जयपुर | पाली में राजपूत और सीरवी समाज क्या वाकई में आमने—सामने हो गया है। इसकी पूरी कहानी क्या है? बीस गुणा चालीस फीट यानि कि आठ सौ वर्गफीट का एक प्लॉट क्यों दो समाजों के बीच आठ सौ साल के सौहार्द में इतना बड़ा हो गया कि हालात पहले जैसे नहीं रहे।
सांसद पीपी चौधरी का पाली में प्रदर्शन करते हुए पुतला जलाने और राजपूत समाज की जनसभा के बाद माहौल गरमा गया है। यदि हम सीरवी समाज की वेबसाइट देखें तो यह जाति खेतीहर कौम है, लेकिन आठ सौ साल पहले राजपूतों से ही अलग हुई है। यहां तक कि सीरवी समाज में दीवान यानि कि धर्मगुरू की परम्परा राजपूत समाज से ही आती है। यह परम्परा दोनों समाजों के बीच एक साझा सौहार्द कायम रखे हुए हैं आठ सौ साल की अलहदा पहचानबाद भी। फिलहाल पूर्व मंत्री माधव सिंह दीवान सीरवी समाज के धर्मगुरू हैं। दोनों ही समाजों में शक्ति की पूजा होती है।
सीरवी समाज आईमाता की पूजा करता है। ऐसे में एक—दूसरे को सपोर्ट करने वाली जाति में किस तरह से एक आपराधिक प्रकरण के कारण आमने—सामने हो गई। यह तो साफ है कि पाली लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की ओर से जाट समाज को टिकट दिए जाने के कारण राजपूत पूरी तरह से भाजपा यानि कि बीते तीन बार से पीपी चौधरी को ही वोट देते रहे हैं।
ऐसे में उन्हीं का चुना हुआ सांसद उनके खिलाफ कैसे बोल सकता है? क्या पीपी चौधरी वाकई राजपूत समाज के खिलाफ बोले हैं, या उन्होंने न्याय की बात कही है? या इसमें कोई प्रछन्न राजनीति भी नजर आती है। पिछला वीडियो इसी पर था कि पीपी चौधरी की राजनीतिक दिशा राजपूत समाज की नाराजगी के बाद क्या होगी?
चूंकि मूल मामला न्यायालय में है और जांच चल रही है। ऐसे में किसी तरह की टिप्पणी ठीक नहीं है। परन्तु इस विवाद पर एक नजर डालें तो यह है कि देसूरी के निकट ढालोप गांव में 20 गुणा 40 फीट का एक प्लॉट पर कब्जे को लेकर दो पक्षों में विवाद है।
यह प्लॉट गांव के बस स्टैंड पर है तो उसकी कीमत लाखों रुपए में है। वर्ष 1999 से हेमाराम सीरवी पुत्र चुन्नीलाल सीरवी के नाम से प्लॉट का पट्टा है, जबकि हेमाराम के रिश्तेदार दूदाराम सीरवी के पुत्रों का दावा है कि उनके पिता का यह शामलाती प्लॉट है। दूदाराम के पुत्रों ने जून माह में पदमपुरा गांव के पुष्पेंद्र सिंह राजपूत के नाम प्लॉट बेचने का एग्रीमेंट किया।
16 जुलाई को हेमाराम अपनी मां, रिश्तेदार श्रवण व परिवार के लोगों के साथ प्लॉट पर निर्माण करा रहा था। इस दौरान बिना नंबरी कार में आए पुष्पेंद्र सिंह, जयवर्धन सिंह समेत अन्य लोगों ने निर्माण का काम कर रहे परिवार पर लाठियों-सरियों से हमला कर दिया। हमले में हेमाराम, उसकी मां घीसी देवी व रिश्तेदार श्रवण घायल हो गए थे। आरोपी फरार थे, कुल पांच लोग बताए जा रहे हैं। इनमें से दो ने सरेंडर कर दिया है। फिल्हाल पुलिस के रिमांड पर है।
राजपूत समाज संघर्ष समिति के गजेन्द्र सिंह कालवी ने कहा- ढालोप गांव में प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई दबाव में आकर की। उन्होंने बिना किसी तरह का नोटिस दिए कार्रवाई की जो गलत है। इससे पूरे राजपूत समाज में रोष है। उन्होंने कहा कि जिस भूखंड का विवाद है, वह भूखंड खरीदशुदा है।
