नीलू की कलम से: शंकर परणीजे...

शंकर परणीजे...
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प्रेमविग्रह द्वय षोडशी है, कमनीय भी है और किसी भी युवक- युवती की मधुर कल्पना का साकार स्वरूप भी

मगर लोक है कि शिव- पार्वती को ही पकड़े बैठा है?

अपने प्रेम के लिए सर्वनाश कर देना फिल्मों के डायलॉग में भले सुनने को मिल जाए, व्यावहारिक धरातल पर शिव जैसा प्रेमी पति ही कर सकता है

फिर सामने भले  सृष्टि का अधिष्ठाता प्रजापति ही क्यों न हों। क्रोधावेश तो शांत हुआ पर  प्रेमावेश का क्या करते

विवाह का सीजन चल रहा है। इस विवाह रूपी कार्यवस्था का प्रारंभ कन्या को देखने से प्रारंभ होकर दुल्हन की मुंह दिखाई के फलागम पर संपन्न होता है। गांवों में विवाह का सबसे इंट्रेस्टिंग पार्ट यही होता है नयी दुल्हन को देखना।

अब तो शायद नहीं पर आज से पांच दस -साल पहले तक  स्त्रियों में इतनी उत्सुकता थी कि बेचारी दुल्हन घूंघट उठा उठाकर हैरान हो जाती थी।

इतने से भी काम चल जाता तो गनीमत मगर वे तो ठुड्डी पकड़कर पूरा मौका मुआयना करती और अंत में थुथकी डालकर कहती- "बीनणी तो साग्यसाग पारबती है।"

सौंदर्य में पार्वती की उपमा समझ आती है क्योंकि पर्वतात्मजा सचमुच अनिंद्य सुंदरी थी किंतु शिव में ऐसा क्या था जो किसी भी सुदर्शन युगल को 'श्यो- पारबती' की जोड़ी कहा जाता है?

कुंवारी कन्या को सोमवार का व्रत और शिव जैसा पति चाहने की सीख लोक में सुप्रसिद्ध है ही। राजस्थानी लोक ने तो गणगौर के रूप में सोलह दिवसीय अनुष्ठान ही रख लिया।
 प्रेम की जब भी बात होती है राधा कृष्ण का नाम सर्वप्रथम सामने आता है।

प्रेमविग्रह द्वय षोडशी है, कमनीय भी है और किसी भी युवक- युवती की मधुर कल्पना का साकार स्वरूप भी। मगर लोक है कि शिव- पार्वती को ही पकड़े बैठा है?

ऐसा क्या है कि  किसलय सी कोमल कुमारी शिव को पाने के लिए मुनिव्रत धारण करती है,रति की आभा को भी फीका करने वाली सुमुखी सूर्यभिमुखी होकर गौरवर्ण को दग्ध कर रही है!
शुचौ चतुर्णा ज्वलता हविर्भुजां 
शुचिस्मिता मध्यगता सुमध्यमा 
विजित्य नेत्रप्रतिघातिनी
प्रभामनन्यदृष्टिः सवितारमैक्षत  (कुमारसंभव 5-20)

जटा जूटधारी शंकर के लिए इतना त्याग भला क्योंकर?(शिव भांग चरस का नशा करने वाले बिल्कुल नहीं यह धारणा पहले भी स्पष्ट थी और अब भी है।)

हर लड़की का सपना होता है कि उनका होने वाला पति सुंदर हो,संपन्न हो और सक्षम भी हो।

शिव में तो इनमें से कुछ भी नहीं! लंबी लंबी जटाओं वाला ब्यूटी कांशियस तो होगा नहीं,विपन्नता ऐसी कि सिर पर छप्पर तक नहीं और भोले तो इतने कि जिसे वरदान दिया वही उन्हें भस्म करने की धमकी दे रहा है और ये भंडारी भागे जा रहे हैं। बड़ा झोल है भाई !!

मुझे इस भोले लोक पर तरस आता है!!

खुद को ज्ञानी और दुनिया को अज्ञानी समझते हुए मैंने जीवन के कई दिन निकाल दिए।  

एक रोज शिव सती प्रसंग पढ़ने को मिल गया । अरे! ये दोनों एक दूजे को पहले से जानते हैं? सती इसी लोक की स्त्री जो हमेशा पीहर और ससुराल में बैलेंस बनाने में ही खुद को मिटा देती है।

वही जिद्दी स्त्री जो हर हाल में पीहर जाना चाहती है,पति और पिता दोनों का मान बनाए जो रखना है। शिव वही लौकिक पुरुष जो स्त्री को पीहर वालों के लिए ताने मारता है,मीठे उलाहने देता है और अंत में अपने घर की शांति बनाए रखने के लिए स्त्री के आगे समर्पण कर देता है।

दाम्पत्य के खट्टे मीठे वही प्रसंग जो आप अपने आस पास आज भी अनुभव करते हैं। सती की नाराज़गी और पिता द्वारा अपमान भी परिचित सा लगा पर उसके आगे की कथा लौकिक होते हुए भी इतनी अलौकिक है कि पार्वती तो क्या इस लोक की हर कन्या कहेगी-

जन्म कोटि लगि रगर हमारी।  
बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥

अपने प्रेम के लिए सर्वनाश कर देना फिल्मों के डायलॉग में भले सुनने को मिल जाए, व्यावहारिक धरातल पर शिव जैसा प्रेमी पति ही कर सकता है फिर सामने भले  सृष्टि का अधिष्ठाता प्रजापति ही क्यों न हों। क्रोधावेश तो शांत हुआ पर  प्रेमावेश का क्या करते?

अविचल समाधिस्थ योगी विक्षिप्त हो चुका था। पत्नी की मृत देह को कंधे पर उठाकर घूमने वाले शिव का प्रेम किसी त्याग और तपस्या से कमतर तो नहीं।

 ऐसे प्रेम के लिए कोई अपर्णा बन जाए भी तो क्या आश्चर्य? मति की धुंध हट चुकी थी। मान लिया इस युगल को। लोक में इतनी गहरी पैठ सतही प्रेम नहीं पा सकता। शिव सती के लिए अटल है तो सती भी पार्वती बनकर शिव को पाने को अटल।

कुमारी को शिव मिल गए हैं। बेटी की पसंद के आगे मां बाप न चाहते हुए भी झुक गए। सशंक सहमति दे दी। डेट और वेन्यू डिसाइड हो गए। एक मीठा गुदगुदाने वाला प्रसंग फिर स्मृति में आया। शिव औघड़ है। प्रतिष्ठा को विष्ठातुल्य समझनेवाले शिव अपनी ही चाल में बारात लेकर चले हैं।

ना पार्लर गए ना गाड़ी सजवायी। अपनी पार्वती को लेने जाने में तामझाम कैसा। प्रिया यथास्थिति से अनभिज्ञ थोड़े है!

दुनिया की रीत से शिव ही अनभिज्ञ रहे!जिसने बारात को देखा वही डर गया। बात कन्या तक पहुंची, नाक का सवाल जो था उसके।

कन्या ने संदेश भेजा सजधज कर आओ, फेरे भले थोड़े लेट हो जाएं। प्रिया की बात कौन काटे?एक बार काटकर दुष्परिणाम देख चुके थे।

दूल्हे को सजाया गया है। जिसने भी यह भुवनमोहिनी छवि देखी बस चित्रलिखित सा देखता रह गया।

दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं। श्यो - पारबती(शिव पार्वती) की जोड़ी जग में अमर हो गई।

नीलू शेखावत

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