राजस्थान बीजेपी: नेता प्रतिपक्ष : राजेंद्र राठौड़ के अलावा उभरे कई नाम

नेता प्रतिपक्ष : राजेंद्र राठौड़ के अलावा उभरे कई नाम
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इस बीच सम्भावना इस बात की भी मानी जा रही है कि पार्टी बिना नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष द्वारा या नेता प्रतिपक्ष द्वारा मुख्यमंत्री गहलोत के बजट पर जवाब से पहले बजट भाषण करवाए और बिना नेता प्रतिपक्ष ही चुनाव की राह पकड़े।

ऐसा इसलिए क्योंकि बिना नेता प्रतिपक्ष पहले भी बीजेपी तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष घनश्याम तिवाड़ी से  सदन में पार्टी का पक्ष रखवा चुकी है।

Jaipur | बीजेपी के दिग्गज नेता रहे गुलाब चंद कटारिया असम के राज्यपाल क्या नियुक्त हुए,बीजेपी में नेता प्रतिपक्ष के एक पद को लेकर एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बन गयी है।

सदन में उप नेता प्रतिपक्ष होने और संसदीय नियम कायदों में मंझे होने के नाते चूरू से बीजेपी के विधायक राजेंद्र सिंह राठौड़ की इस पद के लिए स्वाभाविक दावेदारी है तो क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों के लिहाज से इस पद के लिए हर दिन नए नाम उभर रहे हैं। 

चूंकि, पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ एक ही जिले चूरू से हैं, इसलिए राठौड़ की बजाय इस पद को लेकर जालौर से बीजेपी के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री जोगेश्वर गर्ग समेत कई नाम चर्चाओं में हैं। 

राजेंद्र राठौड़ के साथ भैरों सिंह शेखावत मंत्रिमंडल में मंत्री रहे जोगेश्वर गर्ग एससी वर्ग से हैं तथा संघनिष्ठ मने जाते हैं, लिहाजा उनकी दावेदारी राजेंद्र राठौड़ के बाद दूसरे नंबर पर है।

इसी वर्ग और खेमे से ताल्लुक रखने वाले रामगंज मंडी विधायक मदन दिलावर का नाम भी दावेदारों में एक है, लेकिन उनका आक्रामक अंदाज और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से नाइत्तेफाकी उनकी दावेदारी में सबसे बड़ा रोड़ा बने हुए हैं। चूँकि, विधानसभा चुनाव सामने हैं लिहाजा पार्टी अब ऐसा कोई भी कदम उठाने से बच रही है,जिससे राजे नाराज हों।

जातीय समीकरणों के लिहाज से पाली से पांचवी दफा विधायक ज्ञान चंद पारख का भी नाम दावेदारों में हैं। पारख की दावेदारी के पीछे उनका कटारिया समर्थक और उनके ही जैन समुदाय से भी होना है।

चूंकि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया जाट ,संगठन मंत्री चंद्र शेखर ब्राह्मण और प्रभारी महामंत्री अरुण सिंह राजपूत हैं लिहाजा बीजेपी के एक खेमे को लगता है कि शुरू से पार्टी के आर्थिक पोषक रहे वैश्य वर्ग को पारख के जरिये भागीदारी दी जानी चाहिए।

बीजेपी के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक क्षत्रिय ,वैश्य और ब्राह्मण की तरह एक और वोट बैंक सिंधी -पंजाबी जुड़ा रहा है ,लिहाजा दावेदारी में अजमेर -उत्तर से बीजेपी के वरिष्ठ विधायक वासुदेव देवनानी भी पीछे नहीं। देवनानी वरिष्ठ भी हैं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि से भी।

दावेदारों में  सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है ,लेकिन जानकार बताते हैं कि वह अब नेता प्रतिपक्ष नहीं ,किसी और भूमिका के पक्ष में हैं। यह भूमिका या तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की हो सकती है ,या फिर चुनाव प्रचार अभियान समिति के प्रमुख की।

चूंकि ,करीब नौ साल के शासन के बाद केंद्र सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंशी जैसे सच भी सर्वे में आ रहे हैं लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फेस बनाये जाने के बावजूद बीजेपी चाहेगी कि वसुंधरा राजे राजस्थान चुनाव की मुख्य भूमिका में हो।

इस बीच सम्भावना इस बात की भी मानी जा रही है कि पार्टी बिना नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष द्वारा या नेता प्रतिपक्ष द्वारा मुख्यमंत्री गहलोत के बजट पर जवाब से पहले बजट भाषण करवाए और बिना नेता प्रतिपक्ष ही चुनाव की राह पकड़े।

ऐसा इसलिए क्योंकि बिना नेता प्रतिपक्ष पहले भी बीजेपी तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष घनश्याम तिवाड़ी से  सदन में पार्टी का पक्ष रखवा चुकी है। नेता प्रतिपक्ष का यह पद खाली रखे जाने के पीछे तर्क यह कि चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं ,लिहाजा इस पद पर नियुक्ति  को लेकर मनमुटाव खड़े करने का कोई अर्थ नहीं।

इन दलीलों के बीच सबकी निगाह दिल्ली से पर्यवेक्षकों के आने आने और विधायक दाल की बैठक में किसी फैसले पर टिकी हुई है।

फ्लोर मैनेजमेंट और विधायी समझ के लिहाज से उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ के नेता प्रतिपक्ष पर प्रमोट होने और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनाव अभियान समिति के प्रमुख का  पद दिए जाने की संभावनाएं ज्यादा है।

हालाँकि ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने फैसलों से कब किस तरह चौंका दें ,कह पाना मुश्किल है।

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