उस विवाद को लेकर जो मारपीट हुई उसमें दोषियों को पुलिस पकड़कर कानून के जरिए सजा दिलाएं हमें कोई ऐतराज नहीं, लेकिन कुछ नेताओं के दबाव में आकर जो चारदीवारी तोड़ने की कार्रवाई बिना किसी तरह का नोटिस दिए की गई, जिसका हम विरोध करते है।
इन मांगों पर बनी सहमति पूर्व विधायक खुशवीर सिंह, किसान संघर्ष समिति अध्यक्ष गिरधारी सिंह मंडली, गजेन्द्र सिंह कालवी, मारवाड़ राजपूत सभा के अध्यक्ष हनुमान सिंह व अन्य लोगों ने संभागीय आयुक्त प्रतिभा सिंह को अपनी 9 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा।
प्रमुख मांगों में बताया कि प्रकरण के तहत जिन पुलिसकर्मियों को पुलिस लाइन भेजा गया, उन्हें फिर से बहाल कर फील्ड पोस्टिंग दी जाए। साथ ही दूसरे पक्ष पर भी मुकदमा दर्ज करने। जब्त वाहन और वैपन वापस देने। हिस्ट्रीशीट नहीं खोलने, सामने वाले पक्ष के लोगों के भी अतिक्रमण की जांच करवाकर उन्हें हटाने की मांग की।
हालांकि मांगों पर सहमति बनने पर शाम करीब पांच बजे धरना समाप्त किया। इसके साथ ही जिला कलेक्टर को भी हटाने की मांग की और उचित कार्रवाई नहीं होने पर 24 सितम्बर को फिर से धरना देने की चेतावनी दी।
29 अगस्त 2024 : घटना के 45 दिन बाद भी आरोपियों के गिरफ्तार नहीं किए जाने के विरोध में सीरवी समाज के लोग रैली के रूप में कलेक्ट्रेट पहुंचे और उग्र प्रदर्शन किया। देसूरी थाने के तीन पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर करने, आरोपियों के अतिक्रमण की जांच कर उन्हें हटाने और उनकी गिरफ्तारी के लिए विशेष टीम जोधपुर के बुलाने के आश्वासन के बाद सीरवी समाज ने धरना समाप्त किया था।
हालांकि सीरवी समाज की ओर से दावा है कि यह प्रदर्शन छत्तीस कौम का था। पीपी चौधरी का भाषण सुनें तो ऐसा लगता भी है, लेकिन यदि हम भंवर चौधरी को सुनें तो यह प्रदर्शन एक समाज तक सिमटा हुआ उसी तरह नजर आता है, जैसा राजपूतों का हुआ।
इस प्रदर्शन का असर यह हुआ कि 30 अगस्त 2024 : ढालोप ग्राम पंचायत के पदमपुरा गांव में प्रशासन की टीम ने कार्रवाई कर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण चिह्नित कर उसे हटाने की कार्रवाई कर दी। अब दूसरा पक्ष भी अपने सामाजिक नेताओं पर दबाव बनाता है।
अगले ही दिन दबाव में आकर प्रशासन द्वारा चारदीवारी तोड़ने की कार्रवाई के खिलाफ राजपूत समाज के लोग 4 सितम्बर 2024 कोपाली में एकत्रित हुए और सांसद का पुतला फूंका। यहां राजपूतों ने भी बड़े प्रदर्शन चेतावनी दी तो पुलिस ने उनकी भी चार मांगें मान ली है। पहले सीरवी समाज ने प्रदर्शन किया तो पुलिस कार्यवाही करती है और फिर राजपूत करते हैं तो पुलिस कार्यवाही करती है।
अब सवाल पाली पुलिस के अमले पर है। यदि प्रकरण आपराधिक और कार्यवाही बनती है तो सामाजिक संगठनों के प्रदर्शन की नौबत ही क्यों आ रही है।
हालांकि यहां सीरवी और राजपूत समाज संसदीय क्षेत्र में साझी और सहयोगात्मक खत्म होती है तो सीधा फायदा कांग्रेस को होता है जो पिछले चार चुनावों से लगातार जाट प्रत्याशी को अपना टिकट दे रही है।
पुलिस दोनों ही प्रदर्शनों के बाद कार्यवाही करती है। इससे साफ है कि पुलिस पद भीड़ के दबाव का मनोविज्ञान सीधे तौर पर काम करता है।
पहली बात सीरवी समाज के साथ जनप्रतिनिधि के बतौर पीपी चौधरी आए, लेकिन राजपूत समाज के सत्ताधारी नेता नहीं सामाजिक संगठन आए। भाजपा में फिलहाल मंत्री या संगठन के लोग आम राजपूतों से दूरी की स्थिति में हैं। राजपूतों में जो हायारकी वाला सिस्टम राजा—महाराजाओं के वक्त में था।
