Highlights
पांच साल तक अथक मेहनत कर कांग्रेस को इक्कीस से एक सौ के आंकड़े तक लाने में बतौर पार्टी अध्यक्ष सचिन पायलट चार साल पहले हुए चुनाव में कामयाब रहे थे। पायलट ने महाराजा कॉलेज छात्र संघ के उद्घाटन में भी इशारों -इशारों में अशोक गहलोत को निशाने पर ले यह इरादा स्पष्ट कर दिया है कि वह अब न तो ज्यादा सुनने के मूड में हैं और न ही और चुप्पी साधे रखने के।
यूँ तो राजस्थान में शीत लहर के हालात हैं और कोल्ड अटैक से प्रदेश में कई लोगों की जान चली गयी है। लेकिन सियासी हलकों में देखें तो ऐसी गर्माहट सालों बाद देखने को मिल रही है।
एक तरफ खांटी कांग्रेस नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पहली बार अपने ही दल में कोई सवा सेर वाले अंदाज़ में चुनौती दे तनाव दर तनाव दे रहा है.
दूसरी तरफ गहलोत को तनाव देने में जुटे पूर्व केंद्रीय मंत्री समेत कांग्रेस में कई पदों पर रह चुके सूबे के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अब आर पार की मुद्रा में हैं। ठीक वैसे ही जैसे किसी के सब्र का इम्तिहान पूरा हो चूका हो।
गहलोत को छकाने और कांग्रेस हाईकमान को जताने के लिए पहले चरण में सचिन पायलट ने उन इलाकों को चुना है जो न तो गुर्जर बहुल हैं और न ही उन इलाकों से सचिन पायलट ने कभी चुनाव लड़े हैं।
मारवाड़ में नागौर जिले के परबतसर में किसान आंदोलन के आयोजक, जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले क्षेत्रीय विधायक रामनिवास गांवरिया थे तो बीकाणे के हनुमानगढ़ में आयोजन का जिम्मा विश्नोई संप्रदाय के केसी बिश्नोई के हवाले था।
शेखावाटी के उदयपुरवाटी-झुंझुनू में किसान सम्मलेन के आयोजक सूबे के सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा थे। गुढ़ा अपने नाम के आगे अपने गाँव का नाम लगाते हैं,लेकिन हैं जाति से क्षत्रिय -राजपूत।
गोडवाड़ के बाली -पाली में आयोजित किसान सम्मलेन का आयोजन ओबीसी और सवर्ण जातियों से जुड़े नेताओं द्वारा किया गया।
पायलट इन सभी किसान सम्मेलनों के जरिये सरकार का पानी हिलाने में कामयाब रहे या नहीं ,कई सन्देश हाईकमान तक पहुंचाने में कामयाब रहे।
मसलन -पायलट ने इन सभाओं के मार्फत इस आरोप का तो जवाब दिया ही कि वह सिर्फ एक बिरादरी -गुर्जर के नेता भर नहीं ,उनकी स्वीकार्यता सभी समाजों और वर्गों में हैं।
साथ ही आयोजकों ने पायलट को पूर्वी राजस्थान का नेता बताने वालों को इन किसान सम्मेलनों के जरिये यह जवाब भी दे दिया कि वह पूरे राजस्थान में उतना ही असर रखते हैं ,जितना कि पूर्वी राजस्थान में।
इतना ही नहीं इन सम्मेलनों में उमड़ी जबरदस्त भीड़ के जरिये वह पार्टी हाईकमान को यह सन्देश देने में भी कामयाब रहे हैं कि सरकारी मशीनरी के विरोध के बावजूद वह जब चाहें और जहाँ चाहें भीड़ जुटाने में कामयाब होंगे। और,इस भीड़ की कामयाबी में कोई एक जाती या वर्ग नहीं ,सभी वर्गों और बिरादरी तथा हर उम्र के लोग नजर आयेंगे।
सवाल उठता है कि क्या यह भीड़ और सम्मलेन हाईकमान को अंतिम सन्देश देने के लिए है जवाब हाँ में भी है और ना में भी। हाँ ,इसलिए क्योंकि टाइमलाइन कांग्रेस हाईकमान के सूत्रों द्वारा अक्सर दिए जाने वाले समय से कहीं आगे जा चुकी है।
नहीं ,इसलिए क्योंकि पायलट सभाओं में गहलोत पर तो बिना नाम लिए कटाक्ष कर रहे हैं ,लेकिन कांग्रेस के पार्टी उनके सम्मान में कहीं ,कोई कमी नहीं। उलटा आरोपों से इतर वह केंद्र की बीजेपी सरकार पर ज्यादा आक्रामक हैं। वो भी उस सूरत में जब उनके मानेसर पड़ाव के पीछे सूबे के सीएम अशोक गहलोत बीजेपी से मिलीभगत को रेखांकित करते हुए आरोप दागते रहे हैं।
पांच साल तक अथक मेहनत कर कांग्रेस को इक्कीस से एक सौ के आंकड़े तक लाने में बतौर पार्टी अध्यक्ष सचिन पायलट चार साल पहले हुए चुनाव में कामयाब रहे थे। पायलट ने महाराजा कॉलेज छात्र संघ के उद्घाटन में भी इशारों -इशारों में अशोक गहलोत को निशाने पर ले यह इरादा स्पष्ट कर दिया है कि वह अब न तो ज्यादा सुनने के मूड में हैं और न ही और चुप्पी साधे रखने के।
अपनी मेहनत से वह पहले की तरह कांग्रेस को भी मजबूत कर सकते हैं तो अपने समर्थकों के बूते अपने डकावे को भी और मजबूत कर सकते हैं। सीधी सट्ट बात यह कि अब तक समय गहलोत की मुट्ठी में था, अब वक्त की चाल पायलट के हाथों में है।
पहले वह एक आदर्श नेता के रूप में सुन रहे थे अब आक्रामक नेता के रूप में जवाबी हमले की तैयारी में हैं। यानी ,आर पार के मूड में नजर आर रहे हैं सचिन पायलट। लेकिन लाख टक्के का सवाल यही है कि क्या भीड़ के बूते अशोक गहलोत की सियासी चालों से निपट पाएंगे सचिन पायलट?