मिथिलेश के मन से: हंसोगे भी! पूछोगे भी!!

हंसोगे भी! पूछोगे भी!!
mithilesh kumar singh latter
Ad

Highlights

इस चिट्ठी को तो उस मुलुक में जाना है जहां थोड़े भले और दीन- ईमान वाले लोग रहते हैं

हमने सुना है कि वे वहां बहुसंख्यक हैं। यह भी कि वहां हर कदम पर इंसाफ होता है

यह चिट्ठी उस पार जाएगी। वहां एक दूसरा ही ग्रह होगा, दूसरी ही दुनिया..यकीन मानिए

हमने सुना तो यह भी है कि वहां भी एक संसद रहती है और लोगों को मायूस नहीं होना पड़ता

हम एक चिट्ठी लिखना चाहते हैं। हम लिखना चाहते हैं कि धरती के लोगों से  हमारा जी भर गया।  यह भी कि वह धरती जहां हम पैदा हुए और जहां हमारे पुरखों ने, पुरखों के भी पुरखों ने आंखें खोलीं- वह धूर्तों और मक्कारों और फरेबियों से भर गयी है।

हम मारे जाएंगे, यह जानते हुए भी हम यह रिस्क उठायेंगे। आर्यावर्तियों की इस दुनिया में सबसे तकलीफदेह और गलाजत भरा काम है जिंदा रहना और सबसे आसान है मर जाना। उससे भी ज्यादा आसान है मारा जाना। किसी के हाथों ' सद्गति' को प्राप्त हो जाना।

महज दस रुपये खर्च करो और जान ले लो किसी की भी। कह दो- वह दंगाई था, बलवाई था, वह उल्टा सोचता था, वह खोजी था, वह विनोदी था, वह हंसता था, वह पूछता था- हंसते हंसते।

हंसते हंसते पूछने वाले लोग कुटिल होते हैं। ऐसे लोग पैदाइशी और आदतन हरामी होते हैं। सो, उसका भी बने रहना घातक था। सो, वह मार डाला गया। ऐसे लोग हर युग में मारे जाते हैं। उन्हें जिंदा रखना ही घातक है।

लेकिन इस चिट्ठी को तो उस मुलुक में जाना है जहां थोड़े भले और दीन- ईमान वाले लोग रहते हैं और हमने सुना है कि वे वहां बहुसंख्यक हैं। यह भी कि वहां हर कदम पर इंसाफ होता है।

चले तो इंसाफ, रुके तो इंसाफ, बोले तो इंसाफ, अबोले रह गये तो इंसाफ। गरज कि उस मुलुक के रज- कण में इंसाफ ही इंसाफ है, थोड़ा ही सही।  कुछ समझे? समझे कि यह चिट्ठी कहां जाएगी?

यह चिट्ठी उस पार जाएगी। वहां एक दूसरा ही ग्रह होगा, दूसरी ही दुनिया..यकीन मानिए। हमने सुना तो यह भी है कि वहां भी एक संसद रहती है और लोगों को मायूस नहीं होना पड़ता।

उन्हें मिल जाता है  उनकी इस चिंता का जवाब कि रोटी खाता कौन है? बेलता कौन है और उससे खेलता कौन है?

मिल जाता है जवाब कि कौन छापता है हड़ताली पोस्टर और क्यों छापता है?

वहां की चंपा को काले- काले अक्षर पढ़ने में दिक्कत पेश नहीं आती और न दुखहरन मास्टर आदम का सांचा गढ़ने के लिए 'दे दनादन' या 'दे सटासट' जैसा वह सुकृत्य करते हैं जो हर बहती पुरवा के साथ  आह- ऊह को और जवान कर देता है।

तो यह तो हुई चिट्ठी लिखने की बात। यह हुई उस दुनिया की कैफियत जिसका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं। अब जानिए कि उस चिट्ठी का मजमून क्या होगा। तो उसका मजमून यूं होगा;

