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RPSC एक संवैधानिक आयोग है जिसकी स्थापना निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से राज्यों में लोक सेवा के लिए अधिकारियों का चयन करने के लिए केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार की गई थी।
इन आयोगों में नियुक्त किये जाने वाले सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार की संस्तुति पर की जाती है, परन्तु यदि उन्हें पद से हटाने की कार्यवाही करनी हो तो राज्य सरकार को राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी पड़ती है।
जयपुर | वरिष्ठ शिक्षक भर्ती-2022 के पेपर लीक मामले में गिरफ्तार आरपीएससी सदस्य बाबूलाल कटारा के खिलाफ राजस्थान राज्य सरकार ने सख्त कार्रवाई करते हुए पद से हटाने की सिफारिश की है.
राजस्थान के राजनीतिक-प्रशासनिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में गिरफ्तारी के बाद संवैधानिक आयोग के किसी सदस्य को हटाने की कार्रवाई की जा रही है.
राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्तर से स्वीकृति मिलने के बाद एक फाइल राष्ट्रपति को भेजी है. फाइल मंजूर होते ही बाबूलाल कटारा को तत्काल प्रभाव से आयोग के सदस्य पद से हटा दिया जाएगा।
इसलिए जरूरी है राष्ट्रपति की मंजूरी
RPSC एक संवैधानिक आयोग है जिसकी स्थापना निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से राज्यों में लोक सेवा के लिए अधिकारियों का चयन करने के लिए केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार की गई थी।
इन आयोगों में नियुक्त किये जाने वाले सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार की संस्तुति पर की जाती है, परन्तु यदि उन्हें पद से हटाने की कार्यवाही करनी हो तो राज्य सरकार को राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी पड़ती है।
कटारा का मामला काफी गंभीर माना जा रहा है क्योंकि वह कक्षा दूसरी भर्ती परीक्षा के पेपर और परीक्षा की जिम्मेदारी में शामिल था, जहां उसे पेपर लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
इस घटना से लोगों में भारी आक्रोश फैल गया और राज्य सरकार की प्रतिष्ठा पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। राज्य सरकार ने मामले की उच्च स्तर पर समीक्षा की और कटारा को सदस्यता से हटाने का फैसला किया।
सरकार को लेकर आम लोगों में कोई गलत संदेश न जाए, इसके लिए यह फैसला किया गया है।
अगर सीएम गहलोत ने यह सख्त कदम नहीं उठाया होता तो जमानत मिलते ही कटारा आयोग के सदस्य के रूप में फिर से अपना पद संभाल लेते और प्रशासनिक कामकाज संभालते.
कटारा को इस पद पर वापस आने से रोकने के लिए राज्य सरकार पहले ही यह कदम उठा चुकी है, भले ही उन्हें जमानत मिल जाए।
लेख में यह भी उल्लेख किया गया है कि कटारा राज्य सांख्यिकी सेवा के एक अधिकारी थे, और उनकी अधिकांश पोस्टिंग दक्षिणी राजस्थान में अपेक्षाकृत कम जिम्मेदारी वाले छोटे कार्यालयों में थी।
हालाँकि, जब उन्हें राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाया गया, तो उन्होंने अपनी अध्यक्षता में साक्षात्कार बोर्ड भी गठित किए और वर्ष 2021 में आरएएस की मुख्य परीक्षा में चयनित होने वाले उम्मीदवारों सहित डॉक्टरों, इंजीनियरों और सहायक प्रोफेसरों के साक्षात्कार लिए।
राज्य सरकार इस कार्रवाई को हर मामले में मिसाल बनाने के लिए कानूनी, प्रशासनिक और कार्मिक स्तर पर मंथन कर रही है। भविष्य में भ्रष्टाचार से जुड़ा कोई मामला सामने आने पर दिशा-निर्देश बनाकर सभी प्रशासनिक विभागों व आयोग-मंडलों आदि को भेजा जाएगा।
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पूछा था कि किसकी सिफारिश से कटारा को आरपीएससी की सदस्यता मिली, जिससे कांग्रेस सरकार की अंदरूनी राजनीति में भूचाल आ गया. हालांकि सीएम गहलोत ने इसे मुद्दा नहीं बनने दिया और कड़ी कार्रवाई करते हुए अपना संदेश दिया.
अंत में बाबूलाल कटारा को आरपीएससी की सदस्यता से हटाने का राज्य सरकार का फैसला दर्शाता है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में सख्त कार्रवाई की जाएगी और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे.
यह राज्य में लोक सेवा के लिए अधिकारियों के चयन में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।