Highlights
महा शिवरात्रि 2023
शनिवार, 18 फरवरी 2023
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ - 18 फरवरी रात 08:02 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - 19 फरवरी 2023 अपराह्न 04:18 बजे
शिवरात्रि पारन का समय - 19 फरवरी 2023 पूर्वाह्न 06:41 बजे से दोपहर 03:30 बजे तक
हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस रात को काफी प्रभावी माना गया है और इसमें जागने की बात कही गई है।
कब मनाई जाएगी महाशिवरात्रि?
इस साल महाशिवरात्रि 18 फरवरी को मनाई जाएगी। महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग शाम को 05:42 बजे से लेकर अगले दिन सुबह 06:56 बजे तक है। जो लोग महाशिवरात्रि की निशिता पूजा करेंगे, उनके लिए सर्वार्थ सिद्धि योग बहुत ही फलदायी है। इस योग में आप जिस मनोकामना के साथ पूजा करेंगे, उसमें आपको सफलता प्राप्त होगी।
घर पर महाशिवरात्रि कैसे मनाएं?
यदि कोई मंदिर जाने में सक्षम नहीं है तो पूजा गतिविधियों को करने के लिए अस्थायी शिव लिंग बनाया जा सकता है। यहां तक कि मिट्टी को लिंग के रूप में आकार दिया जा सकता है और घर पर अभिषेक पूजा करने के लिए घी लगाया जा सकता है। शिव पूजा रात्रि में करनी चाहिए। शिवरात्रि पूजा रात्रि में एक बार या चार बार की जा सकती है।
महाशिवरात्रि में पूजा करने की विधि
महाशिवरात्रि के त्योहार पर आप भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद केसर जल चढ़ाएं और चंदन का तिलक लगाएं। साथ ही साथ बेलपत्र , भांग , धतूरा , फल , पान , गन्ने का रस आदि भगवान शिव को चढ़ाएं।
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो भी महाशिवरात्रि की रात बेहद खास होती है। मान्यता है कि इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है। यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है।
महाशिवरात्रि का धार्मिक महत्व क्या है?
यदि धार्मिक महत्व की बात करें तो महाशिवरात्रि की रात को शिव और माता पार्वती के विवाह की रात माना जाता है। इस दिन शिव ने वैराग्य जीवन से गृहस्थ जीवन की ओर कदम रखा था।
ये रात शिव और पार्वती माता के लिए बेहद खास थी। मान्यता है कि जो भक्त इस रात में जागरण करके शिव और उनकी शक्ति माता पार्वती की पूजा, आराधना करते हैं, उन भक्तों पर शिव और मां पार्वती की विशेष कृपा होती है।
धार्मिक मान्यता है कि भागवान शिव को प्रकृति पुरुष भी कहा जाता है। इसलिए मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर प्रकृति मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है।
इसका पूरा लाभ लोगों को मिल सके इसलिए महाशिवरात्रि की रात में जागरण करने व रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात कही गई है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में फर्क। दरअसल, शिवरात्रि हर माह की अमावस्या से एक दिन पहले यानी कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहा जाता है।
जबकि महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। महाशिवरात्रि वर्ष में एक बार ही आती है।
ज्योतिषियों के अनुसार, हर माह अमावस्या की रात चंद्रमा पूरी तरह क्षीण होता है।
ऐसे में माह को क्षय होती तिथि अमावस्या के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए एक रात पहले चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है और शिव जी की आराधना की जाती है।
ठीक उसी प्रकार हिंदू नव वर्ष शुरू होने से ठीक एक महीने पहले फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के तौर पर पूजा जाता है ताकि क्षय होते साल के दुष्प्रभाव से नए साल को बचाया जा सके।
क्यों होती है शिवरात्रि पर बेल पत्र से पूजा? भगवान शिव को बेल पत्र क्यों है अतिप्रिय?
एक पौराणिक कहा के अनुसार, बेल पत्र का जुड़ाव समुंद्र मंथन के समय से है। जब भगवान शिव को विष के कारण चढ़ी गर्मी को उतारने के लिए बेल पत्र अर्पित किया गया था।
दरसअल, समुद्र मंथन हुके समय अमृत से पहले विष निकला। उस विष में बहुत गर्मी थी, जो जीव जंतु और सृष्टि के लिए संकट बन गई।
इससे बचाने के लिए भगवान शिव ने विष धारण कर लिया। इस विष से भगवान शिव का मस्तक भी बहुत गर्म हो गया, और उनके शरीर में पानी की कमी हो गई। तब देवताओं ने बेल-पत्र महादेव के मस्तक पर चढ़ाए और जल अर्पित किया।
माना जाता है कि बेल-पत्र की तासीर ठंडी होती है। बेल-पत्र से शिव को राहत मिली और वो प्रसन्न हुए।
महाशिवरात्रि का इतिहास क्या है?
माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।
महाशिवरात्रि पर क्यों नहीं सोना चाहिए?
महाशिवरात्रि पर क्यों नहीं सोना चाहिए? इस पर सद्गुरु कहते हैं कि महाशिवरात्रि की रात मानव प्रणाली के भीतर ऊर्जा का एक प्राकृतिक उछाल होता है । इस अपव्यय ऊर्जा का उपयोग केवल वे ही कर सकते हैं जिनके पास सीधी खड़ी रीढ़ की हड्डी या रीढ़ है। इस दिन रात भर नहीं सोना चाहिए। इस दिन सुबह स्नान करके भगवान शिव की पूजा करें, उनकी कथा सुनें, गीत गाएं, मंत्र जाप करें और ध्यान करें।
महाशिवरात्रि पर हमें कब सोना चाहिए?
यदि आप पूर्ण उपवास कर रहे हैं तो शिवरात्रि के दौरान न सोएं । रात भर जागते रहें और दिव्य महिमा गाएं और भगवान के मंत्रों का जाप करें।
महाशिवरात्रि के दिन कौन से कपड़े पहने?
वैसे तो भगवान को सभी रंग प्रिय हैं, लेकिन सफेद और हरा रंग पहनना इस दिन शुभ माना जाता है। सोमवार को भी इन दो रंगों को पहनना अच्छा माना गया है।
शिव जी का प्रिय मंत्र कौन सा है?
भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र 'ॐ नमः शिवाय" काफी पावरफुल और चमत्कारी माना जाता है। यह मंत्र भगवान शिव को अतिप्रिय है। इस मंत्र का तात्पर्य पंच महाभूतो से है- पृश्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। और भगवान शिव खुद प्रकृति पुरुष हैं इसलिए इस मंत्र का जाप करने से आप ब्रह्म स्वरूप को जानने में सक्षम होते हैं। इस मंत्र का जाप शरीर में ऊर्जा का संचार करता है।
महाशिवरात्रि निशिता पूजा मुहूर्त 2023
महाशिवरात्रि की निशिता पूजा का शुभ समय रात 12:09 बजे से देर रात 01:00 बजे तक है।
भारत में भगवान शिव के सुप्रसिद्द मंदिर-
केदारनाथ मंदिर
गौरी शंकर मंदिर
नीलकंठ महादेव मंदिर
ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ
बटेश्वर नाथ मंदिर
श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर
रणबीरेश्वर मंदिर
श्री स्थानेश्वर मंदिर
दक्षेस्वर महादेव मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिलिंग मंदिर
सोमनाथ ज्योतिलिंग मंदिर
भीमाशंकर मंदिर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
विरुपाक्ष मंदिर