Highlights
- पंजाब की फिजाओं में एक बार फिर खलिस्तान का बुखार उफान पर है
- राजस्थान में खालिस्तान आंदोलन का इतिहास नाममात्र का रहा
- चुनाव के बहाने सिख मतदाताओं पर खूब सारे प्रयोग हुए
- राजस्थान के युवाओं में भी मुसेवाला को लेकर एक अलग तरह की दिवानगी रही है
- पंजाब से राजस्थान में कल्चर के बहाने गाने और गजले ही नही बल्कि गन और गैंगस्टर भी आए है
पंजाब की फिजाओं में एक बार फिर खलिस्तान का बुखार उफान पर है. अमृतपाल सिंह के नाटकीय उदय के बाद की घटनाओं ने जिन संभावनाओं को जन्म दिया है वह ना केवल पंजाब बल्कि राजस्थान के लिए भी बड़ी चिंता का विषय है.
राजस्थान में खलिस्तान आंदोलन का इतिहास नाममात्र का रहा है लेकिन बीते दो तीन दशकों से राजस्थान में भी राजनीति के बहाने ऐसी कोशिशें जरूर हुई है जिससे कि एक ठीक - ठाक उर्वर जमीन यहां भी खलिस्तान के समर्थन में तैयार की जा सके.
राजस्थान में बड़ा कांड कर चुके है खलिस्तानी
फरवरी 1995 में दिग्गज कांग्रेसी नेता नाथूराम मिर्धा के बेटे राजेन्द्र मिर्धा की जयपुर से खालिस्तानियों द्वारा किडनैपिंग और उसके बाद पुलिस कार्यवाही में सामने आया सच इस बात की शिनाख्त करने के लिए काफी था कि बीतती सदी के अंत में राजस्थान की राजधानी जयपुर में कुछ ऐसे लोग मौजूद थे जो पंजाब से खदेड़ दिए जाने के बाद सुरक्षित ठिकानों से अपने काम को अंजाम दे रहे थे.
राजस्थान के दो जिले ऐसे है जो पंजाब बॉर्डर से सटे है और यही एक खिड़की है जिसे चुनावी राजनीति के बहाने खलिस्तान समर्थक नेताओं ने खोलने की कोशिश की है, लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली.
राजस्थान में सियासी जमीन तलाशने का एक बड़ा प्रयोग हो चुका है
1990 के दशक में जब पंजाब में खलिस्तान आंदोलन अपने चरम पर था तो वहां से आने वाली हवाओं ने यहां की फिजाओं में भी खालिस्तान की बू घोलने की कोशिश की और चुनाव के बहाने सिख मतदाताओं पर खूब सारे प्रयोग हुए.
खलिस्तान समर्थक नेता सिमरनजीत सिंह मान ने 1990 के चुनाव में अपनी पार्टी अकाली दल ( मान ) के बैनर तले श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ की आठ विधानसभा सीटों पर प्रत्यासी मैदान में उतार दिए.
न केवल ऑपरेशन ब्लू स्टार बल्कि सिख विरोधी दंगों को मुद्दा बनाकर सिमरनजीत सिंह मान ने वहां के समीकरणों को काफी हद तक प्रभावित किया.
राजस्थान के मतदाताओं ने हवा निकाल दी
लेकिन जब नतीजे सामने आए तो खलिस्तान के पक्ष में जमीन तलाशते मान की हवा ही निकल गई. हालांकि एक विधानसभा सीट पर मान को अच्छा समर्थन मिला लेकिन इसके बदले में वहां सिख पॉलिटिक्स को गहरा धक्का लगा. श्रीकरणपुर सीट इससे पहले परंपरागत सिख सीट ही मानी जाती थी और हर बार यहां जीत भी सिख उम्मीदवार को ही मिलती थी.
लेकिन मान के उम्मीदवार की वजह से जब सिख मतदाताओं का विभाजन हुआ तो पहली बार भाजपा को इस सीट पर जीत नसीब हुई और भविष्य के लिए श्रीकरणपुर का पॉलिटिकल ट्रेंड बदल गया.
सिमरनजीत मान के इस प्रयोग के बाद हालत "खाया पिया कुछ नही गिलास तोड़ा बारह आने का" वाली हो गई. ना तो अकाली दल को ठीक - ठाक समर्थन मिला बल्कि उनकी कट्ठर छवि की वजह से उस क्षेत्र के गैर - सिख मतदाता भी सिखों के खिलाफ एकजुट हो गए और इस वजह से सिख राजनीति को भी बड़ा गहरा धक्का लगा.
ऑपरेशन ब्लू स्टार और सिख विरोधी दंगों को हथियार बनाकर जो सियासी फसल राजस्थान में काटने की कोशिश हुई वह काटी तो नही गई लेकिन भविष्य में इस तरह की संभावनाओं से विराम अभी तक नही लगा है. 2003 में शिरोमणि अकाली दल ( बादल ) के प्रदेश अध्यक्ष सुरजीत सिंह कंगा ने भी इनेलो के चिन्ह पर श्रीकरणपुर से चुनाव लड़ा लेकिन 1990 का सबक वहां के सिख मतदाताओं को याद रहा और कंगा की जमानत जब्त करवा दी.
खलिस्तान के नक़्शे में शामिल है ' राजस्थान '
राजस्थान खलिस्तानियो के लिए कितना महत्वपूर्ण हैं इस बात की पुष्टि "सिख फॉर जस्टिस " नाम के एक संगठन द्वारा अक्टूबर 2021 में जारी खलिस्तान का एक तथाकथित नक्शा करता है, जिसमे राजस्थान भी शामिल था. तिस पर भी दिवंगत पंजाबी सिंगर सिद्धू मुसेवाला के मर्डर का राजस्थानी कनेक्शन और पंजाबी गैंगस्टर की सुरक्षित शरणगाह बनता राजस्थान इस चिंता को ज्यादा मजबूत करता है.
यह बात दिगर है कि राजस्थान के युवाओं में भी मुसेवाला को लेकर एक अलग तरह की दिवानगी रही है और पंजाब से चला गन और गाड़ी का कल्चर राजस्थान के हनुमानगढ़,श्रीगंगानगर से लेकर शेखावाटी तक दस्तक दे चुका है. पंजाब से राजस्थान में कल्चर के बहाने गाने और गज़लें ही नही बल्कि गन और गैंगस्टर भी आए है.
तमाम तरह की आशंकाओं के बीच राजस्थान में इसी साल विधानसभा के लिए चुनाव भी होने है. पंजाब में अपनी सफलता पर सवार 'आम आदमी पार्टी' भी राजस्थान में अपने इरादे जाहिर कर चुकी है और यकीनन ' आप ' की सबसे बारीक नजर पंजाब से सटे श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले पर ही होनी है, जहां के सिख मतदाताओं पर एक बड़ा प्रयोग पहले भी सिमरनजीत सिंह मान और प्रकाश सिंह बादल कर चुके है.