नीलू की कलम से: कीवी v/s काचरा

कीवी v/s काचरा
कीवी v/s काचरा
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विकिपीडिया कीवी की महिमा गाते हुए थकता नहीं -"कीवी अपने सुंदर रंग के लिए लोगों में अधिक पसंद किया जा रहा है

हाल-चाल पूछने वाला हर शख्स कीवी खाने की सलाह देना नहीं भूलता

पता चले कि ग्वारपाठे को घृतकुमारी बनने से भी कम समय में काचरा कंचनफल बन जाए

विकिपीडिया इसके गुण गाने लगे और हमें एक काचरे के लिए बड़ा गांधी छाप खर्चना पड़े।

हाल ही में इधर आरपीएससी ने हमको प्रोफेसर के लिए अनफिट घोषित किया है.

सर्जरी के बाद डॉक्टर ने कुछ दिन काम-काज के लिए अनफिट घोषित किया है और इन दोनों से उपजे विषाद से शकल पर बजे बारह के बाद घरवालों ने मानसिक रूप से अनफिट घोषित कर दिया है.

पर न जाने क्यूं मुझे लग रहा है कि मेरा चंचल और अस्थिर मन उच्चै:श्रवा से हौड़ करने लगा है,

'आत्मन्येव वशं नयेत्' वाली बात बनती ही नहीं। इसका क्रेडिट किसे दूं यह समझ नहीं आ रहा। गायें बचती तो उनके दूध को देती पर उन्हें तो लंपी का लांपा लग चुका, थैली के दूध को दूध कम, 'धोळो पाणी' ज्यादा कहा जाना चाहिए तो फिलवक्त पूरा का पूरा दारोमदार है फलों पर और फलों में भी 'फलीय थरूर' कीवी पर।

एक जमाना था जब 'एक अनार सौ बीमार' की कहावत चलती थी पर अब तो 'एक कीवी- दीर्घजीवी' की कहावत आने वाली है। हाल-चाल पूछने वाला हर शख्स कीवी खाने की सलाह देना नहीं भूलता।

अलबत्ता बड़े-बूढ़े अब भी अनार को नहीं भूले हैं पर अनार 'अनसंग हीरो' बनता जा रहा है,इधर कीवी अपनी धाक जमाता जा रहा है। जमे भी क्यूं नहीं? भाई बड़े सलीके से डिब्बे में पैक होकर 'हम दो हमारा एक' वाले परिवार की तरह आता है।

दुकानदार कीवी मांगने वाले से एक्स्ट्रा तहज़ीब से बात करता है,घरवाले और एक्स्ट्रा तहज़ीब से उसे छीलते,काटते हैं और मैं 'और और एक्स्ट्रा' तहज़ीब के फॉर्क और कांच वाले बाउल में डालकर धीरे-धीरे खाती हूं। कायदे से मुझे एलिट वाला फील आना चाहिए पर मैं ठहरी आड़ू गांव वाली तो मेरा दिमाग तो उल्टा ही चलता है।

जब-जब मैं कीवी खाती हूं,मुझे काचरे की याद आती है। स्वाद में दोनों एक से हैं। जैसे कोई काचरे का सहोदर द्वितीय विश्व युद्ध की गहमा-गहमी के दौरान ब्लादिमीर पुतिन के पूर्वजों की तरह विदेश पहुंच गया हो.

जैसे पुतिन भारतीय पूर्वजों की याद में धोळा पड़ता गया वैसे ही कीवी भूरा। छिलके की कोई बड़ी बात नहीं,दिन भर खेत में खटने वाले और एसी में बैठने वालों की चमड़ी में फर्क तो होता ही है।

विकिपीडिया कीवी की महिमा गाते हुए थकता नहीं -"कीवी अपने सुंदर रंग के लिए लोगों में अधिक पसंद किया जा रहा है। कीवी में विटामिन सी, विटामिन इ, विटामिन के और प्रचुर मात्रा में पोटैशियम, फोलेट होते है। कीवी फल में अधिक मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट होता है। यह एंटी ऑक्सीडेंट शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। "

इधर बेचारे काचरे का विकिपीडिया तो छोड़िए,विक्की नाम वाला भी नहीं छूता। काचरे घर के कोनों में विभिन्न रस,गंध और आकार के साथ इधर-उधर लुढ़क रहे हैं और उधर कीवी निहायती खाकी होकर भी लोगों को अधिक पसंद आ रहा है। गांव को छोरो,बार'ला गांव को बींद!

फिर अपने यहां एक तो नाम ने आदमी की बड़ी खाद की है। नाम झूंत्यो या धापली रख दिया तो कोई मानने को तैयार नहीं कि ये नामधारी भी गुण या रूप से संपन्न हो सकते हैं। कल मेरी मां कह रही थी दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा करनी चाहिए पर अपने कहां मिलेगा शमी? यकीन मानिए मेरे प्रमाण पर प्रमाण देने के बाद भी वह खेजड़ी को शमी नहीं मान पाई।

 काचरा इसी भेदभाव का शिकार हुआ। माना कि काचरे के बीज मोटे हैं पर मोटा धान और मोटा पहरान हमारी पहचान रही है, इसमें लाज कैसी? काचरा ऋतु फल है,अबकी बिछड़े तो अगले चौमासे पे बात। जब तक मिल रहा है तब तक आदर से अपना लेना चाहिए अन्यथा केर,सांगरी की तरह लुप्त हुआ तो अमेजॉन पर ढूंढते रह जायेंगे।

पता चले कि ग्वारपाठे को घृतकुमारी बनने से भी कम समय में काचरा कंचनफल बन जाए,विकिपीडिया इसके गुण गाने लगे और हमें एक काचरे के लिए बड़ा गांधी छाप खर्चना पड़े।

नीलू शेखावत

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