Highlights
- डॉ. किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफे का अनोखा इतिहास
- किरोड़ी और नड्डा की मुलाकात: इस्तीफे पर अडिग
- तीन महत्वपूर्ण इस्तीफे: किरोड़ी की कहानी
- राजस्थान की राजनीति में किरोड़ीलाल मीणा
Jaipur | राजस्थान की राजनीति में डॉ. किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफे का एक अनोखा इतिहास रहा है। शुक्रवार को दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद भी उन्होंने अपने इस्तीफे पर अडिग रहने का फैसला किया। नड्डा के पूछने पर किरोड़ी ने कहा कि जिन लोगों के लिए उन्होंने 40-45 साल काम किया, वही उनसे विमुख हो रहे हैं, जिसे वे सहन नहीं कर पा रहे हैं। नैतिकता के नाते उन्होंने इस्तीफा दिया है। नड्डा ने उन्हें एक बार और सोचने और 10 दिन बाद मिलने की सलाह दी।
किरोड़ी का मंत्री पद से इस्तीफा देने का इतिहास
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा का मंत्री पद से इस्तीफा देने का पुराना नाता है। वे खुद दो बार और उनकी पत्नी गोलमा देवी एक बार मंत्री पद से इस्तीफा दे चुकी हैं। पिछली बार चौथे वर्ष में और इस बार मात्र 6 माह में ही उन्होंने पद से इस्तीफा दिया। गोलमा देवी ने 5 माह में ही इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देने के बाद किरोड़ी किसी के मनाने पर नहीं माने।
किरोड़ीलाल के तीन प्रमुख इस्तीफे
पहला इस्तीफा (2007):
वसुंधरा राजे सरकार के प्रथम कार्यकाल में किरोड़ीलाल मीणा खाद्य मंत्री थे। 2007 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के समय वसुंधरा राजे सरकार के कामकाज से नाराज होकर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वे नहीं चाहते थे कि एसटी आरक्षण से छेड़छाड़ हो। उस दौरान भी उन्हें मनाने की कई बड़े नेताओं ने कोशिश की लेकिन वो नहीं माने।
दूसरा इस्तीफा (2009):
किरोड़ीलाल की पत्नी गोलमा देवी 2008 में निर्दलीय विधायक बनीं और गहलोत सरकार में खादी मंत्री बनीं। 2009 के लोकसभा चुनाव में पूर्वी राजस्थान में किरोड़ीलाल के सुझावों पर टिकट नहीं देने की नीयत और पूर्वी राजस्थान के मुद्दों पर असहमति के चलते, गोलमा देवी ने पति किरोड़ीलाल के कहने पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। गोलमा ने गहलोत और सोनिया गांधी को इस्तीफा भेजा था।
तीसरा इस्तीफा (2024):
लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद किरोड़ीलाल ने तीसरा इस्तीफा दिया। उन्हें मनाने के लिए सीएम भजनलाल शर्मा से लेकर प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी तक ने कोशिश की, लेकिन किरोड़ीलाल इस्तीफा स्वीकार करने की बात कह रहे हैं। मामला भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास चला गया है। गुरुवार को मुलाकात भी हो चुकी है, लेकिन किरोड़ीलाल अपने फैसले पर डटे हुए हैं।
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफे का इतिहास दिखाता है कि वे अपनी नैतिकता और सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं। तीन बार इस्तीफा देकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि वे किसी भी परिस्थिति में अपने आदर्शों से समझौता नहीं करते। उनकी इस दृढ़ता ने उन्हें राजस्थान की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और सम्मानित नेता के रूप में स्थापित किया है। अब देखना होगा कि इस बार भाजपा नेतृत्व उन्हें कैसे मनाने में कामयाब होता है या नहीं।