सेवा में
श्रीमान राज्याध्यक्ष महोदय
उस पार वाली नयी दुनिया
महोदय,

हम धरती के रहवासी हैं। शताब्दियों पुराने।‌ हम यहां रहते हैं और सहते हैं। यह हमारी फितरत है। इस धरती की बनावट बयार जैसी है जिसमें दिखता कुछ नहीं, होता सब कुछ है।

बयार आपके यहां बहती है कि नहीं माई- बाप? बहती जरूर होगी वरना लोग जियेंगे कैसे?लेकिन एक फर्क  तब भी  होगा दोनों जहानों में। जैसा हम समझ पा रहे हैं, फर्क यह होगा कि हमारे यहां विचार भी बयार जैसे बहते हैं।

आपके यहां भी बहते होंगे।  बहते हैं न? बहना ही चाहिए। फर्क तब भी है। आपके यहां विचार बहते हैं तो कोई हद अछूती नहीं रहती होगी। हमारे यहां विचारों के बहने की दिशा तय है।

या तो वे दायें बाजू से हो कर गुजरेंगे या फिर बायें बाजू से। वैसे तो दोनों बाजू कटखने हैं एक- दूसरे के लिए। लेकिन वे कब मिल जाएं और कब कुट्टी कर लें, यह अंदाज़ अल्ला मियां भी नहीं लगा सकते।

होने को यह भी हो सकता है यहां कि हम एक सीजन में दायें बाजू के साथ रहें और दूसरे सीजन में बायें बाजू के साथ।

यह भी संभव है  कि दोनों बाजू अपनी ऐतिहासिकता- प्रागैतिहासिकता के दावे में जमीन- आसमान के कुलाबे एक कर दें और जब कुछ भी हासिल न हो तो हाथ मिला लें- यह कहते हुए कि जंग जारी रहेगी, कि हमने लड़ाई छोड़ी नहीं, स्थगित की है कुछेक दिनों के लिए।

हम कुछ दिन साथ होंगे क्योंकि विपदा बड़ी है.. क्योंकि लोग हंस रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं बाढ़ और अकाल और महंगाई में हमारी भागीदारी से जुड़े सवाल।हम खतरे में हैं। जाहिर है, यह आर्यावर्त खतरे में है।

गोलबंद होना ही होगा। खतरा टलते ही हम एक- दूसरे पर झपट पड़ेंगे। हम एक- दूसरे की जामातलाशी लेंगे। हम मिसाइलें दागेंगे।

हम बाढ़ और अकाल और दुसह गरीबी के बीसियों तर्क ढूंढेंगे, हम टोपियां बदलेंगे, हम फरेब के कारखाने लगाएंगे, हम बढ़ती आबादी का ठीकरा आयी- गयी सरकारों पर फोड़ेंगे, हम मर्दों की मर्दानगी और औरतों के अस्तित्व को छापामार अंदाज में खल्लास करेंगे। कभी साझासाझा, कभी तन्हा तन्हा।

राज्याध्यक्ष महोदय! आपके यहां ऐसी नूराकुश्ती होती है क्या? इस बार इतना ही। आपका जवाब मिल जाए तो हम कुछ और अरज करने की सोचेंगे।

हम सोचेंगे और अंदाज लगाएंगे कि आपके यहां का टीआरपी क्या है, जीडीपी क्या है, आपके यहां अखबार निकलते हैं या नहीं, उन अखबारों में कितना स्वप्नलोक है, आपके यहां जीवन की गति क्या है, दायें- बायें बाजू से इतर भी कोई बयार आपके यहां बहती है या नहीं, आपके यहां सस्ता क्या है- रेंगते हुए मर जाना या मारा जाना...!

Must Read: रुक जा रात, ठहर जा रे चंदा ( बरस्ता कचौड़ी गली) दूसरी किश्त

पढें Blog खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें thinQ360 App.

  • Follow us on :