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देसी आदमी खुद को सभ्य दिखाने के लिए अपनी बोलचाल में हिंदी डालता है और हिंदी वाला अंग्रेजी
मुंहजला कबसे कह रहा है,शांत हो जा,शांत हो जा। हम तो घड़ी-घड़ी के सगुन देख रहे हैं
राजस्थान में 'शांत' होना 'मरने' के अर्थ में लिया जाता है
मेरे पड़ नानोसा का गांव में एक धरमेला था। एक बार उनके धरम की बहन बीमार पड़ी। पड़ नानोसा-नानीसा कई दिनों तक उनसे मिलने नहीं गए।
बहन रोज उडीकती (प्रतीक्षारत) कि- "बीरा आज आए,आज आए पर भाई-भौजाई मिलने ही न गए।
आखिर उसने अपने बेटे के साथ कहलाकर भेजा- "मामोसा-मामीसा को कहना बहन मर जाए तो बैठने भी मत आना।"
सूचना मिलते ही भाई-भौजाई ने पैर में जूती न डाली। वहां पहुंचे तो बहन का कई दिनों का गुब्बार फूटा। बहन खारी-खट्टी सुनाती रही और ये दोनों नीची गर्दन करके मुळकते (मुस्कराते) हुए सुनते रहे।
उनके बेटों को लगा कि मां ज्यादा हाइप कर रही है तो वे उन्हें टोकने लगे।
मां बोली- "हीडीकाड्या! मैं कहने वाली और ये सुनने वाले। तुम बीच में कौन?"
आखिर छोटे बेटों ने बड़े भाईसाब को मैसेज भेजा। भाईसाब माटसाब थे। मारवाड़ी उनको 'जमती' नहीं थी और हिंदी उनसे 'समती' नहीं थी इसलिए दोनों को 'खाटा-खीचड़ा' करके बोलते थे।
देसी आदमी खुद को सभ्य दिखाने के लिए अपनी बोलचाल में हिंदी डालता है और हिंदी वाला अंग्रेजी।
वो जमाना हिंदी का था तिस पर भाईसाब मास्टर। अब कुंण केवे ब्याव भूंडो?
माटसाब आते ही बोले- "इये मां हाका मत कर। तू शांत हूज्या!"
मां कुछ देर चुप रही पर फिर बटन चालू।
"इये मां तू शांत हूज्या!"
इस तरह तीन,चार,पांच बार माटसाब बोलते गए-
"इये मां तू शांत हूज्या!
इये मां तू शांत हूज्या!"
इस बार भौजाई (पड़ नानीसा) का धैर्य टूटा।
"बाळ्यो डोळ आगा हूं! राकुड्यो कद के'बा लाग्यो-
शांत हूज्या! शांत हूज्या!
म्हे तो घड़ी-घड़ी का सूण मनावां अर ओ बापड़ो शांत कराबा पर उतर मेल्यो है। थूंक थारा मूंडा हूं।"
(मुंहजला कबसे कह रहा है,शांत हो जा,शांत हो जा। हम तो घड़ी-घड़ी के सगुन देख रहे हैं।)
ऐसी फीत उतरने के बाद माटसाब की सूरत की कल्पना आप कर सकते हैं।
(राजस्थान में 'शांत' होना 'मरने' के अर्थ में लिया जाता है। )