Interview: प्रवासियों का बोर्ड बनाए राजस्थान सरकार : रतन सिंह तूरा

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मुम्बई | व्यवसाई एवं समाजसेवी रतन सिंह राठौड़ तूरा का कहना है कि राजस्थान में किसी भी तरह की जरूरत पर प्रवासी याद आते हैं। परन्तु प्रवासियों के लिए एक बोर्ड बनाए जाने की आवश्यकता है और सरकार को चाहिए कि वह प्रवासी कल्याण बोर्ड बनाकर एक स्थाई उपाय करे। ताकि प्रवासी अपने मुद्दों को लेकर किसी एक अपने मंच के पास तो जा सकें।

रतन सिंह राठौड़ मूलत: जालोर जिले के तूरा गांव के रहने वाले हैं और बचपन से मुम्बई में रह रहे हैं। यहां तक कि उनकी शिक्षा भी वहीं हुई। तूरा से मुम्बई में मुलाकात हुई। इस मायानगरी में एक मारवाड़ बसता है, जहां मारवाड़ी विधायक सांसद तक होते हैं। यहां की राजनीति और व्यवसाय दोनों में मारवाड़ियों की चमक, दमक और धमक है। भवन निर्माण के काम में जुड़े रतन सिंह राठौड़ तूरा कहते हैं कि राजस्थान के प्रवासियों ने पूरे देश में व्यापार के क्षेत्र में धाक जमाई है। परन्तु वे अपने गांव—अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं। गांव जब भी बुलाता है। प्रवासी दौड़कर जाते हैं। कोई काम हो, किसी तरह की जरूरत हो हमारे बंधु कभी मुड़कर नहीं देखते।

चुनावी माहौल पर चर्चा करने पर राठौड़ कहते हैं कि जैसे ही टिकट मिला, यहां आते हैं नेता। उनकी हर तरह की मदद करते हैं, लेकिन प्रवासियों की मदद के लिए स्थाई समाधान के ​नाम पर फिलहाल तक कुछ नहीं है। कोविड काल में हमारे प्रवासियों ने वह झेला, जिसे याद करना भी बहुत बुरा है।

वे कहते हैं कि राजस्थान सरकार को चाहिए कि वह प्रवासी बोर्ड बनाए। ताकि प्रवासियों और राजस्थान के बीच एक प्रभावी सरकारी मंच तैयार हो सके और वह मंच प्रवासियों के कामों को त्वरित गति और प्राथमिकता से करवाए। इसको लेकर सरकार से बात चल रही है, उम्मीद है कि शीघ्र ही प्रवासी बोर्ड बनाया जाएगा। इसको लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और समाज कल्याण के मंत्री अविनाश गहलोत के भी ध्यान में मामला लाया गया है।

रतन सिंह तूरा कहते हैं कि शुरूआत में अधिक संख्या नहीं थी, लेकिन बाद में धीरे—धीरे बढ़ते चले गए।

एक—दूसरे को सपोर्ट किया गया। एक—दूसरे का हाथ थामकर सभी आगे बढ़ते हैं तो कारवां बनता चला जाता है।

यहां सबका सेक्टर अलग—अलग रहता है। ऐसे में कम्पीटिशन जैसी भावनाएं नहीं रहतीं। 
जातिवाद के मुद्दे पर तूरा कहते हैं कि सभी समाजों के बीच आपसी सद्भाव है। किसी तरह का कोई टकराव नहीं है। यह एक अच्छी पहल है।

अगली पीढ़ी को बिजनस में एंटर करने को लेकर रतन सिंह कहते हैं कि बिजनस अब ट्रेडिशनल वे में नहीं चलेंगे।

अब नई तकनीक के अनुसार ही करना चाहता। व्यापार में दिक्कतों को लेकर राठौड़ बताते हैं कि यहां किसी तरह की समस्या आती नहीं है।

मुम्बई के चुनाव को लेकर कहते हैं कि यहीं वोट रहता है। ऐसे में यहां एक मिनी राजस्थान की स्थिति सी बनी हुई है।

मुम्बई में चुनाव के दौरान स्थिति पर राठौड़ कहते हैं कि सभी से भाईचारा रहता है और मिलकर काम करते हैं। मारवाड़ के वोटर बहुत सारी सीटों पर डि​साइडिंग होते हैं। ऐसे में मारवाड़ का प्रभाव रहता है।

2009 में लोकसभा चुनाव का टिकट मांगकर जालोर—सिरोही में चर्चा में आए रतन सिंह तूरा ने कहा कि एक बार ​कोशिश की थी, लेकिन अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते। वे कहते हैं कि जिस व्यक्ति के पास जज्बा है, विजन है उसे बिजनेस में आना चाहिए और लोगों को रोजगार देने का माध्यम खड़ा करना चाहिए।

राजनीति अलग तरह के लोगों के लिए हैं। कई लोगों के पास बिजनेस का विजन नहीं होने को लेकर वे कहते हैं कि राजपूत समाज में यह कमी है, जबकि जैन समाज इसमें आगे हैं। जालोर में पिछड़ेपन की चिंता व्यक्त करते हुए तूरा कहते हैं कि जालोर से लोग बाहर निकले हैं, लेकिन अभी तक पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है।

वे कहते हैं कि ग्रेनाइट का हब होने के बावजूद अभी तक कोई विकास नहीं है। यहां तक कि आवागमन के साधन भी पर्याप्त नहीं है। प्रवासी हर गांव में पैसा लगाना चाहते हैं, लेकिन स्थानीय राजनीति विकास को प्रभावित करती है। वे कहते हैं कि जो व्यापार में आना चाहते हैं वे टॉप तक जाएं। वहीं जो राजनीति में जाना चाहते हैं, उन्हें भी टॉप तक जाना चाहिए।

आर्गेनिक खेती और गोवंश संरक्षण को लेकर भी रतन सिंह तूरां अपनी बात कहते हैं और कहते हैं कि अधिक उत्पादन के लिए लोग नस्लों को खराब कर रहे हैं। यह ठीक नहीं है। 

राजस्थान राजपूत परिषद के चेयरमैन होने के नाते रतन सिंह राठौड़ तूरां बताते हैं कि समाज विकास के लिए कई तरह के काम होते हैं। दशहरा सम्मेलन के माध्यम से लोग जुड़े और लगातार यह जुड़ाव बना हुआ है। ऐसे में यह जुड़ाव एक दूसरे के सहयोग और एक दूसरे को आगे बढ़ाने की कोशिशों को लेकर समन्वित प्रयास होते हैं।

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