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22 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत हो रही है और नराजस्थान के करौली जिले में स्थित माता के शक्तिपीठ कैला देवी के मंदिर (Kaila Devi Temple) में लक्खी मेले की शुरूआत हो चुकी है। मेले के पहले दिन ही यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
जयपुर | कैला मईया के भवन में घुटमन खेले लांगुरिया..... अगर आपने इस भवन को पहचान लिया है तो आप समझ भी गए होंगे की हम किसकी बात करने जा रहे हैं।
जी हां, आपने सही पहचाना है। 22 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत हो रही है और नराजस्थान के करौली जिले में स्थित माता के शक्तिपीठ कैला देवी के मंदिर (Kaila Devi Temple) में लक्खी मेले की शुरूआत हो चुकी है।
मेले के पहले दिन ही यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
प्रचलित कथाओं के अनुसार कैला मईया का यह वही स्थान है जहां माता सती के अंग गिरे थे और यहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ था।
यह भी माना जाता है कि इस स्थान पर बाबा केदारगिरी ने कठोर तपस्या कर माता के श्रीमुख की स्थापना की थी।
रविवार से कैला देवी के मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंची और चारों और कैला माता के जयकारे गूंजते रहे।
मेले की शुरुआत के साथ ही बड़ी संख्या में पदयात्री माता के दर्शनों और मनौती मनाने के लिए यहां पहुंच रहे हैं।
लगभग एक पखवाडे तक चलने वाले इस लक्खी मेले में राजस्थान के सभी जिलो के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात व दक्षिण भारतीय प्रदेशों तक के दर्शनार्थी आकर मां के दरबार में मनौतियां मांगते है।
अनुमान के अनुसार हर साल लगभग 30 से 40 लाख यात्री मां के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते है।
इनका स्वरूप माना जाता हैं कैला मईया को
मान्यताओं के अनुसार, कैला मईया को अंजना माता का अवतार भी माना जाता है और योगमाया भी कहा जाता है।
योगमाया भगवान श्रीकृष्ण की बहन और देवकी और वासुदेव की पुत्री थी।
ऐसे में कैला मईया को यादवों की कुल देवी के रूप में भी पूजा जाता है। मां कैलादेवी की मुख्य प्रतिमा के साथ मां चामुण्डा की प्रतिमा भी विराजमान है।
कैला मईया के इस शक्तिपीठ का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है।
माता का ये शक्तिपीठ राजस्थान के करौली जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा में 24 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।
इतिहासकारों के मुताबिक, खींची राजा मुकन्ददास ने सन् 1116 में मंदिर की सेवा, सुरक्षा का दायित्व राजकोष पर लेकर नियमित भोग-प्रसाद और ज्योत की व्यवस्था करवा दी थी। इसके बाद राजा रघुदास ने लाल पत्थर से माता के मंदिर का निर्माण करवाया था।
यहां आने वाली सुहागिन महिलाएं माता से अपने सुहाग की लंबी आयु का वरदान प्राप्ती हैं। यहां बच्चों के मुंडन संस्कार की भी परम्परा चली आ रही है।
यहां कैसे पहुंचा जा सकता है?
कैलादेवी का दरबार जयपुर से 195 किमी की दूरी पर स्थित है। कैलादेवी का धाम सीधा सडक मार्ग से जुडा हुआ है। ऐसे में यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
इसके अलावा पश्चिमी मध्य रेलवे के दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर हिण्डौन सिटी स्टेशन से 55 किमी एवं गंगापुर सिटी स्टेशन से 48 किमी की दूरी है। यहां से बस सेवा या निजी गाडियों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।