राजस्थान की राजनीति: पूनिया पर खेलेगी बीजेपी बड़ा दांव ?

पूनिया पर खेलेगी बीजेपी बड़ा दांव ?
Satish Poonia
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बजट भाषण पर पूनिया द्वारा जवाब के पीछे एक नहीं कई कारण हैं।

पहला -राज्यपाल  मनोनीत होने के बाद नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ये भाषण नहीं दे सकते थे।

दूसरा -उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बजट को लेकर पहले ही बोल चुके थे सो दुबारा विपक्ष की तरफ से उनके जवाब में तकनीकी दिक्क्त थी।

तीसरा -कालीचरण सर्राफ, ज्ञानचंद पारख, जोगेश्वर गर्ग या पुष्पेंद्र सिंह राणावत जैसे वरिष्ठ विधायकों को जवाब के लिए आगे करने से भावी राजनीति को लेकर नए संकेत उभरते।

चौथा -पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे थोड़े दिन के लिए बचे सदन में विपक्ष की तरफ से पक्ष रख शायद ही खुद को संतुष्ट कर पाती।

जयपुर | राजस्थान विधान सभा में प्रतिपक्ष की तरफ से गुरुवार को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने मोर्चा संभाला।  मुख्यमंत्री के बजट भाषण पर जवाब से पहले पूनिया सिर्फ बोले ही नहीं ,बल्कि धारदार अंदाज़ में बोले।

गहलोत सरकार को रोजगार के मुद्दे पर भी आड़े हाथों लिया तो कानून व्यवस्था और पेपर लीक के मुद्दे पर भी घेरने की कोशिश की।  कुल मिलाकर पूनिया पूरे फॉर्म में थे और वह भी पूरी तैयारी के साथ।

विधान सभा में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सरकार को घेरने में आगे रहे हैं ,लेकिन आज जवाब दिया सतीश पूनिया ने। इस जवाब के साथ ही ये चर्चा आम हो चली है कि बीजेपी प्रदेश की राजनीति के हिसाब से सतीश पूनिया में संभावनाएं देख रही हैं।

और ,यह सब तब जब पार्टी के संगठन महामंत्री चंद्रशेखर समेत बड़े नेताओं से सतीश पूनिया की असहमतियों की खबरें पार्टी दफ्तर से ब्लॉक स्तर तक पहुँच रही है।

असल में विधानसभा में बजट भाषण पर पूनिया द्वारा जवाब के पीछे एक नहीं कई कारण हैं।

पहला -राज्यपाल  मनोनीत होने के बाद नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ये भाषण नहीं दे सकते थे।

दूसरा -उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बजट को लेकर पहले ही बोल चुके थे सो दुबारा विपक्ष की तरफ से उनके जवाब में तकनीकी दिक्क्त थी।

तीसरा -कालीचरण सर्राफ ,ज्ञानचंद पारख ,जोगेश्वर गर्ग या पुष्पेंद्र सिंह राणावत जैसे वरिष्ठ विधायकों को जवाब के लिए आगे करने से भावी राजनीति को लेकर नए संकेत उभरते।

चौथा -पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे थोड़े दिन के लिए बचे सदन में विपक्ष की तरफ से पक्ष रख शायद ही खुद को संतुष्ट कर पाती।

जाहिर है पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर पूनिया का इस मंच और मौके का इस्तेमाल सबसे उपयुक्त माना गया। पूनिया ने इस अवसर को सलीके से इस्तेमाल किया। अपने तेवर से उन्होंने साफ़ करने की पूरी कोशिश की  कि मौका सदन में मिले चाहे सड़क पर ,वह हर जगह सरकार को घेरने की स्थिति में हैं।

पूनिया को उभार कर बीजेपी राजस्थान ,हरियाणा ,दिल्ली,पश्चिमी उत्तरप्रदेश के  एक बड़े वोट बैंक-जाट मतदाताओं  को भी साधना चाहती है।

इसी मकसद से जगदीप धनकड़ को उप राष्ट्रपति बनाया गया। इसी सोच के साथ पश्चिम उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले भूपेंद्र सिंह चौधरी को उत्तरप्रदेश का पार्टी अध्यक्ष बनाया गया।

और, इसी लक्ष्य के साथ हरियाणा में कृष्णपाल गुर्जर की दावेदारी को दरकिनार कर सुभाष बराला की जगह जाट समुदाय के ही ओमप्रकाश धनकड़ को हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया।

हरियाणा में जाट अध्यक्ष सुभाष बराला को  जाट नेता ओमप्रकाश धनकड़ से रिप्लेस करने का यह फैसला उस सूरत में हुआ जब बीजेपी गैर जाट के मंत्र के साथ मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटटर के नेतृत्व में दूसरी दफा सत्ता में है।

इस बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश भाजपा के इन फैसलों से ही नहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत  के राजस्थान ,हरियाणा के प्रवासों से भी झलकती है।

चुनाव से पहले भागवत  नागौर आये तो न सिर्फ मोहन राम चौधरी को तवज्जोह देते नजर आये बल्कि कुछ महीनों बाद संघ की सिफारिश पर नागौर से उन्हें पार्टी का टिकिट भी थमाया गया।

इसी तरह उप राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले उनका झुंझुनू प्रवास और बाद में उपराष्ट्रपति बनाये गए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनकड़ के पैतृक गाँव किठाना में सत्कार इसी की कड़ी थे। 

सतीश पूनिया को लेकर भाजपा या संघ का झुकाव भी इसी वोट बैंक को साधने की कड़ी माना जा रहा है।

विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा की राजनीति में आये पूनिया को विश्व विद्यालय चुनाव से लेकर विधान सभा चुनाव तक जीत बेशक एक बार मिली हो।  संगठन में काम और पार्टी नेतृत्व का भरोसा यह बताने के लिए काफी है कि पूनिया के सितारे आसमान में हैं और लक्ष्य भी छोटे नहीं। 

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