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कुशल शासन प्रबंधन पढ़ाना ही है तो राजपूताना का पढ़िए जहां के शासकों ने भीषण युद्धों में जन-धन की अनवरत हानि सहते हुए भी साहित्य,कला और संस्कृति की न केवल रक्षा की अपितु चहुंमुखी विकास भी किया।
अपनी क्रूरता और जंगलीपन से मनुष्यता से कोसों दूर कौम महान कैसे हो सकती है?
खैर मुगल प्रेमियों को अधिक समझाने का कोई अर्थ नहीं। उन्हें यह झुनझुना बजाना है,बजाएं।
दो दिन पहले एक खबर सुनने में आई। एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम में फेरबदल किया है। यूपी सरकार ने भी इसे अपने यहां लागू किया। खबर इतनी सी थी। उसके लगे कुछ फुंदने, फिर कुछ घूघरे और अब तो लालर-झालर न जाने कुछ का कुछ। सुनने में आ रहा है कि- "योगी सरकार अब नहीं पढ़ाएगी मुगल इतिहास।"
लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया और लगे गरियाने- "मुगल काल ही हटा दोगे तो इतिहास में बचेगा क्या?"
कुछ क्रिएटिव मीमबाज खिल्लियां उड़ाने में व्यस्त कि मुगल नहीं रहे इतिहास में तो प्रताप और शिवाजी लड़े किसके साथ थे? भाले और तलवारें, युद्ध और संधियां हवा बाजी मात्र थी फिर तो!
बौद्धिक राष्ट्रवादी भी पीछे नहीं। कह रहे इतिहास बदलना उचित नहीं!
फिर कुछ सजातीय बंधुओं की चिंता तो अलग ही लेवल की- "योगी मुगलों के बहाने राजपूतों के इतिहास को मटियामेट कर रहा!"
भाई जरा सांस लो! तसल्ली से जान लो कि आखिर हटाया क्या गया है।
कक्षा बारह की इतिहास की पुस्तक ‘भारतीय इतिहास के कुछ विषय- II’ से 'शासक और इतिवृत्त-मुगल दरबार' अध्याय को हटाया गया है। इसके अतिरिक्त ग्यारहवीं की इतिहास की किताब से इस्लाम का उदय, औद्योगिक क्रांति, संस्कृतियों में टकराव और समय की शुरुआत पाठ हटाए गए। वहीं, नागरिक शास्त्र की किताब से 'शीत युद्ध और अमेरिकी वर्चस्व' पाठ हटाया गया।
अब यह अफवाह तो निराधार है कि मुगलों का इतिहास नहीं पढ़ाया जाएगा। कहिए कि मुगल दरबार ही मुगल इतिहास है तो इस चैप्टर के अंतर्गत दिए गए पॉइंट्स भी देख लेते हैं और इनके अंतर्गत दिए गए कुछ उद्धरण भी-
१. मुगल शासक और उनका साम्राज्य- "कई लोग मुगल बादशाहों में जहीरूद्दीन अकबर को मुगल बादशाहों में महानतम मानते हैं क्योंकि उसने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार ही किया बल्कि इसे अपने समय का विशालतम, दृढ़तम और सबसे समृद्ध राज्य बनाकर सुदृढ़ किया... अकबर के बाद जहांगीर,शाहजहां और औरंगजेब के रूप में भिन्न भिन्न व्यक्तित्वों वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी हुए।"(उद्धरण)
किसी सम्राट की प्रशंसा इनसे अधिक मीठे शब्दों में और क्या होगी। महान हैं तो रक्तपात,बलात्कार,यहां तक कि हर तरह की नृशंसता जायज है चाहे मरने-कटने और लुटने वाले मेरे पूर्वज ही क्यों न हों? काफिरों के मुंडों की मीनार बनाकर 'गाजी' की उपाधि धारण करना महानता का ही तो हिस्सा है। जलती स्त्रियां, कटते पुरुष और टूटते देवमंदिर आपको विचलित क्यों करते हैं?
गर्व से स्वयं को 'तख्ते तैमूरिया' का वारिस कहने वाले से तुमको क्या चाहिए? चित्तौड़ साका,जयमल, फत्ता और कल्ला को याद करके भावुक होने की जरूरत नहीं। प्रताप,चंद्रसेन और सुरताण वे राष्ट्रद्रोही हैं जिन्होंने अकबर के राष्ट्रीय एकता के प्रयास को चुनौती देने का दुस्साहस किया। दृढ़तम मुगलिया राज काफिरों की सफाई बिना ही संभव है क्या?
योग्य उत्तराधिकारियों की योग्यता का तो क्या ही कहिए! खैर..
