मेरी कहानी: कभी हिन्दी के लिए हंसी का पात्र बने डॉ.राघव प्रकाश आज विषय का गौरव हैं

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Highlights

राजकमल प्रकाशक दिल्ली की आने वाली पुस्तक गाँव ग़रीबी और गोल्ड मैडल जिसके लेखक डॉ राघव प्रकाश है

इस पुस्तक में डॉ राघव प्रकाश के संघर्ष की कहानी है, जो ग्रामीण परिवेश से आने वाले विद्यार्थी को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी है, जिससे उनका जीवन प्रकाशमान हो सके।

जबकि डॉ राघव प्रकाश कला संकाय के विद्यार्थी को श्रेष्ठ मानते हैं, आपका कहना है जहाँ विज्ञान और वाणिज्य का विद्यार्थी स्थापित सिद्धान्तों का अनुसरण करता है, वहीं कला संकाय का विद्यार्थी सिंद्वांतो का सर्जन करता है।

डॉ. राघव प्रकाश पीआईसी चलाने वाली विद्या विहार सोसाइटी के अध्यक्ष हैं। वह परिष्कार कोचिंग संस्थान और परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस के निदेशक भी हैं।

वह पीएचडी के साथ हिंदी व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध नाम हैं। हिंदी में और एम.ए. में स्वर्ण पदक विजेता। उन्होंने प्रतियोगिता परीक्षाओं जैसे आईएएस, आरएएस, पीएसआई, नेट और शिक्षकों के लिए हजारों छात्रों का मार्गदर्शन किया है।

प्रबंधन, अध्यापन और कोचिंग के साथ-साथ वह एक विख्यात लेखक भी हैं। शिक्षण शिक्षण में वे पिछले 49 वर्षों से बहुत से शोधों में शामिल हैं।

उन्हें साहित्यिक आलोचना, हिंदी व्याकरण, नाटक और साक्षात्कार तकनीकों पर 25 से अधिक पुस्तकों का श्रेय भी प्राप्त है।

बचपन
डॉ. राघव प्रकाश जयपुर के समीप बस्सी से 8-9 किलोमीटर दूर जमवारामगढ़ का अंतिम छोर के दीपपुरा गांव के किसान परिवार से हैं. इनका बचपन आर्थिक तंगी से प्रभावित रहा.

गांव में कोई स्कूल नहीं होने के  कारण 7 किलोमीटर दूर चामण्डिया गांव रोज पैदल नंगे पैर जाना पड़ता था। गुरुजनों के प्रभावी मार्गदर्शन में 6, 7 व 8वीं तक की शिक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की।

राघव प्रकाश प्रारंभिक स्कूली शिक्षा को बुनयादी शिक्षा के रूप में महत्व देते हैं और बताते हैं गुरुजनों ने नींव को मज़बूत किया। आगे चल कर इस बुनियाद ने  जीवन को आधार दिया।

उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए ये बस्सी आ गए और 11 व 12वीं कक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया।

डॉ. राघव प्रकाश ग़रीबी को अभिशाप नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि ग़रीबी ने उन्हें मेहनत करने के लिए प्रेरित किया और श्रेष्ठ विद्यार्थी बनाया।

उन्हें ख़ेती ने ईमानदारी और कठोर परिश्रम का सबक़ सिखाया। इस प्रकार दोनों ने उनके जीवन को तराशा।

उच्च शिक्षा के अध्ययन के लिए वे जयपुर आ गए। जब वे जयपुर आये,  तब वे शर्मा शब्द के उच्चारण ठीक से नहीं कर पाते थे.

जब वे महारानी गर्ल्स कॉलेज में अपना परिचय दे रहे थे तब वे शर्मा के उच्चारण को लेकर उपहास का पात्र बने। इस उपहास को राघव शर्मा ने गंभीरता से लिया और न केवल अपने उच्चारण को सुधारा बल्कि स्नातकोत्तर में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

डॉ.राघव प्रकाश बताते हैं आपने उच्चारण के शुद्धिकरण के लिए वे घंटो बीबीसी सुना करते थे इससे न केवल उच्चारण में सुधार हुआ बल्कि उनके ज्ञान का भी विकास हुआ।  

बतौर शिक्षक 
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वे 1972 में सरकारी कॉलेज में व्याख्याता के रूप में प्रविष्ट हुए और प्रथम पोस्टिंग कोटपूतली मिली. वहां चार साल अध्यापन का काम किया, फिर 2 साल चूरू में सेवाएं दी।

7 वर्ष कालाडेरा में और इसके आलावा भी आपने कई स्थानों पर अध्यापन का कार्य किया। उसके बाद राजस्थान हिंदी अकादमी में डायरेक्टर बने, आपने लोक जुम्बिश में 7 वर्ष अपनी सेवाएं दी।

रेल यात्रा को हिंदी व्याकरण पर श्रेष्ठ किताब लिखने का ख़िताब 
उस समय डॉ. राघव प्रकाश अलवर के राजगढ़ कॉलेज में अपनी सेवाएं दे रहे थे और उन्हें रोज अपने घर से राजगढ़ जाने की लिए रेल का सफ़र करना पड़ता था. यह सफर पौने तीन घंटे का होता था।

उस समय एक प्रकाशक पिकसिटी पब्लिसर्स जयपुर ने उनसे व्याकरण पर एक पुस्तक लिखने का आग्रह किया। बाजार में प्रचलित 20 किताबें उनके घर पर ला कर रख दी और आग्रह किया कि हिंदी व्याकरण पर 21वीं क़िताब आपको लिखनी है।

डॉ. राघव प्रकाश ने प्रकाशक के अनुरोध को स्वीकार किया और रेल यात्रा के समय का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए व्याकरण की अब तक की बेहतरीन किताब लिख डाली.

