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ठाकर साब आपको याद है? काळे-धोळे मिंयों ने माड्याणी (जबरदस्ती) लड़ाई मांड ली। आपकी कालवी घोड़ी (काला तगरा) जिसके बिना आप खाना-पीना तक न करते थे,शहीद हो गई और मैंने आपको अपनी धोळी खचरी (नया तगरा) दी। बी लड़ाई में कांई लड्या हा आप कांई लड्या हा!(उस लड़ाई में आप क्या तो लड़े थे!)
एक थे ठाकर, एक चौधरी। दोनों में एक दांत रोटी टूटती। चौधरी था बातूनी और ठाकर बातों के शौकीन। दोनों मजे से कोटड़ी में बैठकर बातों की 'ब्याळू' करते।
ठाकर के पास जमीन तो खूब थी पर उपज के नाम पर खाने लायक दाने भी मुश्किल से मिलते। इधर साहूकार 'खल्डे' काढ़ता, उधर आए बरस अकाल 'केवे' काढ़ता,बिगोड़ियां भर-भरके ठाकर का दम निकल गया ।
पश्चिमी राजस्थान का आदमी दो ही बातें जानता है- 'के तो ठाकरी के चाकरी।'
फाकामस्ती में ठाकरी तो कितने दिन चलती,तो 'खाती के डांए हाथ बसोला' चाकरी ही थी।
ठाकर ने कहा- "देख चौधरी! तुम तो जाट के घर पैदा हुए हो, न राज की चिंता न रीत की।
मैं ठहरा रजपूत,खुद भूखा रह लूं पर आए-गए (द्वार पर आए) को हाथ आगे करना (कुछ न कुछ देना ही पड़ता है। घर में 'ऊंदरे थड़ियां' करने लगे हैं। 'श्यान के टक्के' होने से पहले घर छोड़ना पड़ेगा।
"आप जाओगे तो मैं यहां क्या करूंगा? रोज रावळी चिलमें पीता हूं, घर वालों ने तो वैसे ही कामचोर कहकर 'उदक' दिया है। आप दो हाथ हिलाओगे तो मैं भी हिला लूंगा। बात-बतळावण से
'बीखे' (संकट) के दिन बेगे कटेंगे।
दोनों माळवे रवाना हुए। धर मंजला धर कूंचा। 'कांकड़-सींवें' लांघते ही दोनों ने साफे अंगोछे में बांध लिए।(ताकि कोई पहचान न सके कि ठाकर साब या चौधरी भीख मांग रहे हैं।) मांगकर खाना दोनों न जानते थे पर क्या करते? मां न मां का जाया,देश पराया।
दो-चार दिन भूखे मरने के बाद डरते-सकुचाते हुए किसी घर के आगे भीख मांगी।
उस घर की लुगाई सासू-ननद से 'झोड़' करके रोटी बनाने बैठी होगी, चिल्लाकर बोली- "मंगतेपन पर उतरे सो तो ठीक पर अपने ठीकरे (बर्तन) तो ले आते,छाछ राबड़ी क्या 'धोबे' में डालूं?
