Highlights
अपनी वर्तमान जाति, अपने वंश, अपने धर्म, अपनी पुरातन परम्परा के प्रति आस्था और आदर आवश्यक है
जो अपनी माँ को माँ न कहे, वो पड़ोसन को काकी कैसे कह सकता है
इसलिए मैं हमारे समाज में उस वर्ग का प्रखर विरोधी हूँ, जो बार-बार स्वयं के राजपूत होने की घोषणा करता रहता है
मैं दर्जी हूँ, यह वर्तमान का सच है लेकिन मेरी जड़ें झाला राजवंश से मिलती हैं, यह ऐतिहासिक सच है, मेरा दोनों सच के प्रति आदर है
कुँवर अनिरुद्ध सिंह के कथन को यूँ समझिए...
एक ट्वीटर स्पेस कार्यक्रम में भरतपुर के युवराज कुंवर अनिरुद्धसिंह द्वारा अपनी जाति के वर्तमान और इतिहास पर जानकारी देने के बाद कुछ लोगों ने उन्हें ट्रोल करने की कोशिश की। अनिरुद्धसिंह ने कुछ ऐतिहासिक प्रमाण भी पेश किए हैं, लेकिन ट्रोलर्स तो ट्रोलर्स हैं। उन्हें तो यही काम है। कई विषयों में नेट और शोधार्थी प्रवीण मकवाना समझा रहे हैं कि वे कहना क्या चाहते हैं।
प्रथमतः आप मेरी कहानी समझें --
मेरी जाति दर्जी है, जो कि केंद्र और राज्य के ओबीसी वर्ग में शामिल है। मेरा कुल मकवाणा ( झाला ) है और गौत्र मार्कण्डेय। औरों का निश्चित रूप से नहीं कह सकता, लेकिन मेरे खानदान की जाति कर्म-आधारित है।
मैं पहले सोचता था कि हम सन्त पीपाजी के समय राजपूतों से दर्जी समाज में कन्वर्ट हुए। किन्तु हमारे सन्दर्भ में यह बात असत्य है। क्योंकि दर्जी समाज को लेकर कुछ बातें इस प्रकार हैं -
- दर्जी समाज का इतिहास सन्त पीपाजी से पुराना है। पीपाजी महाराज से ही दर्जी समाज का उद्भव हुआ, यह सर्वथा झूठ है। क्योंकि सिलाई की एक परम्परा सन्त पीपाजी से पूर्व भी थी। यही कारण था कि पीपाजी ने जब राजपाट छोड़ निष्पाप कर्म करना चाहा, तो दर्जी का काम चुना।
- जब सन्त पीपाजी ने दर्जी का काम चुना, तब कई क्षत्रियों ने भी कर्म के रूप में दर्जी होना निश्चित किया। ये वो लोग थे, जो राजपूत थे, लेकिन पीपाजी के अनुयायी बन जाने के कारण अब कर्मणा दर्जी थे।
- पीपाजी के समय अन्य वर्ण के लोग भी दर्जी बने। इसलिए कुछ दर्जियों के गौत्र ब्राह्मण एवं वैश्य भी मिलते हैं। आप मुझे अन्यथा न लें, क्योंकि यही ऐतिहासिक रूप से सच है कि कोई ख्यात, कोई इतिहास ग्रंथ, कोई बड़वा पोथी यह नहीं बताती कि कोई शूद्र भी उनका अनुयायी बना हो। हाँ, पीपाजी के गोलोकवासी होने के बाद कई शुद्र जाति भी इस कर्म में प्रवृत्त हुईं।
- ऐसा नहीं कि राजपूत और अन्य समाज के लोग सन्त पीपाजी के समय ही दर्जी बने हो ... बाद के समय में भी अन्यान्य जातियों के लोग दर्जी बनते रहे हैं। मैं इन्हीं लोगों में से आता हूँ।
हमें कन्वर्ट हुए महज़ दो सौ साल से भी कम समय हुआ है। हम पाटन, गुजरात से आये। एक बड़ी रियासत में जो भी घटित हुआ, मेरे पुरखे वहाँ से रोजगार के लिए निकल पड़े। - इससे यह बात भी असत्य सिद्ध होती है कि राजपूतों के पास जागीरें थीं, खूब टैक्स मिलता था, इसलिए उनकी ऐश थी। यदि ऐसा होता तो मेरे पुरखे रियासत छोड़ पेट भरने दर-दर नहीं भटकते। ये वही लोग थे, जिनके पूर्वजों ने जब कभी चितौड़ के राणाओं पर संकट आया, तब उनका मुकुट पहन स्वयं युद्ध लड़ा। लेकिन समय का फेर ...
मैं उस व्यक्ति ( मेरे पूर्वज ) का अतिशय आदर करता हूँ, जिन्होंने कर्म रूप में सिलाई का कार्य चुना। इसलिए; मैं दर्जी होकर गौरवान्वित हूँ। यही मेरा वर्तमान है, यही संवैधानिक सच भी है।
अब मैं स्वयं को राजपूत कहकर उस महामानव का अपमान नहीं कर सकता, जिसने जाने किन परिस्थितियों में पेट की आग शांत करने के लिए सिलाई कार्य को अपनाया।
हम कालांतर में दर्जी हुए। हम वहां से पलायन कर गए। आज बरसों से हमारे सारे रिश्ते नाते दर्जी जाति में ही होते हैं। यही अकाट्य सच है। जैसे भाटी वंश से एक व्यक्ति मुसलमान बना, आज उन लोगों के रिश्ते नाते मुसलमान समाज में ही होते हैं, न कि राजपूत समाज में।
इसलिए मैं हमारे समाज में उस वर्ग का प्रखर विरोधी हूँ, जो बार-बार स्वयं के राजपूत होने की घोषणा करता रहता है।
मैं दर्जी हूँ, यह वर्तमान का सच है। लेकिन मेरी जड़ें झाला राजवंश से मिलती हैं, यह ऐतिहासिक सच है। मेरा दोनों सच के प्रति आदर है।
अब अनिरुद्ध जी को लीजिए ...
उन्होंने कहा कि उनके पुरखे करौली के राजपूत थे। यह ऐतिहासिक सच है। उन्होंने स्वीकार न किया होता, तब भी यह सच बदलता नहीं।
लेकिन उन्हें जाट होने में कोई ग्लानि नहीं। यह कितनी अच्छी बात है। आप जिस सामाजिक, संवैधानिक व्यवस्था में वर्तमान हैं, उसके प्रति सम्मान होना आवश्यक है।
ऐतिहासिक रूप से राजपूत, अभी जाट, दोनों के लिए सम्मान - कुंवर अनिरुद्ध जी।
ऐतिहासिक रूप से राजपूत, अभी दर्जी, दोनों के लिए सम्मान -
Talking about the #Bharatpur family, we are descendants of Shri Krishna, we are Jats, but the origins are as follows. There are many sources to this claim but this is the easiest to interpret. I hope this clarifies all the debate. I stick to my stand. pic.twitter.com/OybFeymhiM
— Anirudh D. Bharatpur (@thebharatpur) December 28, 2022
प्रवीण मकवाणा।
अपनी वर्तमान जाति, अपने वंश, अपने धर्म, अपनी पुरातन परम्परा के प्रति आस्था और आदर आवश्यक है। जो अपनी माँ को माँ न कहे, वो पड़ोसन को काकी कैसे कह सकता है।