उस क़िताब का 80 फ़ीसदी भाग रेल यात्रा में पूरा किया और शुद्धिकरण का 20 फीसदी भाग घर पर पूरा किया. इस प्रकार वह पुस्तक लिखी गयी. जो पिछले 25 वर्षो से हिंदी व्याकरण की सबसे श्रेष्ठ पुस्तक है।

हिंदी व्याकरण की इस किताब ने  उत्तर भारत में इतनी ख्याति प्राप्त की और राजस्थान के अलावा बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में विद्यार्थियों और शक्षकों की पहली पसंद बन गई। इस किताब को पढ़ कर कई विद्यार्थी राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चले तो कई पुलिस में थानेदार बन गए।

विद्यार्थियों का जीवन संवारने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र 
सेवा निवृत्ति से 10 वर्ष पूर्व ही सन 2001 में विद्याथियों के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और बापू नगर जयपुर में परिष्कार कोचिंग शुरू की.

परिष्कार' कोचिंग ने राजस्थान पुलिस के अवर निरीक्षक पद के लिए प्रथम बैच को तैयार किया .

उस भर्ती में 56 प्रतिशत परिष्कार कोचिंग के विधार्थी थे. इसी क्रम को जारी रखते हुए, परिष्कार कोचिंग ने लगातार कई कीर्तिमान स्थापित किये।

डॉ राघव प्रकाश इस बात को महत्व देते हैं कि शिक्षा के साथ साथ विद्यार्थी को प्रेरित करना आवश्यक हैं क्योंकि परीक्षा को उत्तीर्ण तो विद्यार्थी करता है शिक्षक प्रेरणा से उसके हौसलों को उड़ान देता है।

कोचिंग से कॉलेज तक

डॉ राघव प्रकाश का मानना की कॉचिंग एक व्यापार है और शिक्षा व्यवसाय नहीं हो सकती।

विद्यार्थी कोचिंग में अल्प समय के लिए आता है जहाँ उसको सम्पूर्ण विकास संभव नहीं है। 29 वर्ष सरकारी कॉलेज में सेवाएं के फलस्वरूप पाया कि सरकारी कॉलेज बदहाली में है, जहाँ शिक्षक और विधार्थी दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित नहीं है। जिम्मेदारी का अभाव है।

इस उद्देश्य से साथ डॉ राघव प्रकाश ने परिष्कार ग्रुप ऑफ़ कॉलेज की स्थापना की, जहाँ जिम्मेदारी के साथ विधार्थी का सर्वांगीण विकास संभव हो सके, विद्यार्थी को आने वाली चुनौतियों के लिए कॉलेज शिक्षा के दौरान ही तैयार किया जा सके।

डॉ राघव प्रकाश कॉलेज शिक्षा को महत्व देते हुए बतलाते है कि कोचिंग से विद्यार्थी नौकरी तो प्राप्त कर सकता है लेकिन कितना संव्यावसायिक होगा इस पर सदैव संचय रहता है, लेकिन कॉलेज की शिक्षा से तराशा हुआ विधार्थी वास्तव में संव्यावसायिक होता है।

संकीर्णता से उजाले की और 
शिक्षा के विकास के साथ साथ समाज में एक संकीर्णता का भी जन्म हुआ, जो विद्यार्थी विज्ञान संकाय का है वह श्रेष्ठ है। जो वाणिज्य संकाय वह दूसरे दर्जे का है।

अंतिम और निम्न श्रेणी में कला संकाय को रखा गया और आधुनिक समाज ने भी इसे संकीर्ण माना। जहां विज्ञान और वाणिज्य समय की माँग के लिए नितांत आवश्यक माना, इसके फलस्वरूप कला संकाय के विद्यार्थी इसे अपनी असफलता मानते हैं।  

जबकि डॉ राघव प्रकाश कला संकाय के विद्यार्थी को श्रेष्ठ मानते हैं, आपका कहना है जहाँ विज्ञान और वाणिज्य का विद्यार्थी स्थापित सिद्धान्तों का अनुसरण करता है, वहीं कला संकाय का विद्यार्थी सिंद्वांतो का सर्जन करता है।

इसी गुणों के फलस्वरूप वह किसी भी क्षेत्र में जा सकता है, कला संकाय का विधार्थी अधिकांशतया श्रेष्ठ प्रशासक होता है। उसमें समाज को समझने का विशिष्ट गुण होता है और साथ ही उसमें  नेतृत्व की क्षमता विद्यमान होती है।

गाँव, ग़रीबी और गोल्ड मैडल 
राजकमल प्रकाशक दिल्ली की आने वाली पुस्तक गाँव ग़रीबी और गोल्ड मैडल जिसके लेखक डॉ राघव प्रकाश है। इस पुस्तक में डॉ राघव प्रकाश के संघर्ष की कहानी है, जो ग्रामीण परिवेश से आने वाले विद्यार्थी को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी है, जिससे उनका जीवन प्रकाशमान हो सके।

परिष्कार कॉलेज को स्वायत्तशासी विश्वविद्यालय की आवश्यकता
डॉ राघव प्रकाश वर्तमान राजस्थान विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम और शिक्षा स्वरूप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का नहीं मानते हैं। इसलिए उन्होंने परिष्कार कॉलेज को स्वायत्तशासी विश्वविद्यालय बनाया।

स्वायत्तशासी विश्वविद्यालय बनाने का लाभ यह हुआ कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम और शिक्षा स्वरुप  बनाने की स्वायत्तता प्राप्त हो गयी। जिसके कारण बेहतरीन पाठ्यक्रम का चयन किया गया और विद्यार्थी को विभिन्न स्तर का आंकने की पद्धति का निर्माण किया गया, जिससे विधार्थी का सर्वांगीण संभव हो सके।

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