ठाकर को जैसे काटो तो खून नहीं। अपूठा होकर टप-टप चल पड़ा।
चौधरी बोला- "ठाकरां छाछ मांगने भी जाएं और तोलड़ी (मिट्टी की हांडी) पीछे छुपाएं! ये दिन तो ऐसे ही काटने पड़ेंगे।
जींवणा तब तक सींवणा। चौधरी कुम्हार के 'न्ह्यावड़े' (मिट्टी के बर्तन पकाने की जगह) से दो-तीन तगरे (ठीकरे) उठा लाया।
रास्ता 'खाटा-मोळा' कट रहा था कि एक दिन कुछ कुत्ते लड़ते-लड़ते ठाकर के पैरों में आ गिए । ठाकर गिरे तो हाथ का तगरा फूट गया। गरीबी में आटा गीला।
ठाकर रोने लगे। चौधरी बोला- ठाकरां! रोए राज नहीं मिलता! फिक्र न करो, मैंने एक तगरा अंगोछे में और बांध रखा है। राजा के जीव में जीव आया।
तो सा! ऐसे ही दोनों ने धूप-छांव देखते हुए कई बरस काटे। एक चौमासे चौधरी देखता है कि आंथुणी (पश्चिम) करती काली बादली गहराई हुई है।
हरख से बोला- ठाकरां अबकी बार अपने देस 'जमाना' (अच्छी वर्षा) होगा, जे हुवे तो गांठली बांधो।
दोनों के पैरों में जैसे पंख लग गए और घुंघरू बंध गए। कई महीनों का मार्ग कुछ दिनों में पार कर घर लौटे।
झमाझम बारिश हुई और दग-दग फसलें बढ़ीं। बाजरी, गुंवार, मूंग-मोठ से अखार-बखार भर गए।
झूंपों पर नई 'पानी' (सरकंडा) बंधी और 'झाटे' के नए 'बाते' । कोटड़ी के डोळे बंध गए और नई छड़ियों से छप गई सफेद झक्क 'बाड़'।
रावळे की चमाचम देखकर सगे-गिनायत कंवर के रिश्ते के लिए आ बैठे।
ठाकर सोचने लगे- "बाकी सब तो संभाल लूंगा मगर इस चौधरी की जीभ 'निचली'(चुप) नहीं रहती।
इसने पावणों (मेहमानों) के सामने भीख वाली बात कह दी तो मेरी 'खात' (बेइज्जती) हो जाएगी।जे हो तो इसे 'काणा-डोडा' (कहीं दूर भेजना) करो।
ठाकर चौधरी से बोले- "चौधरी! आज तुझे खळा (फसल का ढेर) रुखाळने जाना है। दो-एक दिन की बात है, तुम्हारा 'भाता' (खाना) वहीं भिजवा दिया जायेगा।
चौधरी चला गया। किसी बळगताऊ (गंतव्य की ओर जाता हुआ)आदमी के साथ ठाकर ने भाता भेजा।
आदमी ने चौधरी से कहा- आज तो ठाकरां के पांवणे (मेहमान) आए लगते हैं।
चौधरी ने भाता वहीं छोड़ा और सल्ड-सल्ड रावळे आ लिया। ठाकर की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई।
"अब यह सारी पोल खोलेगा।"
चौधरी ने सबसे 'रामा-श्यामा'(अभिवादन) की,फिर बोला- "देखो सा, ऐसा है- हम एक बार माळवे"... ठाकर ने 'खंकारा' (खांसकर रुकने का संकेत) किया।
चौधरी संभला और बात बदलते हुए बोला- "जागीरी घणी है सा पण मेह-पाणी टेमूटेम नहीं होता। मेह-पाणी की बात आ गई तो आपको बताऊं - "एक बार हम माळवे..."
ठाकर ने फिर खंकारा किया।
"चौधरी मेह-पानी छोड़ो,रिसाले की बात करो"- ठाकर ने डायवर्ट करना चाहा।
"रिसाले की बात तो ऐसी है सा- आपको याद है ठाकर साब! माळवे की लड़ाई?"
ठाकर सोचने लगे- "घूम-फिरकर आ गया माळवे, अब यह कौनसा गोला गिराएगा?
बात रखने को बोले- "लड़ाइयां होती रहती है चौधरी! कौन-कौनसी याद रखें?
"अरे अन्नदाता! वो लड़ाई आप जीवन भर न भूलेंगे!"
पांवणे बोले- "बताओ-बताओ चौधरी जी ! ऐसी कौनसी लड़ाई थी?
"अरे हुकम! जोरदार लड़ाई हुई- धुरधुर खान की लड़ाई।"
ठाकर साब आपको याद है? काळे-धोळे मिंयों ने माड्याणी (जबरदस्ती) लड़ाई मांड ली। आपकी कालवी घोड़ी (काला तगरा) जिसके बिना आप खाना-पीना तक न करते थे,शहीद हो गई और मैंने आपको अपनी धोळी खचरी (नया तगरा) दी। बी लड़ाई में कांई लड्या हा आप कांई लड्या हा!(उस लड़ाई में आप क्या तो लड़े थे!)
चौधरी ने युद्ध का ऐसा ओजपूर्ण वर्णन किया कि पांवणे ठाकर साब की बहादुरी से प्रभावित होकर कंवर को नारेळ (सगाई करना) दे गए।
सब जाने के बाद चौधरी डांग उठाकर जाने लगा। ठाकर बोले- "अब कठे?"
"बात तो रुखाळ दी अब खळो रुखाळबा जाऊं।"
- नीलू शेखावत