वह अब भी नजर आता है। उनके चुने हुए जनप्रतिनिधि सामाजिक मुददों पर अक्सर साथ नजर नहीं आते। यहां तक कि जोधपुर के भूंगरा में हुए काण्ड में जब शेखावाटी से राजेन्द्र गुढ़ा पहुंचे तभी मारवाड़ के नेता जागे। ऐसे में आम राजपूत सामाजिक संगठन की ओर देखता है।
भाजपा की सरकार में राजपूत कोटे से भले ही राज्य में तीन और केंद्र में एक कैबिनेट स्तर के मंत्री हैं। राजपूतों के प्रदर्शनों में अक्सर सामाजिक संगठन ही नजर आते हैं। ऐसे में आयोजन में भाषा का स्तर देखें तो राजपूत समाज के आयोजन में कई नेताओं का उग्र और असंवैधानिक सम्बोधन भी था, जबकि पीपी चौधरी अपने सम्बोधन में किसी समाज का नाम लिए बिना अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही की बात कह रहे हैं।
लेकिन पीपी चौधरी से पहले भंवर चौधरी जो सीरवी समाज के उपाध्यक्ष हैं, उनके स्पीच को सुनें, उसकी भाषा को सुनें तो राजपूतों के सामाजिक नेताओं की भाषा क्रिया की प्रतिक्रिया जैसी ही नजर आती है।
29 अगस्त आयोजन में भाजयुमो के पूर्व अध्यक्ष सुरेश चौधरी का नेतृत्व भी सीरवी समाज में एक सामाजिक राजनीतिक संभावनाओं की अलग कहानी है। सुरेश चौधरी अब केसाराम चौधरी और पीपी चौधरी के बाद उभरते नेतत्व की संभावनाओं में खुद को रखना चाहते हैं।
विधायक केसाराम के स्पीच पर भी राजपूत समाज के लोगों को आपत्ति नजर आती है। तमाम चीजें हैं, जिन्हें इस वीडियो में अमर करने का कोई तुक नजर नहीं आता।
सांसद पीपी चौधरी से जो फोन पर बात हुई उसमें उनका कहना है कि उन्हें चुना ही इसलिए गया है कि वे अन्याय के खिलाफ लोगों का साथ दें, उनकी आवाज उठाएं, भले ही वे किसी जाति समाज से हों। जो अतिक्रमी है और हमलावर है, उन्हें जाति से देखने के बजाय उनके कत्य से देखा जाना चाहिए और उसी अनुरूप उन पर कार्यवाही होनी चाहिए।
पीपी चौधरी का कहना है कि उन्होंने राजपूत क्या किसी भी समाज के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। उनका पूरा वीडियो देखिए। वे कह रहे हैं कि जो अतिक्रमी है। गोचर कब्जा रहे हैं, हमले कर रहे हैं। उन पर विधिसम्मत कार्यवाही के लिए वे हमेशा संघर्षरत रहेंगे। किसी भी समाज को अपराधी के साथ खड़े नहीं होना चाहिए।
दूसरे पक्ष यानि कि राजपूतों का इस मामले में अन्याय किए जाने का आरोप है, लेकिन उनके पास पूरे मारवाड़ में ऐसा कोई चुनिंदा जनप्रतिनिधि नहीं है जो उनकी बात रखने के लिए साथ खड़ा हो। राजपूतों की पीड़ा है कि आठ विधायक भाजपा को राजपूतों ने मारवाड़ में दिए हैं। जबकि एक भी उनके मुददों पर नजर नहीं आता।
खैर! यह दूसरे पक्ष का कहना है, लेकिन कुल मिलाकर यहां जो रायता फैला है, उसकी बात सामाजिक सौहार्द के बिगड़ने तक पहुंची है। राजपूत और सीरवी आमने—सामने विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं, लेकिन लोकसभा में एक होते हैं। दो परिवारों से शुरू हुआ यह संघर्ष दो समाज के स्तर पर पहुंचने से पहले ही खत्म हो। इसकी कोशिश दोनों ओर से होनी चाहिए।
पाली की पंचायती वैसे भी बिना मुददे और निष्कर्ष के अलग रंग दिखाती है ऐसे में आठ सौ साल पुरानी साझी विरासत आठ सौ वर्गफीट के प्लॉट पर खत्म नहीं होनी चाहिए।