विधानसभा चुनाव 2023 : विधानसभा चुनाव 2023 सिरोही सीट पर कांटे की टक्कर, जनता क्या फिर संयम चुनेगी या कोई और गणित बैठेगा

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जालोर—सिरोही लोकसभा क्षेत्र जिसके ​लगातार तीन बार से बीजेपी के टिकट पर सांसद देवजी एम पटेल हैं। फिलहाल कांग्रेस के विधायक हैं। यह सीट गोडवाड़ इलाके में है और गुजरात सीमा से छूती हुई है। इसकी सीमा अन्य सीटों पर सुमेरपुर, पिण्डवाड़ा—आबू, रेवदर, भीनमाल, आहोर, बाली, रानीवाड़ा सीटों से भी छूती है।

इस सीट से एक ऐसा विद्वान व्यक्ति भी विधायक रहा है। जिसने एक किताब में बताया कि राजनेताओं और अधिकारियों के बीच किस तरह के संबंध होने चाहिए। भारत की विदेश नीति पर लिखी किताब के लिए अमेरिका में मेरी कीटिंग दास अवार्ड दिया गया। वे राज्यसभा सांसद भी रहे और संयुक्त राष्ट्र संघ की 23वीं आमसभा में  भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर भाग लिया। यहां एक ऐसा व्यक्ति भी विधायक बना जो पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आया था।

आज बैटलग्राउण्ड में बात करेंगे सिरोही विधानसभा क्षेत्र की। उस विधायक का नाम था प्रोफेसर शांतिलाल कोठारी। वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूना की यरवदा और अजमेर जेल में भी रहे। फिलहाल कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले संयम लोढ़ा यहां से विधायक हैं। 

2011 की जनगणना के अनुसार पूरे सिरोही जिले में ही जैन आबादी मात्र 6 हजार 829 है। यानि कि कुल आबादी का आधा प्रतिशत, लेकिन सिरोही विधानसभा सीट पर सर्वाधिक यदि किसी जाति का विधायक जीता है तो वह जैन समाज का है। फिलहाल संयम लोढ़ा यहां से तीसरी बार विधायक हैं और मुख्यमंत्री के सलाहकार भी।

जालोर—सिरोही लोकसभा क्षेत्र जिसके ​लगातार तीन बार से बीजेपी के टिकट पर सांसद देवजी एम पटेल हैं। फिलहाल कांग्रेस के विधायक हैं। यह सीट गोडवाड़ इलाके में है और गुजरात सीमा से छूती हुई है। इसकी सीमा अन्य सीटों पर सुमेरपुर, पिण्डवाड़ा—आबू, रेवदर, भीनमाल, आहोर, बाली, रानीवाड़ा सीटों से भी छूती है।

272 बूथों वाली इस सीट पर करीब तीन लाख मतदाता अब तक पंजीकृत हो चुके हैं और बीते चार साल में यहां करीब 29 हजार वोटर बढ़े हैं।

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने लगातार चार बार से टिकट ले रहे और लगातार दो बार हार चुके संयम लोढ़ा का टिकट काट दिया। अब लोढ़ा नाराज हो गए और उन्होंने निर्दलीय ताल ठोक दी। कांग्रेस ने शिवगंज के प्रधान जीवाराम आर्य को टिकट दे दिया।

यहां 16 प्रत्याशी चुनाव में थे। संयम लोढ़ा यहीं गेम कर गए और बीजेपी के मूलवोट बैंक कहे जाने वाले कुम्हार समाज के कांग्रेस प्रत्याशी होने का पूरा फायदा उठाया और करीब साढ़े चौदह हजार वोट ही जीवाराम को मिले। संयम लोढ़ा ने वसुन्धरा सरकार में मंत्री रहे ओटाराम देवासी को करीब दस हजार से अधिक वोटों से हरा दिया।

इससे पहले 2013 में नोटा समेत 17 प्रत्याशी थे। परन्तु बीजेपी की लहर में चौदहवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में ओटाराम देवासी 24439 वोटों से संयम लोढ़ा पर भारी पड़े। यह सीधा—सपाट चुनाव था। बावजूद डेढ़ दर्जन प्रत्याशियों के चुनाव में होने के। ओटाराम इसी कार्यकाल में मंत्री भी बनाए गए थे।

2008 में यहां 8570 वोटों से संयम लोढ़ा को हराकर बीजेपी के टिकट पर ओटाराम देवासी पहली बार विधायक बने थे। प्रदेश में जहां गहलोत सरकार काबिज हुई, लेकिन सिरोही में संयम लोढ़ा हार गए।

बीजेपी ने 2003 के चुनाव में हारने वाली तारा भंडारी का टिकट काटकर मुंडारा माताजी मंदिर के भोपाजी ओटाराम को टिकट दिया था। देवासी समाज को पहली बार टिकट देकर बीजेपी ने यह बड़ा कार्ड खेला था।

1951 में यहां की राज्य न्यायिक सेवा में रहे मीरपुर ठिकाने के जवान सिंह सोलंकी को जनता ने निर्दलीय विधायक बनाया। जवान सिंह 32 वर्ष के युवा थे। उन्होंने यहां से कांग्रेस के दुलीचंद को करीब 32 फीसदी के अंतर से हराया।

यहां जनसंघ के प्रत्याशी तीसरे नम्बर पर रहे। हालांकि 1951 के चुनाव में सिरोही में एक और सीट हुआ करती थी भावरी जिस पर मोहब्बत नगर के ठाकुर मोहबत सिंह निर्दलीय जीते उनके भी जीत का अंतर 35 फीसदी से अधिक रहा।

