थैलेसीमिया: डॉक्टर से जानिए बच्चों के लिए खतरनाक बीमारी  के लक्षण और बचाव

डॉक्टर से जानिए बच्चों के लिए खतरनाक बीमारी  के लक्षण और बचाव
Thalassemia बच्चों के लिए खतरनाक बीमारी
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Highlights

  • थैलेसीमिया एक ऐसी अनुवांशिक(genetic) बीमारी है
  • थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी में उम्र बढ़ने के साथ-साथ अलग लक्षण और समस्याएं भी अलग हो सकती है

जयपुर | थैलेसीमिया (Thalassemia) खून से जुड़ी एक अनुवांशिक(genetic) बीमारी है जो माता-पिता से बच्चों तक पहुंचती है। इस बीमारी में व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) बनना बंद हो जाते हैं। ऐसे में दुनिया भर के लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day ) मनाया जाता है। 

एक गंभीर अनुवांशिक विकार थैलेसीमिया है 

डॉ. मेघा सरोहा के अनुसार, थैलेसीमिया एक ऐसी अनुवांशिक(genetic) बीमारी है, जो हमारे देश में सबसे आम वंशानुगत विकार है। हर साल 10,000 से अधिक बच्चे थैलेसीमिया के सबसे गंभीर रूप के साथ पैदा होते हैं। इस बीमारी में शरीर में हीमोग्लोबिन(Hemoglobin) और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने की क्षमता को प्रभावित करता है। जिसके कारण उसे बार-बार बाहर के खून की आवश्यकता होती है। यह दो प्रकार का होता है, जब पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों थैलेसीमिया कैरियर(thalassemia carrier) हों तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया हो सकता है।

स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन

थैलेसीमिया(Thalassemia) का शरीर पर प्रभाव 

डॉ. आकाश खंडेलवाल के अनुसार, शरीर में हीमोग्लोबिन(Hemoglobin) बनाने के लिए आपको दो प्रोटीन की आवश्यकता होती है, अल्फा और बीटा। इनमें से किसी एक की पर्याप्त मात्रा के बिना, आपकी लाल रक्त कोशिकाएं ऑक्सीजन को उस तरह से नहीं ले जा सकतीं, जिस तरह उन्हें ले जाना चाहिए। थैलीसीमिया (Thalassemia) इन प्रोटीन के निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है।

जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होने लगती हैं। खून की भारी कमी होने से रोगी के शरीर में बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है और ऐसे में खून चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होना शुरू हो जाते हैं जो हृदय, लिवर और फेफड़ों में पहुँचकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं, और यह एक चक्र की तरह ज़िंदगी भर चलता रहता है।

थैलेसीमिया (Thalassemia) को जड़ से हटाना संभव है बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट अथवा स्टेम सेल ट्रांसप्लांट(stem cell transplant) नमक प्रक्रिया को करने के लिए सगा भाई या बहन स्टेम सेल डोनर बन सकते हैं। इसके लिए एक टेस्ट किया किया जाता है जिसको एचएलए(HLA) टेस्ट कहते हैं। अगर मरीज का भाई या बहन फुल एचएलए(HLA) मैच होते हैं तो सबसे अच्छे डोनर रहते हैं और इस प्रक्रिया को मैचेड सिबलिंग डोनर ट्रांसप्लांट(Matched Sibling Donor Transplant) कहा जाता है अगर भाई या बहन नहीं है या एचएलए(HLA) मैच नहीं होता है तो माता या पिता डोनर बन सकता है या स्टेम सेल डोनर रजिस्ट्री से डोनर ढूंढा जा सकता है।

थैलेसीमिया के लक्षण

डॉ सौम्या मुखर्जी, कंसलटेंट-हेमेटोलॉजी, हेमाटो ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट(Hemato Oncology and Bone Marrow Transplant), नारायणा हॉस्पिटल, हावड़ा के अनुसार, मेजर थैलेसीमिया बच्चे में गंभीर जटिलताएँ पैदा कर सकते हैं, जबकि अन्य प्रकार केवल हल्के या मध्यम लक्षण पैदा करते हैं। थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी में उम्र बढ़ने के साथ-साथ अलग लक्षण और समस्याएं भी अलग हो सकती है, ये रोग की गंभीरता पर भी निर्भर करते हैं। आम तौर पर थैलेसीमिया के लक्षण में एनीमिया के साथ बच्चे के जीभ और नाखून पीले पड़ने लगते हैं, बच्चे का विकास रुक जाता है, वह अपनी उम्र से काफी छोटा और कमजोर दिखने लगता है, उसका वजन गिरने लगता है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

थैलेसीमिया का बचाव और इलाज 

सरिता रानी जायसवाल के अनुसार, थैलेसीमिया(Thalassemia) से पीड़ित बच्चे में इलाज के लिए काफी बाहरी रक्त और दवाइयों की आवश्यकता होती है। ऐसे में सही समय से इलाज न करवाने से बच्चे के जीवन को आगे चलकर खतरा हो सकता है। डॉक्टर रोग की गंभीरता, लक्षणों और मरीज को हो रही समस्याओं के आधार पर थैलेसीमिया का इलाज करते हैं। जिसमें सामान्य रूप से रोगी के शरीर में हीमोग्लोबिन(Hemoglobin) का स्तर कम ना हो इसके लिए थोड़े-थोड़े समय पर खून चढ़ाया जाता है, अतिरिक्त आयरन को शरीर से बाहर निकलने का प्रयास किया जाता है |

फोलिक एसिड जैसे सप्लीमेंट्स(supplements) की सलाह दी जाती है और आवश्यकता पड़ने पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट आदि के माध्यम से भी इलाज किया जाता है। इस बीमारी से बचाव के तौर पर सबसे पहले थैलेसीमिक व्यक्ति को शादी से पहले अपने भाविक जीवनसाथी की जांच करवा लेनी चाहिए, गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच अवश्य कराएं, हड्डियों को मजबूत रखने के लिए स्वस्थ पोषक तत्वों से भरपूर आहार लें, अपनी दवाइयां समय पर लें, इलाज को बीच में ना छोड़े और नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें।

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