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इससे पहले 2013 में बीजेपी की लहर थी। रतन देवासी राजस्थान विधानसभा में उप मुख्य सचेतक हुआ करते थे। परन्तु नारायण सिंह देवल से 32 हजार 652 वोटों से एक सीधे मुकाबले में हार गए। हालांकि पांच अन्य उम्मीदवार भी मैदान में थे, लेकिन उल्लेखनीय वोट वे भी नहीं पाए।
Jaipur | इस सीट की सीमाएं गुजरात से छूती है। कभी यह मिनी माउंट आबू कहलाती थी। मारवाड़ के राजाओं के शिकार की पसंदीदा जगह रहा यह क्षेत्र अब रानीवाड़ा कहलाता है।
दिसम्बर 2023 में होने वाले राजस्थान विधानसभा के चुनावों के परिप्रेक्ष्य में चुनावी बैटलग्राउण्ड में बात करेंगे एक ऐसे विधानसभा क्षेत्र की, जहां कब कौन बागी हो जाए और अपनी ही पार्टी की चूलें हिला दे। कहना संभव नहीं लगता। इस सीट पर कई बार बगावत हुई है और बड़ी पार्टियों ने मुंह की खाई है।
खैर! फिलहाल बीजेपी के नारायण सिंह देवल यहां से लगातार दो बार से विधायक है और देवजी पटेल बीजेपी के टिकट पर लगातार तीन बार से सांसद हैं। यह विधानसभा सीट गुजरात राज्य के सहित राजस्थान में जालोर—सिरोही जिलों की सीमा साझा करती है।
वहीं सांचौर, भीनमाल, रेवदर, जालोर और सिरोही विधानसभा की सीमा यहां से छूती है। इस पर अभी तक 2 लाख 62 हजार 193 मतदाता पंजीकृत हैं, जिनमें से चार साल में 23 हजार 215 नए जुड़े हैं। 245 बूथों वाली इस विधानसभा सीट के एक बूथ पर औसतन 1070 मतदाता है, जो आचार संहिता लागू होने तक बढ़ते रहेंगे।
अब यहां पर राजपूत, देवासी, कळबी और विश्नोई वोटों की बहुतायत है। दलित वोट बैंक जिस ओर जाता है। उसका खासा प्रभाव रहता है।
2018 में हुए चुनाव में मारवाड़ इलाके में यह सबसे कांटे की टक्कर वाली सीट रही। यहां नारायणसिंह देवल बीजेपी और रतन देवासी कांग्रेस में सीधा मुकाबला था। जीत का अंतर महज 1.83 प्रतिशत का रहा। देवल को 88 हजार 887 वोट मिले, जबकि रतन को 85 हजार 482 मत।
3 हजार 405 वोटों से रतन यह मुकाबला हार गए। यहां तीसरे नम्बर पर नोटा रहा, जिसमें 3 हजार 185 वोट गए। बसपा के पोपटलाल मेघवाल को यहां 2675 वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी के बाबूलाल को 2 हजार 195। निर्दलीय भरत मेघवाल को 1875।
इससे पहले 2013 में बीजेपी की लहर थी। रतन देवासी राजस्थान विधानसभा में उप मुख्य सचेतक हुआ करते थे। परन्तु नारायण सिंह देवल से 32 हजार 652 वोटों से एक सीधे मुकाबले में हार गए। हालांकि पांच अन्य उम्मीदवार भी मैदान में थे, लेकिन उल्लेखनीय वोट वे भी नहीं पाए।
2008 के चुनाव में यहां का परिसीमन बदला तो 24 ग्राम पंचायतें सांचौर इलाके में विश्नोई समाज के बाहुल्य वाली रानीवाड़ा में जुड़ गई। सांचौर से टिकट मांग रहे हीरालाल विश्नोई कांग्रेस और विश्नोई समाज के वोटों के आसरे में रानीवाड़ा से बागी हो गए।