भावरी सीट 1957 में खत्म कर दी गई। पहले चुनाव में यहां एक तीसरी सीट भी थी, जिसका नाम था शिवगंज। यहां ​नेत्र चिकित्सक पंजाब के रहने वाले सरदार अर्जुन सिंह पहले विधायक बने थे। 3795 वोट से उन्होंने कांग्रेस के देवीचंद को हराया था। शिवगंज को भी सिरोही में मर्ज कर दिया गया।

1957 में सिरोही से मोहब्बत सिंह विधायक बने। सिरोही एससी सीट पर वीरा राम मेघवाल विधायक बने और कांग्रेस के तेजाराम को 191 वोट से हराया। यह 1957 के चुनाव में कांटे की टक्कर थी। सिरोही सामान्य से कांग्रेस के टिकट पर मोहब्बत सिंह खड़े हुए, उन्होंने राम राज्य परिषद के हीर सिंह को 5827 वोट से हराया।

तीसरी विधानसभा के लिए 1962 में हुए चुनाव में सिरोही अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हो गई और कांग्रेस के टिकट पर धर्माराम आर्य यहां जीते।

उन्होंने निर्दलीय लालाराम को करीब 3345 वोट से हराया। जनसंघ के समाराम 1839 और राम राज्य परिषद के हीराराम को 1763 वोट मिले। 1967 में सिरोही फिर सामान्य सीट हो गई। कांग्रेस ने भेव गांव के मदन सिंह को प्रत्याशी बनाया। उन्होंने जनसंघ के पुखराज को 3794 वोट से हरा दिया।

निर्दलीय बाबूलाल 5384 व ए.पी. सिंह 5016 वोट लाए। 1972 में प्रोफेसर शांतिलाल कोठारी सिरोही के विधायक बने। ये वही शख्स थे, जिनका हमने जिक्र किया।

इससे पहले कोठारी राज्यसभा सांसद रह चुके थे और लगभग पूरी दुनिया के दर्जनों देशों की यात्रा उन्होंने की। ये मूलत: आबूरोड के रहने वाले थे। इन्होंने जनसंघ के रघुनंदन व्यास को करीब पन्द्रह हजार वोटों के अंतर से हराया।

रघुनंदन व्यास पाकिस्तान में राष्ट्रभाषा के प्रचारक थे और लालकृष्ण आडवाणी के साथी थे। उन्होंने सहकारिता के प्रचार के लिए भारत भर की यात्रा की थी। वे इमरजेंसी समेत कई बार जेल भी गए।

1977 का चुनाव आया तो सिरोही की जनता ने रघुनंदन व्यास को सिरोही से जिताकर भेजा।   कांग्रेस के रामलाल को उन्होंने 795 वोटों से हराया। व्यास 1980 में भी खड़े हुए, लेकिन बीजेपी के टिकट पर। वे यहां जनता पार्टी के बाद तीसरे नम्बर पर रहे और मात्र 2433 वोट ही पा सके।

इस चुनाव में देवीसहाय गोपालिया ने 58.37 प्रतिशत वोट लेते हुए एकतरफा सुरेन्द्र चन्द्र शर्मा जनता पार्टी को हराया। 1985 के चुनाव में कांग्रेस के राम लाल ने 51.79 प्रतिशत वोट हासिल किए।

बीजेपी ने पहली बार यहां से महिला प्रत्याशी तारा भंडारी को टिकट दिया, लेकिन वह करीब पांच हजार वोट से हार गईं।

हालांकि 1990 में तारा भंडारी ने वापसी करते हुए कांग्रेस के राजेन्द्र गोपालिया को 16370 वोटों के बड़े अंतर से हराया।

1993 में तारा भंडारी ने निर्दलीय पूनमचंद को हराया। यहां से माधो सिंह कांग्रेस का टिकट लाए, लेकिन तीसरे नम्बर पर रहे और बीस फीसदी वोट ही ला सके।

1998 के चुनाव में कांग्रेस की लहर आई। तारा भंडारी विधानसभा की उपाध्यक्ष थी। यहां कांग्रेस ने टिकट दिया संयम लोढ़ा को। तेज तर्रार अधिवक्ता संयम लोढ़ा 6802 वोट से जीत गए। बड़ी भूमिका निभाई राजस्थान विकास पार्टी के रामलाल ने जिन्होंने 9851 वोट खींच लिए।

निर्दलीय गोमाराम भी 8568 तथा पूर्व विधायक राजेन्द्र गोपालिया भी निर्दलीय खड़े होकर 7254 वोट ले गए। 

2003 में बीजेपी की लहर थी, लेकिन आड़े आई सामाजिक न्याय मंच की टीम। करीब सात हजार राजपूत वोट ​राजस्थान सामाजिक न्याय मंच के दलीप सिंह मांडानी ले गए और तारा भंडारी 4136 वोट से हार गईं। बसपा के प्रत्याशी हाथीराम को भी 4918 वोट मिले।

इस बार सिरोही में संयम लोढ़ा का दावा फिर से कांग्रेस की ओर से मजबूत हैं। वे मौजूदा सीएम के सलाहकार भी है, लेकिन यहां का मामला अब कास्ट फैक्टर में उलझता जा रहा है। यहां कलबी समाज, पुरोहित, राजपूत और दलित बड़ा डिजाइडिंग फैक्टर है। देखना है कि जनता दिसम्बर में किसे चुनती है।

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