड़ा है। जिसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।
राजनीति के कुप्रबंधन में उलझी नक्सली डर की सूचनाएं राजस्थान विधानसभा में पूर्व विस अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने सदन में रखीं। इस डर को और पुख्ता कर रही है गृह विभाग की खुफिया रिपोर्ट्स। हालांकि उस इलाके के विधायक राजकुमार रोत ने इससे इनकार भी किया।
जयपुर | राजस्थान "राजाओं की भूमि" या "रजवाड़ों की भूमि" कहलाता है। लोकतंत्र स्थापना के 75 साल बाद यह उल्लेख करना क्या ठीक है? आज का मुख्य सवाल यह नहीं है?
वैसे भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की एक रिपोर्ट में सबसे बड़े भौगोलिक प्रदेश को यही सम्बोधन दिया गया है। "राजाओं का प्रदेश!" परन्तु बात यहीं नहीं ठहर जाती।
रिपोर्ट की एक लाइन हमें चौंकाती है। चिंता जगाती है और सोचने पर मजबूर करती है। यह अनायास नहीं है, यह हमें एक गंभीर इशारा है जिस पर सरकारी तंत्र फिलहाल मौन है। मौन इसलिए है कि उसके पास कोई जवाब ही नहीं है।
राजनीति के कुप्रबंधन में उलझी नक्सली डर की सूचनाएं राजस्थान विधानसभा में पूर्व विस अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने सदन में रखीं। इस डर को और पुख्ता कर रही है गृह विभाग की खुफिया रिपोर्ट्स। हालांकि उस इलाके के विधायक राजकुमार रोत ने इससे इनकार भी किया।
राजस्थान में नक्सलवाद सिर उठा रहा है। कुछ दिनों पहले एक समाचार पत्र ने जब इस खबर को उठाया तो बायकॉट जैसे हैशटैग से ट्रेंड हुआ था।
परन्तु केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट का यह इशारा राजस्थान के मौजूदा हुक्मरानों के कान खड़े नहीं करता तो उन्हें अपना और इस प्रदेश का भविष्य सुरक्षित नहीं मानना चाहिए।
यह रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश के 0.27 प्रतिशत जल निकायों पर नक्सलों का कब्जा हो चुका है। इनकी संख्या भले ही 46 है जो कुल जल निकाय की संख्या 16,939 से कम है। परन्तु यह लाल सलाम की आहट प्रदेश के समीकरणों के लिए भविष्य में चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ व चित्तौड़गढ़ जिलों के आदिवासी राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल हैं। परन्तु सरकारी तंत्र को 2014 में कुछ इनपुट मिले थे। 2023 तक इनका धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है।
अलग भीलस्थान की मांग, हमारा गांव- हमारा राज, पांचवीं अनुसूची पर अमल और विशेषकर उनके क्षेत्र में इंडियन पीनल कोड के पूरे लागू होने पर आपत्ति जैसे प्रमुख मुद्दे हैं, जो चिंता बढ़ाते हैं।
गृह विभाग के अनुसार ये मुद्दे और खिलाफत ही नक्सलवाद का पहला फेज है। हालांकि राजस्थान के अधिकारी और राजनेता इससे इनकार करते हैं कि स्थानीय लोग इसमें शरीक है।
संविधान के अनुच्छेद 244 में पांचवीं अनुसूची का जिक्र है। इसके भाग-10 में अनुसूचित व जनजातीय क्षेत्रों का उल्लेख है। राज्यों के इन क्षेत्रों में प्रशासन और नियंत्रण के लिए उपबंध बनाए गए हैं।
संविधान निर्माताओं ने पाया कि देश के विशाल जनजातीय समाज को परिभाषित करना जरूरी है। क्योंकि इनकी विशिष्ट संस्कृति है। जो उन्हें दूसरों से भिन्न करती है। इनकी अपनी न्याय प्रणाली है, खास भाषाएं व संस्कृति भी हैं।
इसलिए महसूस किया गया कि आजाद भारत के शासन की निर्णायक भूमिका में इनकी भी भागीदारी हो। इसलिए छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में पांचवीं और पूर्वोत्तर राज्यों में छठी अनुसूची लागू की गई।
राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है और इसकी आबादी करीब 8 करोड़ पहुंचने वाली है। राज्य अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता, मंदिरों, किलों और किले से खंडहरों की एक समृद्ध विरासत लगभग हर शहर में नजर आती है।
राजस्थान का एक पहलू जिसकी अक्सर अनदेखी की जाती है, वह है इसके जल निकाय। नवीनतम गणना के अनुसार, राजस्थान में 16,939 जल निकाय हैं, जिनमें से 98.9% ग्रामीण क्षेत्रों में और शेष 1.1% शहरी क्षेत्रों में हैं। अधिकांश जल निकाय तालाब हैं। इसके अतिरिक्त, इन जल निकायों का 53.3% निजी स्वामित्व में है, जबकि शेष 46.7% सार्वजनिक स्वामित्व में हैं।
सभी जल निकायों में से, 79.2% सिंचाई और घरेलू/पेयजल प्रयोजनों के लिए उपयोग में हैं, जबकि शेष 20.8% विभिन्न कारणों से उपयोग में नहीं हैं।
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि राजस्थान में 4,799 प्राकृतिक और 12,140 मानव निर्मित जल निकाय हैं। पेयजल इस प्रदेश की सबसे महत्ती जरूरत है। ऐसे में यहां दो आंकड़े बड़े चौंकाते हैं।
पहला 0.27 फीसद जल निकायों के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होने की सूचना और दूसरा लगभग इतने ही 0.30 प्रतिशत पर अतिक्रमण की जानकारी। टैंकों पर सबसे अधिक अतिक्रमण है।
16,939 जल निकायों में से 46.6% का जल विस्तार क्षेत्र 0.5 हेक्टेयर से कम है, और 16.9% का जल विस्तार क्षेत्र 0.5 हेक्टेयर से 1.0 हेक्टेयर के बीच है।
जलशक्ति मंत्रालय की ओर से पहली बार आई यह सेंसस रिपोर्ट कहती है कि राजस्थान राज्य को अपने जल संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए अपने जल निकायों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
सरकार वर्षा जल संचयन, तालाबों से गाद निकालने और जलाशयों की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए उचित रखरखाव जैसे उपायों को लागू कर सकती है।
परन्तु इससे बड़ी चौंकाने वाली सूचनाएं यह है कि अब नक्सलवाद यहां अधिकारिक तौर पर पांव पसाररहा है। राजस्थान, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध जल निकायों के साथ, भारत में एक आवश्यक राज्य है। राज्य में अपने जल संसाधनों के सतत उपयोग के साथ एक अग्रणी राज्य बनने की क्षमता भी है।
परन्तु कानून और व्यवस्था को आसन्न एक संकट मुंह बाए खड़ा है। जिसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।