Rajasthan Student Suicide: प्रतियोगिता की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों में से एलन कोचिंग में पढ़ने वाले बच्चे 58 फीसदी, इस पर सवाल क्यों नहीं उठता

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एक सवाल यह भी है कि 71 में से 41 दर्ज हुए एक Allen Coaching अकादमी के और किसी तरह की चिंता नहीं जगती कि यहां ऐसा चल क्या रहा है। सरकारें क्यों नहीं यहां के तरीकों पर जांच करती। पढ़ से बच्चों से बात क्यों नहीं करती।

जयपुर |  राजस्थान के कोचिंग संस्थान खासकर के बड़े संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे आत्महत्या के शिकार हो रहे हैं। बीते पांच सालों में महज दो शहरों में 71 बच्चों ने आत्महत्या कर ली। इनमें से कोविड काल में यह संख्या ज्यादा नहीं रही। तीन साल में 66 बच्चों की मौत हुई है।

वैसे रिजल्ट का दौर चल रहा है और आज हम रिजल्ट निकालेंगे किस कोचिंग संस्थान में पढ़ने वाले बच्चे सर्वाधिक आत्महत्या कर रहे हैं। इन 71 में से किस संस्थान के कितने बच्चे मौत के मुंह में चले गए? इसमें पुलिस की भूमिका अभिभावकों के पक्ष में नजर नहीं आकर कोचिंग संस्थानों के पक्ष में ही नजर आती है।

हमारे मासूम उम्मीदों के बोझ तले कितने दबाए जा रहे हैं कि मौत को गले लगा रहे हैं। आपको हैरत होगी कुल मारे गए बच्चों में से 58 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे हैं एक कोचिंग संस्थान एलन कोचिंग के हैं।

हम आपको आज एक—एक संस्थान की हकीकत बताएंगे कि विद्यार्थियों के चयन पर शहर—चौराहों के होर्डिंग और अखबार को पाट देने वाले यह संस्थान इस पर चिंता नहीं करते कि चयन नहीं होने वाले बच्चों की मानसिक स्थिति का क्या? वे जिक्र तक नहीं करते ऐसी मौतों का और मीडिया में होने भी नहीं देते।

हम यह भी बताएंगे कि पुलिस किस तरह से मदद करती है कि अपराधी सजा तक नहीं पहुंचे। मासूम मौत पर परिजन रोकर रह जाते हैं और कोचिंग माफियाओं का कुछ नहीं बिगड़ता।

हाल ही में मैं एक सर्कुलर देख रहा था कि पुलिसवालों के बच्चों के लिए कोचिंग में ये संस्थान पचास प्रतिशत तक की फीस में छूट दे रहे हैं। पैसे कूट लेने के लिए अपने टीचर्स की वोकल कोर्ड तक बदलवाने वाले ये संस्थान किस तरह से इतने दयालु हो रहे हैं कि सामाजिक सरोकार के लिए इन्हें पुलिस पर इतना लाड़ उमड़ रहा है।

राजस्थान के एक विधायक हैं युनूस खान! बीजेपी के कद्दावर नेता रहे युनूस इस बार निर्दलीय विधायक हैं और उन्होंने विधानसभा में एक सवाल पूछा था कि क्‍या माह जनवरी 2019 से माह जनवरी, 2024 तक प्रदेश के विभिन्‍न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करवा रहे कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा आत्‍महत्‍या करने के प्रकरण सामने आए हैं? यदि हां, तो जिलेवार संख्‍यात्‍मक विवरण सदन की मेज पर रखें।

उत्तर आया जी हां, 01 जनवरी 2019 से माह 31 जनवरी, 2024 तक प्रदेश के विभिन्‍न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करवा रहे कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले छात्र/छात्राओं द्वारा आत्‍महत्‍या करने के 71 मामले दर्ज हुए है। जिनका वर्षवार, जिलेवार व थानेवार विवरण परिशिष्‍ट ''अ'' पर संलग्‍न है। हम इसी परिशिष्ट अ का विश्लेषण कर रहे हैं। परवाह है कि और बच्चे इस तरह से जान  नहीं गवाएं और सरकार उनके बारे में सोचे।