यहां से कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त बीसूका के उपाध्यक्ष और विधायक अर्जुनसिंह देवड़ा का बीजेपी ने टिकट काटकर नारायण सिंह देवल को दे दिया तो मुकाबला चतुष्कोणीय हो गया। रतन देवासी आराम से चुनाव जीत गए। उन्हें 46 हजार 716 वोट मिले और नारायण सिंह देवल को 26 हजार 914। हीरालाल विश्नोई को 24 हजार 480 वोट मिले, जबकि अर्जुनसिंह देवड़ा चौथे नम्बर पर रहे। उन्हें 17 हजार 740 वोट मिले।
यह विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई। पहली विधानसभा 1951 में जसवंतपुरा और जसवंतपुरा—सांचौर की संयुक्त सीट पर यहां के नागरिकों ने प्रतिनिधि चुनकर भेजे थे। जसवंतपुरा सीट से निर्दलीय छतर सिंह ने कांग्रेस के देवीचंद को करीब 55 प्रतिशत वोटों के अंतर से हराकर पहली विधानसभा में जाने का गौरव प्राप्त किया था। जसवंतपुरा इलाका मारवाड़ के मिनी माउंट आबू नाम से पहचाना जाता रहा है। दूसरी सीट जसवंतपुरा—सांचौर थी जहां से निर्दलीय गणपत सिंह ने कांग्रेस के रघुनाथ को हराया था।
यहां पहली बार चुनाव 1957 में हुआ। कांग्रेस के रघुनाथ फिर मैदान में थे, लेकिन स्वामी करपात्रि महाराज की राम राज्य परिषद के मंगल सिंह ने उन्हें 621 वोटों से हरा दिया। 1962 में कांग्रेस ने खाता खोलने के लिए जातीय कार्ड खेला और तेज तर्रार अधिवक्ता भगराज चौधरी को आहोर से रानीवाड़ा चुनाव लड़ने भेजा। भगराज ने जसवंतपुरा से पहले विधायक रहे छतर सिंह को आसानी से हराते हुए विधानसभा की सीट सुनिश्चित की।
1967 में मालवाड़ा गांव के दुर्जन सिंह ने राम राज्य परिषद के टिकट पर चुनाव लड़ा और भगराज को विधानसभा जाने से रोका। उससे अगले चुनाव यानि कि 1972 में सीधा मुकाबला भगराज और निर्दलीय शंकरलाल के बीच रहा, जिसे भगराज ने आसानी से जीत लिया। ऐसे में यहां चुनाव राजपूत बनाम कळबी जाति के प्रत्याशी के बीच हो गया। हालांकि 1977 के चुनाव में भगराज चौधरी को आहोर भेजा गया और राजा गोपाल सिंह भाद्राजून को हराने का जिम्मा दिया गया।
यह उस चुनाव की सबसे बड़ी टक्कर थी, जिसमें जनता पार्टी के राजा गोपाल सिंह ने भगराज चौधरी को महज 18 वोटों से हराया। हालांकि हम बात रानीवाड़ा की कर रहे हैं तो 1977 में रतनाराम चौधरी यहां से विधायक बने, उन्होंने पूरे देश में जनता पार्टी की लहर के बावजूद हरिशंकर को एक सीधे मुकाबले में हरा दिया।
1980 में निर्दलीय दुर्जन सिंह जो 1967 में विधायक बने थे, उन्हें भी रतनाराम ने सीधे—सीधे शिकस्त दी।
1985 में अर्जुनसिंह देवड़ा ने निर्दलीय खड़े होकर सीपीआई के जोरा की मदद से रतनाराम के वोटों में सेंध लगाई और एक आसान जीत हासिल की। मार्जिनल वोट जोरा ले गए, जो करीब 7 फीसदी थे। परन्तु 1990 के चुनाव में रतनाराम ने फिर वापसी की और अर्जुन सिंह देवड़ा जो कि बीजेपी से टिकट लेकर आए सीधे मुकाबले में हार गए।
1993 में राम मंदिर की लहर और भैरोंसिंह शेखावत के प्रभाव में अर्जुनसिंह देवड़ा ने फिर उलटफेर करते हुए रतनाराम चौधरी को आसानी से हरा दिया।