- इतिवृत्तों की रचना- लेखन का महत्त्व मुगलों ने समझाया।
- 'लिखित शब्द की उड़ान' नाम से अबुल फजल की लंबी चौड़ी दार्शनिक व्याख्या।
- रंगीन चित्र और चित्रकारी- मुगल प्रगतिशील थे। विश्व स्तरीय चित्रकारी कहीं हुई तो सिर्फ मुगलकाल में। हिंदू कला और स्थापत्य तो तब 'मोगली' हुआ करता थी। वैसे 'मोगली' शब्द किपलिंग ने मुगलों से ही लिया।
- अकबरनामा और बादशाहनामा- मियां मिठ्ठू अबुल फजल क्या चाशनी में डूबी भाषा लिखता है।
मामा को ब्याह, मां पुरस्गारी फेर कुण केवे ब्याह भूंडो। - आदर्श राज्य- न्याय की जंजीर का गुणगान। 'न्याय के विचार को मुगल दरबार में सर्वोत्तम सद्गुण माना गया है।' (उद्धरण)
- सुलह ए कुल- "सभी मुगल बादशाहों ने उपासना स्थलों के निर्माण वा रख रखाव के लिए अनुदान दिए। यहां तक कि युद्ध के दौरान जब मंदिर नष्ट कर दिया जाता था तो बाद में उनकी मरम्मत के लिए अनुदान जारी लिए जाते थे, ऐसा हमें शाहजहां और औरंगजेब के शासन में पता चलता है।" (उद्धरण)
- भव्य राजधानियां और दरबार- मुगल दरबारों के शाही अंदाज वाले बेशुमार चित्र।
- कोर्निश और तसलीम
- विवाहों की शानो शौकत और खर्चों का ब्यौरा
- शहजादियों के दान वृत्ति,विद्वता
- शाही हरम- 'हरम' का मतलब पवित्र स्थान।
अब बताइए इस अध्याय के हटने से कौनसा मुगल इतिहास समाप्त हो गया? पाठक्रम निर्माण और परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है। इसमें ऐसा क्या अमिट था जो भूचाल आ गया?
पाठ्यक्रम से हटाए गए अन्य अध्यायों के बजाय सिर्फ 'मुगल दरबार' पर ही हंगामा क्यों?
मुगल दरबार पढ़ाना जरूरी है तो बाकी हिंदू दरबार परिदृश्य से गायब क्यों जिन्होंने कई पीढ़ियों तक मुगलों की जाड़े किरकरी रखी।
कुशल शासन प्रबंधन पढ़ाना ही है तो राजपूताना का पढ़िए जहां के शासकों ने भीषण युद्धों में जन-धन की अनवरत हानि सहते हुए भी साहित्य,कला और संस्कृति की न केवल रक्षा की अपितु चहुंमुखी विकास भी किया।
अपनी क्रूरता और जंगलीपन से मनुष्यता से कोसों दूर कौम महान कैसे हो सकती है?
खैर मुगल प्रेमियों को अधिक समझाने का कोई अर्थ नहीं। उन्हें यह झुनझुना बजाना है,बजाएं।
किंतु राजपूत क्यों कसमसा रहे?
इतिहास बदलने का आशय पात्र बदलना नहीं नायक बदलना होता है। आज मुगलों के विजय अभियानों में कुम्भा,सांगा और प्रताप का जिक्र आता है।
होना यह चाहिए कि ऐसे महान शासकों के राजनैतिक,धार्मिक,सांस्कृतिक अवदान को पढ़ाया जाए और विदेशी आक्रांताओं का युद्ध भर के प्रसंगों में जिक्र आए क्योंकि राजपूतों ने खानाबदोश जाहिलों की तरह सिर्फ और सिर्फ युद्ध ही नहीं लड़े।
जंगल और घास की रोटियों से मेवाड़ का वैभव अक्षुण्ण नहीं रह पाता। क्यों प्रताप को हल्दीघाटी तक और रायसिंह, मान सिंह,जसवंत सिंह और जयसिंह आदि को मुगल मातहती तक सीमित रखकर आनेवाली पीढ़ियों को कुंठित किया गया?
मध्यकाल में देश में अन्यान्य महान भारतीय शासक हुए जिनका गरिमामय जीवन और मरण भारतीय विद्यार्थी को गौरवान्वित अनुभूति दे सकता है फिर दिल्ली और मुगल ही क्यों? जब औरंगजेब की दादागिरी पढ़ाते हैं तब यह क्यों भूल जाते हैं कि जसवंत सिंह, जयसिंह और राजसिंह कैसे उस 'बिना नाथ वाले नारे को नाथकर' नाकों चने चबवाते हैं। 'कुफ्र का दरवाजा' यूं ही नहीं कहलाए।
हां इस बहाने आप योगी को कोसना चाहें तो आपको कौन रोके जो ठरके से कहता है- "हां मैं क्षत्रिय हूं, क्षत्रिय होना अपराध थोड़े है। मुझे अपनी जाति पर अभिमान है।"
- नीलू शेखावत