युनूस खान आगे सवाल पूछत हैं क्‍या प्रदेश में बिना नियमों के अपंजीकृत कोचिंग सेंटर संचालित हैं? यदि हां, तो उक्‍त अवधि में कितने कोचिंग सेंटर के विरूद्ध कार्रवाई की गई? यदि नहीं, तो क्‍यों? जिलेवार संख्‍यात्‍मक विवरण सदन की मेज पर रखें।

उत्तर आता है पंजीकरण संबंधी नियम नहीं होने के कारण वर्तमान में कोचिंग संस्‍थान बिना पंजीकृत संचालित हो रहे है। कोचिंग संस्‍थानों पर नियंत्रण हेतु समय-समय पर दिशानिर्देश जारी किये गये है। कोचिंग संस्‍थानों के पंजीयन एवं विनियमन हेतु भारत सरकार ने दिशानिर्देश दिनांक 16.01.2024 जारी कर लीगल फ्रेमवर्क  करने हेतु राज्‍यों को भेजे है।

केंद्र द्वारा जारी दिशानिर्देशों को अडॉप्‍ट करते हुए इनकी पालना सुनिश्चित कराने हेतु सभी जिला कलेक्‍टर्स को भिजवायें गये है।  केंद्र द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप विधेयक का प्रारूप तैयार करने का कार्य प्रक्रियाधीन है। विधेयक के कानून के रूप में अस्तित्‍व में आने के उपरांत ही कोचिंग संस्‍थानों के पंजीकरण का कार्य प्रारंभ हो सकेगा। सरकार कानून बनाने के बारे में सोच रही है। यह सोच भी इस सवाल लगने के बाद ही शुरू हुई है। निश्चित तौर पर। तारीख 16 जनवरी 2024 जो है।

अब जो सवाल है उस पर ध्यान देना बनता है। युनूस खान पूछते हैं कि इन कोचिंग सेंटर पर फीस का निर्धारण एवं अध्‍यापन कार्य करवा रहे लोगों की शैक्षणिक योग्‍यता के निर्धारण के क्‍या मापदंड है ? उक्‍त मापदण्‍डों में कितने लोगों का पंजीयन है? संख्‍यात्मक विवरण सदन की मेज पर रखें।

आपको जानकर हैरत होगी कि जवाब दिया है कि कोचिंग संस्‍थानों में फीस का निर्धारण स्‍वयं के स्‍तर पर किया जाता है। राज्‍य सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देश दिनांक 27.09.2023 में कोचिंग सेंटरों में अध्‍यापन कराने की न्‍यूनतम योग्‍यता स्‍नातक निर्धारित की गई है। सवाल था कि कितने लोग पढ़ा रहे हैं उसका विवरण नहीं है।

अब युनूस खान का सवाल जो कि आखिरी है कि क्‍या सरकार कोचिंग सेंटर्स पर नियंत्रण रखने का विचार रखती है? यदि हां, तो क्‍या सरकार उक्‍त में संबंध में अधिनियम या परिनियम बनाने का विचार रखती है? यदि नहीं तो क्‍यों? विवरण सदन की मेज पर रखें।
उत्तर- जी हां। केंद्र सरकार द्वारा कोचिंग संस्‍थानों के पंजीकरण एवं विनियमन हेतु जारी दिशानिर्देश दिनांक 16.01.2024 के अनुरूप विधेयक का प्रारूप तैयार करने का कार्य प्रक्रियाधीन है।

सरकार ने जवाब देकर अपना काम निकाल लिया है। कहा है कि बिल लाया जाएगा। बिल कब आएगा यह एक सवाल ही है। दशकों से कोचिंग्स चल रही है। 71 मौतें सिर्फ दो शहरों की बताई गई है जयपुर में चल रही कोचिंग संस्थानों में, जोधपुर,  बीकानेर आदि—आदि शहरों में हुई आत्महत्याओं का उल्लेख नहीं है। मतलब कोचिंग संस्थानों से मौत का बोझ सिर्फ दो शहरों पर है। पहला कोटा और दूसरा सीकर!

