Highlights
- दलित अधिकार और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे पीएल मीमरोठ नहीं रहे
- राजस्थान के कांशीराम कहे जाते थे पीएल मीमरोठ
- भंवर मेघवंशी ने मीमरोठ के निधन को देश भर के दलित आंदोलन को बड़ी क्षति बताया है
- पी एल मीमरोठ दलित अधिकार संघर्ष से जुड़ा ऐसा नाम था जो दलितों के हक और हकूक के लिए आजीवन जुटे रहे
राजस्थान में दलित अधिकार और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे पीएल मीमरोठ नहीं रहे। सामाजिक आन्दोलनों में दशकों से सक्रिय रहे मीमरोठ ने शुक्रवार की सुबह आखिरी सांस ली।
सामाजिक बदलाव के लिहाज से राजस्थान के कांशीराम कहे जाने वाले मीमरोठ दलित अधिकारों के लिए इतने समर्पित थे कि उनके दलित अधिकार केंद्र पर दिन रात पीड़ितों और वकीलों की संगत लगती थी।
दलित अधिकार केंद्र के माध्यम से वंचित वर्ग के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले मीमरोठ के निधन पर सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शोक व्यक्त किया है।
रिक्त हुआ दलित आंदोलन
राजस्थान में हुए दलितों पर हुए बर्बर डांगावास काण्ड का सच लाने और कई पुस्तकों का लेखन करने वाले भंवर मेघवंशी ने मीमरोठ के निधन को देश भर के दलित आंदोलन को बड़ी क्षति बताया है।
मेघवंशी ने अपनी पोस्ट में लिखा है -
"पी एल मीमरोठ साहब आपका चले जाना राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे देश के दलित आंदोलन को रिक्त कर गया। आपने बेहद विपरीत परिस्थितियों से निकल कर समाज जागरण का काम किया, पूरी ज़िन्दगी लगाई। आपके काम को देखते हुए, आपको सुनते हुये हम अंबेडकरी आंदोलन में पले और बढ़े। आपका योगदान अविस्मरणीय है। "
कुछ दिनों पहले ही तो मीमरोठ से अपनी मुलाक़ात को याद कर भावुक हुए मेघवंशी ने लिखा है -" आपके (मीमरोठ) के जाने से जैसे हज़ार दीये बुझ गये हो।
पीयूसीएल के भंवर लाल कुमावत ने मीमरोठ के निधन को दलित समाज के लिए बड़ी क्षति बताते हुए लिखा है - "किसी भी संस्था के जीवन में उसके कर्ताधर्ता का साया उठ जना, एक बहुत बड़ी क्षति है। मीमरोठ के जाने से दलित अधिकार केंद्र के साथियों और परिवार जनों पर क्या गुजर रही होगी, अनुमान लगा सकते हैं।
कुमावत ने जीवन भर मीमरोठ द्वारा दलित समुदाय के लोगो की भलाई और समाजसेवा में उनकी सक्रियता को अतुलनीय बताया। दरअसल ,पी एल मीमरोठ दलित अधिकार संघर्ष से जुड़ा ऐसा नाम था जो दलितों के हक और हकूक के लिए आजीवन जुटे रहे।
दलित अधिकार में लगाया जीवन
पत्रकार श्रीपाल शक्तावत ने मीमरोठ को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है कि ,"जब भी किसी दलित/दमित पर अत्याचार की कोई वारदात होती,पहला फोन मीमरोठ साहब को करता । बात नहीं हो पाती तो उनके दशकों से साथी-सतीश जी को । एक बार वह पीड़ा सुन लेते तो मैं निश्चिंत हो जाता कि अब पीड़ित को न्याय भी मिलेगा और दोषी को दंड भी ।
वह बातें कम,काम ज्यादा करते । सो जब भी बात होती,सिर्फ काम की ही बात होती ।आज वही मीमरोठ साहब चल बसे । दलित आंदोलन के हाथ से सब कुछ फिसल गया ।विपरीत हालात से निकल दलित न्याय की लड़ाई लड़ने में वह राजस्थान के कांशीराम थे । कई मायनों में उनसे अलग भी ,आगे नहीं तो पीछे भी नहीं ।उनका जाना संविधान में भरोसा करने वाले,बराबरी /न्याय की लड़ाई लड़ने वाले हर व्यक्ति के लिये निजी क्षति है ।
मीमरोठ ने दलितों को न्याय दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष किया। वंचित वर्गों के अधिकार सुरक्षित करने लिए मीमरोठ ने हर चुनाव में इलेक्शन कंट्रोल रूम बनाकर दलित इलेक्शन वाच जैसे नवोन्मेषी प्रयोग किये और इस वर्ग के हकों को सुरक्षित करने की कोशिश की।
इनोवेटिव थे मीमरोठ
वह "दलित इलेक्शन वॉच, राजस्थान" विशेष रूप से अशांत और कमजोर संवेदनशील क्षेत्रों में चुनाव प्रक्रियाओं का निरीक्षण और निगरानी सुनिश्चित करते।
वह कोशिश करते थे कि हाशिये पर जीने वाले वर्ग बिना किसी डर और धमकी के वोट डाल सकें । इसी मकसद से उन्होंने "दलित इलेक्शन वॉच" जैसे अभिनव प्रयोग किये और जयपुर में चौबीसों घंटे काम करने वाला एक "इलेक्शन कंट्रोल रूम" स्थापित कर दलितों के मनोबल को बढ़ाने जैसे उपाय किये।
मीमरोठ अपने पीछे दलित अधिकार केंद्र के रूप में समर्पित कार्यकर्ताओं की एक टीम खड़ी कर दुनिया से विदा हुए हैं। लेकिन ,बच्चा कितना भी बड़ा हो ,हर फैसले में उसे पिता और संरक्षक की कमी खलती है। राजस्थान के दलित आंदोलन को भी यह कमी जब तब खलती रहेगी।