Highlights
- राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी के जीवन को देखने के अनेक दृष्टिकोण है
- 21 मई 1991 को आखिर वही हुआ जिसका सोनिया को डर था
- पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह अपनी आत्मकथा 'ONE LIFE IS NOT ENOUGH ' में वह बात लिखते है
- प्रधानमंत्री सोनिया गांधी से बात ही नहीं करना कहते थे
- सोनिया नरसिम्हाराव को पसंद नहीं करती थी
एक उग्रवादी संगठन सोनिया गांधी की भी हत्या करना चाहता था।
राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी के जीवन को देखने के अनेक दृष्टिकोण हैं। 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हो गई तो सोनिया गाँधी, राजीव के राजनीति में आने को लेकर सहमत नहीं थी क्योंकि सोनिया राजीव को लेकर डरी हुई थीं। लेकिन अंतत: राजीव ने राजनीति में पदार्पण कर ही लिया। 21 मई 1991 को आखिर वही हुआ जिसका सोनिया को डर था।
राजीव की हत्या के बाद आख़िरकार सोनिया को भी उसी रास्ते पर निकलना पड़ा जिस पर जाने से वे राजीव को मना करती रही। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह अपनी आत्मकथा '
' में वह बात लिखते हैं जब सोनिया गांधी भी एक उग्रवादी संगठन के निशाने पर थीं और सुरक्षा व्यवस्था में अगर कहीं चूक हुई होती तो शायद कोई बड़ी अनहोनी हो जाती।
नटवर सिंह अपनी किताब में लिखते हैं कि राजीव की हत्या के बाद सोनिया के जीवन का बसंत मानो रूठ गया हो। 1991 से 1998 के बीच सोनिया केवल राजीव की यादों के सहारे ही अकेली रही। कांग्रेस में सोनिया को राजनीति में लाने की कोशिशे शुरू हो चुकी थी। लेकिन सोनिया इससे इतर उनके द्वारा स्थापित राजीव फाउंडेशन में लगातार बेहत्तर काम कर रही थी। राजीव की हत्या के बाद सोनिया ने राजीव गाँधी पर दो किताबे भी छपवाई। इसके अलावा सोनिया नेहरू मेमोरियल फंड और इंदिरा गाँधी मेमोरियल फंड की चेयरपर्सन भी बन गई और इन सबमें वे खूब व्यस्त रहने लगीं। उसी समय दिल्ली के तालकटोरा गार्डन में AICC की एक मीटिंग में सोनिया गाँधी पहुंची तो उनसे राजनीति में उतरने की भारी अपील हुई।
हमले से बच गई सोनिया
नटवर सिंह अपनी किताब में एक घटना का जिक्र करते है जब सितम्बर 1995 में सोनिया त्रिवेंद्रम के दौरे पर गई. नटवर सिंह सोनिया के पहुँचाने से पहले ही त्रिवेंद्रम में मौजूद थे. सुरक्षा प्रमुख ने नटवर सिंह को सूचना दी कि बब्बर खालसा ग्रुप नाम का एक उग्रवादी संगठन सोनिया पर जानलेवा हमला कर सकता है. यह बात बात सुनकर नटवर सिंह की साँस फूल गई. आनन - फानन में नटवर सिंह ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एके एन्टोनी से बात की और पूरी बात कह दी. खबर को सुनते ही एटोनी तुरंत उस होटल में पहुंचे जहां नटवर सिंह रुके हुए थे. नटवर सिंह ने एके अंटोनी को तुरंत प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से बात करने की सलाह दी.