अब यदि संस्थानों की बात करें इन दो शहरों में से सर्वाधिक मौतें कहां हो रही है। तो पहले नम्बर पर कोटा है। दूसरे पर सीकर है। कोटा में 55 मौतें हुई है। सीकर में 16! इन 71 में से 52 लड़के हैं और 19 लड़कियां है। 19 में से तीन लड़कियों की मौत ब्लैकमेल और प्रताड़ना से परेशान होने की बात सामने आई है। 

विधानसभा में पेश हुए जवाब को देखें तो इनमें भी यदि संस्थानों की बात करें तो एलन नामक संस्थान इसमें टॉप पर है। कोटा में कुल 55 में से 40 बच्चे वे जिंदगी से हार गए जो एलन में पढ़ते थे। यही नहीं एलन के कुल 41 बच्चों ने आत्महत्या की है, जिसमें एक सीकर का है। यह कहते हुए कलेजा कांपता है कि इनमें 14 से 15 साल के मासूम भी जो तनाव की वजह से दुनिया छोड़ गए। नौकरी पाने की कैसी होड़ है, कैसा नम्बर गेम है जो तनाव को इस हद तक बढ़ा देता है कि बच्चा जिंदगी से हार जाता है। 

एक सवाल यह भी है कि 71 में से 41 दर्ज हुए एक ही अकादमी के और किसी तरह की चिंता नहीं जगती कि यहां ऐसा चल क्या रहा है। सरकारें क्यों नहीं यहां के तरीकों पर जांच करती। पढ़ से बच्चों से बात क्यों नहीं करती।

मां—बाप भी क्यों यहां बच्चों को ठूंसे जा रहे हैं। उम्मीदों का बोझ यहीं क्यों भारी हो रहा है। एक वजह है भारी भरकम फीस... और सिलेबस को पढ़ने, रटने, चाटने, घोलकर पीने जैसे डायलॉग के साथ सिलेक्शन के आसमानी दावे। अब बच्चे को लगता है कि पिता ने इतना इन्वेस्ट कर दिया और अब वह अपना टास्क पूरा कर नहीं पा रहा है। 

दूसरे नम्बर पर सीकर की गुरूकृपा कोचिंग अकादमी है। सीकर में आत्महत्या करने वाले कुल 16 में से छह विद्यार्थी इसी कोचिंग के हैं। बच्चों पर काश काउंसलिंग या मोटिवेशन जैसी गुरुकृपा इन कोचिंगों में बरसती तो शायद ये चराग नहीं बुझते।

तीसरे नम्बर पर रिजोनेंस और फिजिक्सवाला नाम की कोचिंग संस्थाएं हैं, जहां के पांच—पांच बच्चे मौत का शिकार हुए। जांच इनकी भी नहीं हुई, यहां पढ़ाने का तरीका क्या है। बस ग्रेजुएट होने की अनिवार्यता का एक सर्कुलर निकालकर सरकार ने इतिश्री कर ली। बच्चों को कौनसा तनाव दिया जा रहा है, कौन दे रहा है? इसकी जांच होनी ही चाहिए।

चौथे नम्बर पर अन अकेडमी और सीकर की सीएलसी है। यहां चार—चार बच्चे जिंदगी से हार गए। सवाल इन पर भी नहीं उठे। गजब है!! बच्चों के मां—बाप की उम्मीदें टूट गई और वे अपने आपको कोसते हुए चले जाते हैं।

1-1 बच्चा मैट्रिक्स, मोशन कोचिंग, इम्पल्स कोचिंग, आकाश डिफेंस एकेडमी, एक श्याम हाॅस्टल की छात्रा और किराए के मकान में रहकर तैयारी करने वाला छात्र भी हैं।