1998 में ऐसी ही लहर कांग्रेस की थी, जिसमें रतनाराम फिर से बीजेपी के अर्जुनसिंह देवड़ा पर करीब 22 सौ वोटों से भारी पड़े और चौथी व अंतिम बार विधायक बने। 2003 के चुनाव में विधायक रतनाराम का टिकट काटकर रतन देवासी को दिया गया, लेकिन रतन जीत नहीं पाए। वजह रतनाराम ही रहे, जिन्होंने कांग्रेस से बगावत कर दी। 30 हजार 379 वोट लेकर वे तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन कांग्रेस को हरा दिया।
इस चुनाव के बाद रतनाराम हर बार टिकट पर दावा करते रहे, लेकिन 2019 में निधन तक उन्हें टिकट नहीं मिला। क्योंकि कांग्रेस बीजेपी के एक बड़े वोट बैंक देवासी समाज में रतन देवासी के माध्यम से सेंध लगा चुकी थी और उसे इस वोट बैंक को कायम रखने के लिए जालोर में कळबी समाज की एक सीट कम करनी पड़ी, वह रानीवाड़ा थी।
सारा खेल डिपेंड करता है कळबी समाज पर। पास की सीट सिरोही, भीनमाल और सांचौर पर। किस जाति का क्या समीकरण है। यह देखकर यहां का मतदाता फूंक फूंककर कदम रखता है और अपनी पसंद का बटन दबाता है। हालांकि 2023 के अंत में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों में वह बटन दबाए इससे पहले आप थिंक को सब्सक्राइब करते हुए नोटिफिकेशन के बैल आइकन का बटन दबा दीजिए।
हाल ही में लक्ष्मण देवासी नामक शराब व्यवसाई की हत्या के कारण देवासी और विश्नोई समाज में अब सीधी रार है। कांग्रेस यहां देवासी को टिकट देती रही है। ऐसे में देवासी अब सीधे तौर पर रानीवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के चौबीस ग्राम पंचायतों के विश्नोई बहुल वोट शायद ही कांग्रेस को पड़े।
रतन देवासी से सीधी नाराजगी इस वजह से उपज रही है। यही नहीं इस हत्याकांड का असर सीधे तौर पर सांचौर विधानसभा पर भी कांग्रेस का नुकसान होगा। इस के प्रतिकूल रानीवाड़ा में देवासी समाज कांग्रेस से बदला लेगा। यह समीकरण कैसे सुधारे जाए कांग्रेस इस कोशिश में जुटी है।
बजाय भीनमाल के सांचौर को जिला बनाए जाने और रानीवाड़ा को सांचौर में शामिल कर दिए जाने की नाराजगी भी जनता में बखूब है। देखना है यह चुनाव किस तरह इस नाराजगी की बानगी बनता है।
रानीवाड़ा से कौन कब जीता विधायक Raniwara Vidhan Sabha MLA List
Year | उम्मीदवार | Party |
2018 | नारायण सिंह देवल | BJP |
2013 | नारायण सिंह देवल | BJP |
2008 | रतन देवासी | INC |
2003 | अर्जुन सिंह देवड़ा | BJP |
1998 | रतनाराम चौधरी | INC |
1993 | अर्जुन सिंह देवड़ा | BJP |
1990 | रतनाराम चौधरी | INC |
1985 | अर्जुन सिंह देवड़ा | IND |
1980 | रतनाराम | INC(I) |
1977 | रतनाराम | INC |
1972 | भगराज चौधरी | INC |
1967 | दुर्जन सिंह | राम राज्य परिषद |
1962 | भगराज चौधरी | INC |
1957 | मंगल सिंह | राम राज्य परिषद |
1951 | छतरसिंह | IND |
1951 | गणपत सिंह | IND |