मुख्यमंत्री के पास नहीं मिला प्रधानमंत्री का नंबर
जब नटवर सिंह ने केरल के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री से बात करने की सलाह दी तो नटवर सिंह एन्टोनी के साथ उनके घर चल दिए। उस दौरान उनके साथ ना तो कोई सुरक्षा अधिकारी था और ना ही कोई पहरेदार। जब नटवर सिंह मुख्यमंत्री के घर पहुंचे तो उनका स्टाफ भी घर जा चुका था ऐसे में प्रधानमंत्री से बात करने के लिए नटवर सिंह ने ए के एन्टोनी से उनका नंबर माँगा लेकिन नटवर सिंह को इस बात का बड़ा ही ताज्जुब हुआ की केरल के मुख्यमंत्री के पास प्रधानमंत्री का नंबर तक नहीं था। जैसे तैसे नटवर सिंह ने अपनी कोशिशों से प्रधानमंत्री से बात की।
प्रधानमंत्री सोनिया गांधी से बात ही नहीं करना कहते थे
जब नटवर सिंह ने सोनिया गांधी की सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव से बात की तो उन्हें पता चला कि नरसिम्हाराव को सोनिया गांधी पर हमले की खबर पहले से ही थी। लेकिन अभी तक नरसिम्हाराव ने भी सोनिया गाँधी से कोई बातचीत नहीं की। जब नटवर सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि उन्हें तुरंत सोनिया से बात करनी चाहिए तो नरसिम्हाराव ने कहा कि नटवर तुम मेरी तरफ से उन्हें {सोनिया गाँधीजी } को कह दो कि वे त्रिवेंद्रम न जाए। नटवर सिंह नरसिम्हाराव के इस रवैये पर अपनी किताब में हैरानी व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि 'यहां तो सोनिया के जीवन पर आतंकियों का खतरा मंडरा रहा है और ये महाशय उनसे { सोनिया } बात भी नहीं करना चाह रहे हैं।
जब नटवर सिंह ने सोनिया गांधी से बात की तो सोनिया ने कहा कि 'मैं त्रिवेंद्रम सुबह की उड़ान से आ रही हूँ। यदि मैं ऐसा नहीं करुँगी तो कभी दस जनपथ के बाहर नहीं आ सकती '
एक खतरा उठाकर सोनिया त्रिवेंद्रम पहुंची और कार्यक्रम में हिस्सा लिया लेकिन सोनिया गांधी से बिना बात किए ही प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने रातों रात स्पेशल कमांडोज को दिल्ली से त्रिवेंद्रम रवाना कर दिया। जिस जगह सोनिया को ठहरना था वहां और जिस जगह उनका कार्यक्रम होना था वहां भारी सुरक्षा तैनात की गई और एक बड़ी अनहोनी टल गई।
सोनिया नरसिम्हाराव को पसंद नहीं करती थी
नटवर सिंह अपनी किताब में सोनिया गांधी और नरसिम्हा राव के संबंधों पर भी खुलकर लिखते हैं और दावा करते हैं कि सोनिया ने ही नरसिम्हाराव को प्रधानमंत्री बनवाया था लेकिन वे नरसिम्हाराव को पसंद नहीं करती थी। खुद नटवर सिंह की भी एक बार नरसिम्हाराव से अदावत हो गई और वे तिवारी कांग्रेस में चले गए थे लेकिन जल्द ही सुलह के रास्ते खुल गए और नटवर पुरानी जगह लौट आए।
बात यहां तक बिगड़ी हुई थी
सोनिया और नरसिम्हाराव के संबंधों से नटवर सिंह की किताब का एक किस्सा ठीक से पर्दा उठता है। एक बार नरसिम्हाराव ने नटवर सिंह को अपने घर मिलने बुलाया। उन दिनों नटवर सिंह सोनिया गांधी के सबसे करीबी लोगो में गिने जाते थे। जब नटवर नरसिम्हाराव से मिलने पहुंचे तो नरसिम्हा राव ने नटवर से कहा कि ' मैं सोनिया गांधी से भिड़ सकता हूं, पर मैं ऐसा करना नहीं चाहता ' नरसिम्हाराव ने आगे कहा कि उनके कुछ सलाहकार मेरे खिलाफ कान भर रहे हैं, मुझे उन लोगों की परवाह नहीं लेकिन सोनिया से फर्क पड़ता है।
नरसिम्हाराव यही नहीं रुके और आगे उन्होंने जो कहा वह इस बात की गवाही है कि उस दौर में सोनिया और नरसिम्हाराव के संबंध किस कदर बिगड़े हुए थे। नरसिम्हाराव ने आगे नटवर सिंह को कहा कि उनका यह बर्ताव मेरी सेहत पर असर डाल रहा है। यदि वे चाहती हैं कि मैं हट जाऊं तो सिर्फ कह दें। मैंने पूरी कोशिश की है कि उनकी सारी जरूरतें और इच्छाऐं तुरंत पूरी हों। नरसिम्हाराव नटवर सिंह को आगे कहते हैं कि ' तुम तो उनके {सोनिया गाँधी} काफी करीबी हो इसलिए तुम्हे मालूम होगा कि वे मुझसे इतनी शत्रुता क्यों रखती हैं।