यह संख्या सिर्फ वह है जो विधानसभा में पेश हुई है।

मरने वाले कुल 71 में से 51 बच्चे बाहरी प्रदेशों के हैं। इसलिए पुलिस भी जांच में ज्यादा लोड नहीं लेती। 174 सीआरपीसी का मर्ग दर्ज करती है और मामले का निष्पादन कर दिया जाता है। यही नहीं जो 7 मुकदमे दर्ज भी हुए हैं इनमें से महज 2 मामले में चालान पेश हुआ है। एक मामले में जांच ही पेंडिंग है और बाकी में एफआर दे दी जाती है।
यदि दर्ज मामलों की स्थिति देखूं जिसमें आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में पुलिस ही खेला कर रही है।

पुलिस का खेला यह है
भारतीय दंड संहिता की (IPC) धारा 306 और 305आईपीसी की धारा 306 और 305 खुदकुशी या आत्महत्या के मामले से जुड़ी है। अगर कोई शख्स खुदकुशी कर लेता है और ये साबित होता है कि उसे ऐसा करने के लिए किसी ने उकसाया था या फिर किसी ने उसे इतना परेशान किया था कि उसने अपनी जान दे दी तो उकसाने या परेशान करने वाले शख्स पर आईपीसी की धारा 306 लगाई जाती है।

इसके तहत 10 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। अगर आत्महत्या के लिए किसी नाबालिग, मानसिक तौर पर कमजोर या फिर किसी भी ऐसे शख्स को उकसाया जाता है जो अपने आप सही और गलत का फैसला करने की स्थिति में न हो तो उकसाने वाले शख्स पर धारा 305 लगाई जाती है। इसके तहत दस साल की कैद और जुर्माना या उम्रकैद या फिर फांसी की भी सजा हो सकती है।

यहां नाबालिगों के मामले में भी पुलिस 306 ही उपयोग कर रही है। उसी पर जांच हो रहीहै। उसी पर एवीडेंस है और उसी पर प्रक्रिया चल रही है। हैरत है कि सीकर के एक मामले में पुलिस नाबालिग मृतका वाले मामले में पोक्सो का मामला तो दर्ज किया, लेकिन 305 नहीं लगाई। यहां तक कि कोचिंग संस्थानों का नाम भी सरकार ने पहली बार उजागर किया है।

मुझे पता है कि इसके बाद कइयों के पेट में दर्द होगा। निश्चित तौर पर! होना ही चाहिए! इसलिए तो वीडियो बनाया है! परन्तु काश! इस दर्द की दवा ढूंढी जाए। बच्चा नहीं कर पा रहा है तो उस पर बोझ मत डालिए। यदि वह विपरीत परीस्थितियों के सामने आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा सकता है तो ​जीवन में आपके बात करने, सहलाने, दुलारने, पुचकारने और स्नेह से बात करने, मोटीवेट करने पर सही परीस्थिति में अपनी अच्छाई के लिए भी प्रभावी कदम उठाने में सक्षम है।

एक बात और कह दूं कि कुछ लोग यह भी कहेंगे कि इन मौतों के लिए कोचिंग संस्थान कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं? यह बात सही भी हो सकती है। इसलिए इस पर रिसर्च बनता है कि कौन जिम्मेदार है। इन आंकड़ों में यदि हम 2020 और 2021 के आंकड़ें देखें तो मात्र 5 ही बच्चे यानि कि 20 में चार और 21 में 1 मासूम ही आत्महत्या करता है। लेकिन आईआईटी में, मेडिकल में सलेक्ट उतने ही हुए जितने होने थे। उस वक्त ये कोचिंग बंद थीं। हमें सोचना चाहिए और सोचना ही चाहिए। देखते हैं कि सरकार बिल कब लाती है और उसमें क्या लाती है। क्या वह कोचिंग संस्थानों की नजर से बिल होगा या इस उस देश के भविष्य की नजर से होगा जो अंधी प्रतिस्पर्धा में हारकर मौत को गले लगा रहे हैं। आप अपनी अमूल्य राय हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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