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राजनीतिक पंडितों का ऐसा आकलन है कि दिसम्बर में सरकार जम्मू कश्मीर में भी चुनाव करवाएगी। केन्द्र के लिए बड़ी चुनौती जेएण्डके रहेगा। ऐसे में वे राजस्थान को कैसे देखेंगे। सभी जगह चुनौतियां अलग—अलग हैं। ऐसे में अकेले केन्द्र के चेहरे पर वे इतने सारे राज्यों में कैसा प्रदर्शन करते हैं। यह देखने वाली बात होगी। मोदी सरकार ऐसे में राजस्थान को यदि एक बार फिर से क्लीन स्वीप चाहती हैं तो वसुन्धरा राजे से बेहतर कोई विकल्प फिलहाल नजर नहीं आता।
जयपुर | वैसे तो बीजेपी में मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में कई नेता है, लेकिन वसुन्धरा राजे का स्वैग फिर उभरने लगा है। उदयपुर में तो कहो दिल से—वसुन्धरा फिर से के नारे आज फिजाओं में गूंज भी गए।
कांग्रेस में बदलती परीस्थितियां क्या होगी, यह दीगर बात है परन्तु बीजेपी राजस्थान की मौजूदा हालातों का फायदा उठाकर क्लीन स्वीप चाहती है। यह वसुन्धरा राजे के बिना सम्भव लगता नहीं है। क्योंकि बाकी दावेदारों में अधिकांश जन नेता नहीं है।
कहने का मतलब यहां दावेदारों में ऐसे लोग नहीं है, जिनके एक इशारे पर जनता पलक पांवड़े बिछा देगी। वसुन्धरा राजे के फिर से शुरू हुए दौरे ही नहीं बल्कि इससे पहले बीजेपी प्रदेश कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर—बैनर, उसके बाद विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता, उप नेता की तारीफों ने फिर से एक नई मुहर लगानी शुरू कर दी है।
बेणेश्वर धाम में प्रस्तावित एक कार्यक्रम में वसुन्धरा राजे की तारीफ में सामने आए हैं वागड़ क्षेत्र के दो सांसद और तीन विधायक समेत दर्जनों बड़े नेता। उन्होंने एक विज्ञापन में कहा है कि वसुन्धरा राजे ने ही आदिवासी समुदाय के प्रमुख स्थल बेणेश्वर को प्राथमिकता दी है।
वसुन्धरा राजे जब बेणेश्वर के लिए रवाना हुईं तो उदयपुर एयरपोर्ट से बेणेश्वर धाम तक जड़ियाना मोड़, जयसमंद, खेराड़, स्लूबर, आसपुर, साबला सहित विभिन्न स्थानों पर अभूतपूर्व स्वागत के लिए मेवाड़ एवं वागड़ के लोगों ने जबरदस्त स्वागत किया।
वसुन्धरा राजे इस यात्रा के जरिए राजे आदिवासी अंचल के तीन जिलों को एक साथ नब्ज टटोल रही हैं।
इन्होंने किया स्वागत
राजे दक्षिण राजस्थान के दौरे पर जब उदयपुर पहुंची तो डबोक एयरपोर्ट पर कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी करते हुए कहा- 'कहो दिल से, वसुंधरा फिर से'। उदयपुर के सांसद अर्जुन लाल मीणा, राजसमंद विधायक दीप्ति माहेश्वरी, मावली विधायक धर्म नारायण जोशी और श्रीचंद कृपलानी आदि मौजूद रहे मौजूद रहे।
वसुंधरा के दौरे को मेवाड़-वागड़ में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के साथ ही वर्तमान नब्ज को टटोलने के तौर पर देखा जा रहा है।
बीजेपी क्लीन स्वीप चाहती है तो फिर अन्य विकल्प कमजोर हैं
इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान में वसुन्धरा राजे एक ऐसी नेता हैं, जो दो बार लोकसभा की 25 सीटें बीजेपी के पक्ष में लाने में कामयाब रही हैं। सतीश पूनिया मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष हैं।
सीएम की कुर्सी के दावेदार भी बताए जाते हैं, लेकिन फिलहाल तक कोई कमाल उप चुनावों में नहीं दिखा पाए हैं। यहां तक कि वे अभी गुलाबचंद कटारिया, राजेन्द्र राठौड़ जैसे दिग्गज नेताओं से कैसे पार पाएंगे यह समझ से परे है। बीजेपी आलाकमान की चुनौती है कि एक ही वक्त में मध्यप्रदेश, मिजोरम और छत्तीसगढ़ में भी इलेक्शन हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि दिसम्बर में सरकार जम्मू कश्मीर में भी चुनाव करवाएगी। केन्द्र के लिए बड़ी चुनौती जेएण्डके रहेगा। ऐसे में वे राजस्थान को कैसे देखेंगे। सभी जगह चुनौतियां अलग—अलग हैं।
ऐसे में अकेले केन्द्र के चेहरे पर वे इतने सारे राज्यों में कैसा प्रदर्शन करते हैं। यह देखने वाली बात होगी। मोदी सरकार ऐसे में राजस्थान को यदि एक बार फिर से क्लीन स्वीप चाहती हैं तो वसुन्धरा राजे से बेहतर कोई विकल्प फिलहाल नजर नहीं आता।
सतीश पूनिया की कमजोरी के कुछ कारण ये भी हैं
प्रतिपक्ष नेता गुलाबचंद कटारिया और राजेन्द्र राठौड़ भी सीएम की कुर्सी के प्रबल दावेदार हैं। परन्तु वसुन्धरा राजे के नाम पर ये पीछे आ सकते हैं। सतीश पूनिया इनसे जूनियर हैं। इन्हें ये मुखिया के तौर पर नहीं स्वीकारेंगे।
राजेन्द्र राठौड़ शेखावाटी और बीकानेर इलाके में पकड़ रखते हैं तो कटारिया मेवाड़ में। अर्जुनलाल मेघवाल जरूर सतीश पूनिया के समर्थक हैं, लेकिन उनकी बीकानेर जिले से बाहर वोटों पर पकड़ न के बराबर है।
पूर्वी राजस्थान के प्रमुख सिपहसालार और मीणा वोटर्स पर बड़ी पकड़ रखने वाले किरोड़ीलाल मीणा ने सतीश पूनिया पर वादाखिलाफी का आरोप जड़कर अपना रुख साफ कर लिया है।
प्रदेश में पार्टी सुप्रीमो तो छोड़िए सतीश पूनिया खुद को जाट नेता के तौर पर भी स्थापित नहीं कर पाए हैं।
यहां तक कि कांग्रेस के अध्यक्ष डोटासरा भी इसमें असफल रहे हैं। यह सेहरा हनुमान बेनिवाल के सिर पर जाटों ने बांध दिया है। यह उप चुनावों में आए परिणामों ने सीधे तौर पर साबित किया है।
यदि कांग्रेस पार्टी सचिन पायलट को ओपन हैंड देगी तो फिर कांटे की टक्कर रहेगी। ऐसे में बीजेपी जीत तो सकती है, लेकिन आलाकमान क्लीन स्वीप के मूड में है। उनकी नजर 2024 के लोकसभा और प्रदेश की दसों राज्यसभा सीटों पर है।