मिथिलेश के मन से: राजेंद्र नगर, रोड नंबर 12 पहुंचो

राजेंद्र नगर, रोड नंबर 12 पहुंचो
mithilesh kumar singh
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ओ.. यह रवींद्र भारती है। उसने सात काल किये। हम सबका लकड़सुंघवा दोस्त है रवींद्र भारती। आप उसे धरकोसवा भी कह सकते हैं। उसने अपना ताजातरीन कविता संग्रह ' जगन्नाथ का घोड़ा' पिछले दिनों ही तो भिजवाया था। लेकिन यह उसका पूरा परिचय नहीं है।

पूरा परिचय यह हो सकता है कि वह मूल रूप से कहां का है, उसका घर कहां है, इस ग्लोब के किस हिस्से का है, किस खीत्ते का है, उसका दीन-  ईमान क्या है- यह आप उम्र भर नहीं जान पायेंगे। व्यक्ति के रूप में यह है उसकी पहचान का एक सूत्र।

जब हम पटना पहुंचे और अब जब हम उस मुख्तसर से (तीन दिनी) दौरे की तफसील बयान कर रहे हैं तो यह मत समझिए कि आपको सब कुछ डिजिटल मोड में या सिलसिलेवार ढंग से यहां मिल जाएगा।

दो दूना चार के पैटर्न वाला जीवन हमने नहीं जिया। हम ऐसा जीवन जी भी नहीं सकते। मौके बहुत मिले लेकिन नहीं जिया तो नहीं जिया। जानते हैं क्यों?  एक होता है जाल जो आपको फंसाता है।

एक होता है शिकारी जो आपका, आपकी संवेदनाओं, आपकी जहानत, आपकी समझदारी का आखेट करता है । तरतीब उन सब का घर होती है। हमें ऐसे घर रास नहीं आते।

खैर। पटना के राजेंद्र नगर जंक्शन पर उतरते ही 'टिन्न टिन्न' से कान पक जाते हैं। हर दूसरे मिनट टिन्न.. टिन्न। फोन लगातार बज रहा है। लेकिन हम उठाएं तो कैसे उठायें? आबाकाबा डटा रखा है हमने।

ठंड वैसे भी सरकश है। जाने किस जेब में पड़ा है मोबाइल। आटो में ढूंढ शुरू होती है मोबाइल की। मिल गया, मिल गया। आर्किमिडीज को भी इतनी खुशी नहीं हुई होगी जब उसने कुछ हासिल कर लिया होगा, जब उसने उद्घोष किया होगा- यूरेका- यूरेका..।

ओ.. यह रवींद्र भारती है। उसने सात काल किये। हम सबका लकड़सुंघवा दोस्त है रवींद्र भारती। आप उसे धरकोसवा भी कह सकते हैं। उसने अपना ताजातरीन कविता संग्रह ' जगन्नाथ का घोड़ा' पिछले दिनों ही तो भिजवाया था। लेकिन यह उसका पूरा परिचय नहीं है।

पूरा परिचय यह हो सकता है कि वह मूल रूप से कहां का है, उसका घर कहां है, इस ग्लोब के किस हिस्से का है, किस खीत्ते का है, उसका दीन-  ईमान क्या है- यह आप उम्र भर नहीं जान पायेंगे। व्यक्ति के रूप में यह है उसकी पहचान का एक सूत्र।

अब सोचिए कि तरतीबवार ढंग से आप समझ पायेंगे ऐसे शख्स को? लेकिन वह है हर जगह। वह 'नाभिनाल' में है। वह ' जड़ों की आखिरी पकड़ तक' में है।  वह ' जनमासा' में है। वह ' कंपनी उस्ताद' में है। वह 'लट्ठा पार की डायरी' में है। वह ' फूंकन का सुथन्ना' में है।

यह सब उसकी छपीछपायी किताबें हैं। वह कहीं दिखे- न दिखे, किताबों में, अपनी रचनाओं में जरूर दिखेगा। उस रवींद्र भारती ने हमें याद किया है। थोड़ी देर में काल बैक कर लेते हैं। कोई जरूरत होगी जरूर वरना ऐसे लोग मुश्किल से हाथ आते हैं।

घर पहुंचते न पहुंचते फिर टिन्न: सुनो... हैलो, मैं रवींद्र भारती बोल रहा हूं। फौरन पहुंचो राजेंद्र नगर, रोड नंबर 12।  हम वहीं मिलेंगे। वहां केदार बाबू रहते हैं। केदारनाथ सिंह। दिनकर जी के सुपुत्र। वह तुम्हें याद कर रहे हैं। वह तुमसे मिलना चाहते हैं।

चाय पियो मियां और सटक लो। शहर को खबर हो गयी है कि तुम आ गये हो। घर वालों से माफी मांगो। कह दो, अभी आया..शाम तक न आने के लिए।  (क्रमश:)

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